टेक्नोलॉजी विधि-कानून

साइबर अन्ना और लोकतंत्र

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

अन्ना हजारे का जनलोकपाल बिल के लिए आंदोलन धीरे धीरे अंगड़ाई ले रहा है। अन्ना को दिल्ली पुलिस ने जंतर-मंतर पर आमरण अनशन करने की अनुमति नहीं दी है। सवाल उठता है वे जंतर-मंतर पर ही आमरण अनशन क्यों करना चाहते हैं ? वे दिल्ली के बाहर कहीं पर भी आंदोलन क्यों नहीं कर रहे ? अन्ना अपने कर्मक्षेत्र महाराष्ट्र में ही आमरण अनशन पर क्यों नहीं बैठते ? जंतर-मंतर तो लोकपाल का मुख्यालय नहीं है। संसद को सुनाने के लिए संसद के गेट पर ही आमरण अनशन होगा और तब ही संसद सुनेगी,यह तर्क गले नहीं उतरता।

असल में अन्ना का दिल्ली का जंतर-मंतर एक्शन अप्रासंगिक है। दूसरे शब्दों में कहें तो लोकपाल बिल की एक मसले के रूप में विदाई हो गयी है और अन्ना अपने अहंकार के शिकार हो गए हैं। केन्द्र सरकार ने लोकपाल बिल बनाने के लिए उन्हें पिछलीबार अनशन से उठाकर लोकपाल बिल की एक विषय के रूप में पहल अन्ना के हाथ से छीन ली।अन्नाटीम को मसौदे की बातचीत में उलझाए रखा और अपना मसौदा संसद के सामन पेश करके अन्ना को हाशिए पर डाल दिया है।

केन्द्र सरकार ने जिस तरह लोकपाल बिल को तैयार किया है और संसद में पेश करने की घोषणा की है उससे एक ही संदेश गया है कि सरकार लोकपाल बिल पर काम कर रही है और सिस्टम बनाने में लगी है। इस तरह उसने अन्ना टीम के जन लोकपाल बिल को महज एक दस्तावेज में तब्दील कर दिया है। केन्द्र सरकार ने चालाकी करके अन्नाटीम के अधिकांश सुझाव अपने बिल के मसौदे में शामिल कर लिए हैं। सरकारी मसौदे में अन्नाटीम के 32 सुझाव शामिल किए गए हैं। केन्द्र सरकार का अन्नाटीम के अधिकांश सुझावों को मानना ही जनलोकपाल बिल की मौत की घोषणा है।

अन्ना के आंदोलन को जिस तरह कारपोरेट घराने समर्थन कर रहे हैं और कारपोरेट मीडिया कवरेज दे रहा है उसका एक अर्थ यह भी है कि भारत में ‘एंटी कारपोरेट आंदोलन’ का अंत हो गया है। यह उस संघर्ष के इतिहास के अंत की घोषणा है जिसे पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष कहते हैं।

अन्ना प्रतीक है उस समापनक्षण के जिसमें कारपोरेट घरानों के खिलाफ अब जंग नहीं लड़ी जा रही। अन्नाटीम का संघर्ष महत्वपूर्ण है कि उसने एंटी कारपोरेट आंदोलन को विदाई दे दी है। अन्ना की मीडिया इमेज की अहर्निश वर्षा का संदेश है कि अब वैकल्पिक दुनिया संभव नहीं है। अन्ना के मतवाले साइबरवीरों से लेकर दनदनाते स्वयंसेवकों तक सभी का लक्ष्य है आम जनता के मूड को एंटी कारपोरेट अनुभूतियों से बाहर निकालना।

अन्नाटीम को आमतौर पर मीडिया ने सिविल सोसायटी नाम दिया है। इस आंदोलन में अनेक छोटे स्वयंसेवी संगठनों की शिरकत है। लेकिन अन्ना आंदोलन के पास भारत की जनता के लिए,संघर्षशील सामाजिक और वर्गीय आंदोलनों के लिए प्रेरणा देने लायक न तो कोई भाषण है और न कोई वक्तव्य है। अन्नाटीम आज तक एक भी ऐसा प्रेरणाप्रद बयान जारी नहीं कर पायी है जो सारे देश की इमेजिनेशन को पकड़े और अपनी ओर आकर्षित करे।

अन्ना की भाषा में मर्मस्पर्शी माधुर्य नहीं है। उनकी आवाज में हमेशा एक सैनिक का कर्कश कण्ठस्वर सुनाई देता है। वे जब बोलते हैं तो एक हायरार्की पैदा करते हुए बोलते हैं। उनकी भाषा में विनम्रता कम और अहंकार का भाव ज्यादा है। आंदोलनकारी की भाषा गांधी की भाषा होनी चाहिए। विनम्रभाषा होनी चाहिए। आंदोलनकारियों की नई फौज ऐसी भाषा बोल रही है जिसमें विचारधारा नहीं दिखती,खाली मांग दिखती हैं। जनता के मर्म को सम्बोधित करने का भाव व्यंजित नहीं होता। इसके विपरीत रेटोरिक व्यक्त होता है। रेटोरिक अपने आपमें विषय के अंत की घोषणा है।

अन्ना के साथ विभिन्न रंगत और विचारधारा के लोग जुड़ गए हैं। उनको समर्थन देने वालों में माकपा से लेकर भाजपा तक सभी शामिल हैं। उनके साथ काम करने वाले संगठनों में विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले संगठन भी हैं। इतने व्यापक विचारधारात्मक संगठनों का अन्ना के पीछे समाहार इस बात का संकेत है कि अब कारपोरेट घरानों को घबड़ाने की जरूरत नहीं हैं। विचारधारा की जगह व्यवहारवाद ने ले ली है। व्यवहारवाद का केन्द्र में आना एंटी कारपोरेट आंदोलन की समाप्ति है।

अन्नाटीम को जितना व्यापक मीडिया कवरेज मिल रहा है वैसा हाल के वर्षों में किसी आंदोलन को कवरेज नहीं मिला। अन्नाभक्तों के हजारों संदेश, ईमेल, बयान आदि मीडिया से लेकर इंटरनेट तक छाए हुए हैं लेकिन कारपोरेट घरानों और नव्य आर्थिक उदारीकरण के खिलाफ कोई स्मरणीय प्रतिवाद नहीं है। जबकि सच यह है कि भ्रष्टाचार का गोमुख कारपोरेट घराने और नव्य आर्थिक उदार नीतियां हैं।

अन्ना हजारे बार -बार कड़े लोकपाल का हल्ला करके अपनी वर्गीय भूमिका पर से ध्यान हटाना चाहते हैं। अन्ना का मीडिया और इंटरनेट पर प्रौपेगैण्डा खूब है लेकिन यह आम जनता में नीचे नहीं जा रहा। मीडिया और नेट प्रचार की यह सीमा है कि उसे आप आम जनता के निचले और सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक प्रसारित नहीं कर सकते। आप इंटरनेट और मोबाइल संदेशों से इवेंट निर्मित कर सकते हैं। आंदोलन नहीं कर सकते। अन्ना ने अब तक इवेंट निर्मित किए हैं। आंदोलन नहीं। आगे भी वो इवेंट ही बनाने जा रहे हैं। इवेंट को आंदोलन में तब्दील करने की कला अन्ना को नहीं आती।

अन्ना का 16 अगस्त का इवेंट निश्चित रूप से सरकारी बिल को लेकर क्रिटिकल है। लेकिन आम जनता के मन को स्पर्श करने में असमर्थ है। अन्ना टीम की मुश्किल यह है कि वे अपने आंदोलन के जरिए एक ही एक्शन करना चाहते हैं। और यह भी चाहते हैं कि कोई सरप्राइज घटना घटित हो। यही पद्धति बाबा रामदेव ने अपनायी थी। अन्ना और रामदेव के विगत दिनों हुए आंदोलन में सरप्राइज यहीथा कि केन्द्र सरकार ने पर्याप्त दिलचस्पी ली और मंत्रियों को एक्शन में उतारा।

अन्नाटीम की विशेषता है कि उनके पास अंतर्राष्ट्रीय से लेकर राष्ट्रीय और राज्य स्तर तक के नेटवर्क सांगठनिक कनेक्शन हैं। लेकिन इनके पास कोई विज़न नहीं है। कोई क्रांतिकारी या परिवर्तनकामी दर्शन नहीं है। अन्नाटीम और उनके अनुयायियों के नेट पर बयान और अस्वाभाविक सक्रियता का अर्थ यह भी है कि इन लोगों की नागरिक अभिलाषाओं को डिजिटल संचार हजम कर रहा है।

अन्ना के यहां डिजिटलकल्चर का व्यापक दोहन हो रहा है। इंटरनेट पर तमाम किस्म के समूह हैं जो विभिन्न विषयों पर सक्रिय हैं। ये जीवनशैली से लेकर हिन्दुत्व, अन्ना से लेकर सेक्स, माल की बिक्री से लेकर निजी प्रचार के क्षेत्र तक सक्रिय हैं। नेट की साइबर भीड़ वस्तुतः नागरिक का विकल्प है,यह नागरिक नहीं हैं। इस साइबर भीड़ का अपना साझा एजेण्डा भी है।

साइबर भीड़ के अचानक उदय का प्रधान कारण है समाज में सामूहिक समूहों और समुदायों की सक्रियता का ह्रास। सामाजिक जीवन में सार्वजनिक स्पेस का क्षय होने के कारण साइबर भीड़ में इजाफा भी हो रहा है। आमजीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रतिवाद गायब है। इसीलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ इंटरनेट पर लोगों की संख्या बढ़ रही है। आमजीवन में दोस्त गायब हैं लेकिन फेसबुक पर सैंकड़ो-हजारों मित्रों की संख्या बढ़ रही है। आम जीवन में संवाद गायब है,आमने-सामने मिलते हैं तो बात ही नहीं करते लेकिन साइबर चैट,ईमेल.फेसबुक संवाद आदि ज्यादा करने लगे हैं। यह असल में नागरिक जीवन में संवाद,मित्रता,संगठन,समुदाय आदि के साथ नागरिकता के क्षय की सूचना है यह लोकतंत्र के क्षयिष्णु रूप की सूचना है। यह कारपोरेट घरानों के लिए आराम की नींद सोने का दौर है।

अन्नाटीम या अन्य किसी को इंटरनेट और मीडिया में अपनी खबरों और संदेशों के प्रवाह को देखकर यह महसूस हो सकता है कि देखो कितनी जनता बात कर रही है,देख रही है,समर्थन कर रही है। लेकिन सच यह है कि यह जनता नहीं साइबर भीड़ है। वे सामाजिक या राजनीतिक घटना को कवरेज नहीं दे रहे हैं। बल्कि नजारा बना रहे हैं। वे कोई घटना नहीं बनाते बल्कि पहले से बने हुए मीडिया वातावरण में ‘कुछ बयां’ करते हैं। इस क्रम में वे चैनल,सेवा और माल (अन्ना आदि) की बिक्री करते हैं।यहां जो आत्मीयता और लगाव दिखाई देता है वह मार्केटिंग की कला है।