कविता

चक्र       

-बीनू भटनागर-

poem

प्रत्यूष काल,

किरणों का जाल,

सूर्योदय हो गया,

क्षितिज भाल।

तारे डूबे तो,

सूर्य उगा,

चंदा भी थक कर,

विदा हुआ।

पक्षियों का गान

कहे हुआ विहान।

नींद से उठकर,

मिट गई थकान।

उषा काल के ,

रवि को प्रणाम!

 

मध्याह्न काल मे,

सूर्य चढ़ा,

ठीक गगन के बीच खड़ा,

धरती का तापमान बढ़ा,

फिर वो पश्चिम की ओरचला,

पश्चिमी क्षितिज मे,

जाकर अस्त हुआ,

किसी और देश मे,

व्यस्त हुआ।

 

घूमता नहीं है,

भानु  कभी,

पृथ्वी का धुरी,

पर चक्र हुआ।