अनेक वर्षों से विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों से यह ज्ञात होता रहता है कि अधिकांश नाबालिग बालिकाओं के साथ दुष्कर्म किया जाता हैं। अनेक अवसरों पर एक विशेष समुदाय के आपराधिक प्रवृत्ति के लोग ही ऐसे दुष्कर्मों में व्यक्तिगत व सामूहिक रुप से लिप्त पाये जाते हैं। ऐसे दुष्कर्मों में पीड़ित बालिकाएं या युवतियां या महिलाएं सामान्यतः आरोपियों से भिन्न समाज से होती हैं। साधारणतः ऐसी घटनाएं एक ही नगर में व आस पास रहने वाले परिवारों में अधिक होती हैं।
कुछ समाचार ऐसे भी आते हैं कि विशेष समुदाय के कुछ दुष्चरित्र व्यक्ति अपनी हवस का शिकार बनाने के लिये अपने पारिवारिक सदस्यों जैसे सौतेली बेटी,भतीजी, भांजी व चचेरी,ममेरी,फुफेरी आदि बहनों का भी शोषण करने में कोई संकोच नही करते । इसके अतिरिक्त आप केवल पिछले 5-वर्षों के समाचार पत्र देखेंगे तो अनेक ऐसे जघन्य बलात्कारी मिलेंगे जिन्होंने दुष्कर्म करके पीड़िता को मारने में भी कोई संकोच नही किया। प्रायः इन अत्याचारों के समाचारों को विशेष महत्व नही दिया जाता क्योंकि इनसे उन तत्वों को कोई अधिक लाभ नही होता जो शासन के विरुद्ध वातावरण बना कर राष्ट्रीय एकता व अखंडता को प्रभावित कर सकें ?
इसीलिए आज यह विषय और अधिक गंभीर हो गया है क्योंकि कठुआ (जम्मू) में एक नाबालिग बालिका (आसिफा) की दुष्कर्म करके हत्या करने के जनवरी माह के समाचार को तीन माह बाद सनसनी बना कर देश ही नही विदेशों में भी धार्मिक रंग देकर भारत की छवि को खराब करने का सुनियोजित षडयंत्र किया जा रहा है। ऐसा करने के लिये अनेक अफजल प्रेमी, भारत के टुकड़े-टुकड़े करने , पाकिस्तानी झंडा फहराने , भारत को खुरासान बनाने व विदेशी धन पर पलने वाले गैंग सक्रिय हो गये हैं। जबकि 21 अप्रैल को दिल्ली की एक नाबालिग लड़की (गीता) का अपहरण करके उससे पास ही गाज़ियाबाद के अर्थला स्थित एक मदरसे में कई बार सामूहिक दुष्कर्म की वीभत्स घटना पर षडयंत्रकारियों का मौन रहना उनकी दूषित मानसिकता का परिचय कराती हैं। कठुआ कांड की पीड़ित नाबालिग एक मुस्लिम है तो इन विभिन्न गैंगों के सूत्रधारों ने देश-विदेश में झूठ के सहारे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाने के लिये इस घटना को बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित किया गया । परंतु 21-22 अप्रैल को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में घटी एक नाबालिग हिन्दू लड़की के उत्पीडन की घटना के प्रति ऐसे तत्वों की उदासीनता उनकी निष्पक्ष सामाजिक सतर्कता व राष्ट्रभक्ति को संदेहजनक बनाती हैं। इन दोनों प्रकरणों में पीड़िता अलग अलग सम्प्रदाय से संबंधित हैं और पुलिस प्रशासन ने अपनी जांच के अनुसार इन घटनाओं में कुछ तथाकथित दोषियों को बंदी बनाया है। इस प्रकार बंदी बनाये जाने के कारण दोनों क्षेत्रों के कुछ लोगों में आक्रोश व्याप्त हैं। लेकिन कानून के समक्ष सब एक समान है। अतः जब विशेष न्यूज़ चैनलों के जुझारू पत्रकारों के सहयोग से इन कांडों की सच्चाई सामने आयेगी तो इनमें लिप्त षडयंत्रकारियों व अपराधियों पर कानून के अंतर्गत कड़ी से कड़ी कार्यवाही अवश्य होगी।
फिर भी यह सोचना आवश्यक है कि बालिकाओं के साथ हुआ ऐसा निंदनीय कार्य क्या देश में पहली बार हुआ है ? जब वर्षो से हो रहें ऐसे निंदनीय अपराधों की गिनती भी नही की जा सकती तो कठुआ कांड में एक विशेष समुदाय की पीड़िता पर अन्य समुदाय के लोगों को तथाकथित दोषी बना कर मीडिया द्वारा ऐसे विवादाग्रस्त अपराध को ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर क्यों इतना अधिक महत्व देकर प्रचारित किया गया ? क्या इस कांड के विरोध में हो रहें प्रदर्शन, कैंडल मॉर्च व अन्य आंदोलनों में सम्मलित होने वाले अधिकांश युवावर्ग को इसकी सच्चाई का कोई ज्ञान हैं ? केवल कुछ भटके हुए तत्वों का समूह ऐसे नकारात्मक विवादित विषयों पर सक्रिय होकर राष्ट्र की छवि को धूमिल करने वाली देशी-विदेशी शक्तियों के षडयंत्रों का शिकार बन रहे हैं। कुछ बेरोजगार व आधुनिक जीवन शैली अपनाने वाले धन के लोभ में ऐसे नकारात्मक आंदोलनों से अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। अतः ऐसे आंदोलनकारी, जो झूठ के आधार पर देश के वातावरण को दूषित करके व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को अपमानजनक स्थिति का सामना करने को विवश करते हो , को संज्ञान में अवश्य लेना चाहिए। प्रायः लोकतांत्रिक अधिकारों में राष्ट्रीय अस्मिता पर आघात करने का दुःसाहस करने की किसी भी नागरिक को अनुमति नही हैं फिर भी ऐसा होता आ रहा है जो बहुत दुःखद हैं।
विनोद कुमार सर्वोदय