कागजी कार्रवाई दुरुस्त तो छूट पक्की
सिद्धार्थ शंकर गौतम
आय से अधिक मामले में मायावती को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत ने यह बहस छेड़ दी है क्या सीबीआई के लचर केस के चलते भविष्य में मुलायम, लालू, जगन जैसे अन्य माननीय भी बे-दाग साबित होंगे? दरअसल सीबीआई माया के खिलाफ ताज कोरिडोर मामले में आय से अधिक संपत्ति की जांच कर रही थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सीबीआई ने किसके आदेश पर जांच प्रक्रिया की कार्रवाई शुरू की? फिर सीबीआई भी माया के पास से ऐसा कोई दस्तावेज नहीं जुटा पाई जो आपत्तिजनक हो| यानी कागजी कार्रवाई दुरुस्त थी| अपने आप ने अनूठा यह एतिहासिक मामला माननीयों को इस बात की नजीर देता है कि सत्ता में रहते चाहे जितनी संपत्ति अर्जित करो, कागजी हिसाब-किताब से समझौता नहीं करना| वरना क्या सुप्रीम कोर्ट को माया की १० सालों में बढ़ी अकूत संपत्ति दिखाई नहीं दी?
सेक्युलर छवि पर भारी सत्यता
हाल ही में वरिष्ठ कांग्रेसी अर्जुन सिंह और वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर की किताबों ने अयोध्या मामले में नरसिम्हाराव को बतौर खलनायक पेश किया| देखा जाए तो दोनों का जीवन भी कम विवादित नहीं रहा लेकिन जिस तरह तथ्यों व सबूतों को नकारते हुए राव पर तीर छोड़े गए उससे राव समर्थक यही सोच रहे होंगे कि कम से कम उस समय राव के ओएसडी कुणाल किशोर तथा गृहसचिव माधव गोडबोले से तो सत्यता प्रमाणित की ही जानी चाहिए थी| कुणाल किशोर नैय्यर के राव पर लगाए आरोपों को नकार चुके हैं तो गोडबोले ने भी अपनी किताब में अयोध्या मामले से जुड़े तथ्य लिखे हैं| सेक्युलर छवि को भुनाने के चक्कर में दोनों ही कलमवीरों ने जिन्दा व्यक्तियों की सत्यता को नकार दिया| हालांकि सत्यता का पलड़ा अब भारी लग रहा है और कलमवीरों के समर्थक चुप्पी ओढ़े बैठे हैं|
बाबा की पींगों का नया पता १० जनपथ
बाबा रामदेव के मुंह से सोनिया के खिलाफ अब कुछ नहीं निकलता| यह बात एक-दो मौकों पर उजागर भी हो चुकी है| कारण खोजने पर पता चला है कि अपने विरुद्ध केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा चलाए जा रहे अभियान के मद्देनज़र कुछ कांग्रेसी शुभचिंतक उन्हें १० जनपथ का रास्ता दिखाने में लगे हैं ताकि उनका भी आर्थिकी नुकसान न हो| इस कड़ी में झारखंड से सांसद एक वरिष्ठ कांग्रेसी मंत्री का नाम राजनीतिक हलकों में प्रमुखता से लिया जा रहा है जिन्होंने बाबा के कई बड़े मेगा प्रोजेक्टों में दिलचस्पी दिखाई और अब १० जनपथ का करीबी होने का फायदा उठा रहे हैं|
पवार-ठाकरे की दिलजली दोस्ती
महाराष्ट्र की सियासत में पवार-ठाकरे की अदावत जगजाहिर है लेकिन इन दिनों दोनों करीब आते दिख रहे हैं और जरिया बने हैं दादा यानी प्रणब मुखर्जी| हुआ यूँ कि दादा की राष्ट्रपति पद की दावेदारी को ठाकरे का समर्थन मिलते ही पवार का दिल बल्लियों उछल गया और उन्होंने ठाकरे के साथ चाय पीने की ख्वाहिश जता दी| यही नहीं पवार जल्द ही ठाकरे से मिलकर दादा की दावेदारी को और पुख्ता करने की कोशिश में हैं| वैसे भी इन दिनों ठाकरे का दिल कांग्रेसी होता जा रहा है तभी तो वे सामना के जरिये इंदिरा गाँधी की तारीफ़ में कसीदे गढ़ने में लगे हैं|
विवादों से दूरी भली तो क्यों बने सूरमा
२ जी स्पेक्ट्रम की नीलामी प्रक्रिया के लिए गठित मंत्री समूह की कमेटी से खुद को अलग कर पवार ने दूरदर्शिता का परिचय दिया है| इससे अव्वल तो वे विवादित होने से बच जायेंगे दूसरे लवासा प्रोजेक्ट में अपनी पुत्री और दामाद का नाम आने से व्यथित पवार को सहानुभूति भी मिलेगी| जो लोग उनपर पदलोभी होने का आरोप मढ़ते थे उनकी जुबान पर भी ताला लग गया है| आखिर महाराष्ट्र की सियासत में पवार का सिक्का ऐसे ही थोड़ी चलता है?
आखरी दांव
राष्ट्रपति चुनाव निपटने के तुरंत बाद उपराष्ट्रपति चुनाव हेतु दलों में प्रत्याशी चुनने की होड़ शुरू होगी| कुल मिलाकर पुनः सत्ताधीशों के मध्य जोड़तोड़ व समर्थन की राजनीति तय है| राजनीतिक हलकों ने पहले से कई नाम तैर रहे हैं लेकिन संभावना है कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की तरह इस पद के उम्मीदवार का फैसला भी अप्रत्याशित ही होगा|