कविता

दीप

-बीनू भटनागर-
deepak

वायु बिन वो जल न पाये,
वायु से ही बुझ जाये है।
दीप तेरी ये कहानी तो,
कुछ भी समझ न आये है।
तू जला जो मंदिरों में,
पवित्र ज्योति कहलाये है।
आंधियों में ठहरा रहा तो,
संकल्प बन जाये है।
मृत्यु शैया पर जले तो,
पीर अपनो की बन जाये है।
आरती का दीप बुझ जाये तो,
अपशगुन कहलाये है।
दुल्हन का स्वागत हो या,
दिपावली की रात हो,
तेरे बिन हर शुभ अधूरा,
धरा का तारा तू हो जाये है।
तू जले चुप चाप फिर भी,
रौशनी औरों को दे दे।
दीप तेरे तले मे फिर भी,
केवल तमस ही रह जाये है।