दीप

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-बीनू भटनागर-
deepak

वायु बिन वो जल न पाये,
वायु से ही बुझ जाये है।
दीप तेरी ये कहानी तो,
कुछ भी समझ न आये है।
तू जला जो मंदिरों में,
पवित्र ज्योति कहलाये है।
आंधियों में ठहरा रहा तो,
संकल्प बन जाये है।
मृत्यु शैया पर जले तो,
पीर अपनो की बन जाये है।
आरती का दीप बुझ जाये तो,
अपशगुन कहलाये है।
दुल्हन का स्वागत हो या,
दिपावली की रात हो,
तेरे बिन हर शुभ अधूरा,
धरा का तारा तू हो जाये है।
तू जले चुप चाप फिर भी,
रौशनी औरों को दे दे।
दीप तेरे तले मे फिर भी,
केवल तमस ही रह जाये है।

1 COMMENT

  1. आपकी यह दीप कविता एक अच्छा सन्देश देने में पूरी तरह से सक्षम है,अगर आप अन्यथा न लें तो,कुछ जगह मात्रा दोष है जो खटकता है.इसे आप ठीक करलें तो कविता अपने आप में नदी की धारा बन कर लोगों के दिलों में सहज ही प्रवाहित होकर आकर्षित करेगी और वही इसकी ताकत भी होगी.
    अशोक आंद्रे

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