दीप का दिवाली पर सन्देश

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खुद जल जाओ,न जलाओ किसी को तुम
दीप का सन्देश है जरा इसको सुनो तुम

मेरे नीचे अँधेरा है,सबको उजाला देता हूँ
खुद जल कर  मै,सबको प्रकाश देता हूँ

बना हूँ मिट्टी का,कुम्हार मुझको बनाता है 
तपा कर अग्नि में मुझको तुम्हे पहुचाता है

बेच कर मुझे ,अपनी रोटी रोजी चलाता है
मेरे बिकने पर ही अपनी दिवाली मनाता है

मेरे बिन दिवाली न मनती रहता है अँधियारा
मै घर का दीपक हूँ,घर का ही हूँ उजियारा

था जनसंघ का चुनाव चिन्ह मुझे फहराते थे
था घर की रौनक,मुझे ही घर पर जलाते थे

घर घर दीप जले,घर घर सबके उजियारा हो
यही है मेरी तमन्ना,कही न अब अँधियारा हो

तेल बाती मेरा जीवन है,इनसे ही मै जलता हूँ
जब तक है ये मेरे पास तब तक मै फलता हूँ

रस्तोगी दीपक बन,उसका सन्देश मै सुनाता हूँ
इन पंक्तियों को लिख कर दिवाली मै मनाता हूँ

आर के रस्तोगी    

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