सखि जगमग दीवाली है आई, महिनवा कार्तिक का।
देखो झूम झूम नाचे है मनवा, महिनवा कार्तिक का।।
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अमावस की रात में अँधेरा था छाया,
दीपों की ज्योति ने उसको भगाया,
जैसे भू पर आकाश उतर आया, महिनवा कार्तिक का।।
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लिपे पुते घर सजे सजाए,
फुलझड़ी पटाके हैं शोर मचाए,
सजी घर घर में दीपों की माल, महिनवा कार्तिक का।।
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खील-बताशे के ढेर लगे हैं,
मेवे मिठाई भी ख़ूब सजे हैं,
जैसे ख़ुशियों की आई बारात, महिनवा कार्तिक का।।
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घर घर में गणपति-पूजन हुआ है,
लक्ष्मी का आह्वान हुआ है ,
गूँजी मंत्रों की पावन गुंजार, महिनवा कार्तिक का।।
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बहिना ने भाई के टीका किया है,
भाई ने भी उपहार दिया है,
आज प्रेमरस बरसै अँगनवा, महिनवा कार्तिक का।।
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सखि जगमग दीवाली है आई, महिनवा कार्तिक का।
सखि सबको है आज बधाई, महिनवा कार्तिक का।।
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— शकुन्तला बहादुर