दिल्ली की गलियों में नताओं का हुजूम।

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की घोषणा के साथ ही भाजपा में प्रत्याशी तय करने की प्रक्रिया भी तेज हो गई है। सभी विधानसभा क्षेत्रों के संभावित प्रत्याशियों के नाम पर रायशुमारी होगी, जिसमें विस्तारक, प्रभारी, संयोजक के साथ ही विधायक व पार्षद भी शामिल होंगे। जोकि सभी उम्मीदवारों को लेकर लिखित राय देंगे। उनकी राय एक पेटी में बंद की जाएगी, जिसके आधार पर केंद्रीय नेतृत्व अंतिम फैसला लेगा। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक साथ कई नेता टिकट की दौड़ में शामिल हैं। इनमें से योग्य उम्मीदवार के चयन और इस काम में पारदर्शिता लाने के लिए इस बार यह तरीका अपनाया गया है। सभी जिलों में इसके लिए कार्य शुरू हो गया है। बैठक में प्रदेश के नेता पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल होंगे। उनकी उपस्थिति में संबंधित जिला में आने वाले सभी विधानसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों के नाम पर कार्यकर्ता राय देंगे। इस रायशुमारी में विधानसभा क्षेत्र में तैनात किए गए विस्तारक, प्रभारी व संयोजक के साथ ही, विधानसभा में मंडलों के अध्यक्ष, वर्ष 2015 विधानसभा चुनाव का प्रत्याशी, पार्षद व पूर्व पार्षद (वर्ष 2012 में चुनाव जीतने वाला) तथा जिला अध्यक्ष प्रदेश, मोर्चे व जिले के पदाधिकारी शामिल होंगे। भाजपा नेताओं ने बताया कि इस प्रक्रिया से योग्य उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही विवाद की आशंका भी नहीं रहेगी। विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने को लेकर हर सीट पर दावेदारों में घमासान मचा हुआ है। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व को आशंका है कि प्रत्याशियों के नाम घोषित किए जाने के बाद कुछ लोग गुटबाजी को हवा दे सकते हैं। ऐसे ही नेताओं को संतुष्ट करने और जिताऊ प्रत्याशियों का चयन करने के लिए पार्टी यह रायशुमारी करने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक सियासी योद्धाओं का यह भी मानना है कि इस प्रक्रिया से जहां प्रत्याशियों के चयन में पारदर्शिता आएगी। वहीं चुनाव में योग्य व सक्षम उम्मीदवार के चयन में भी आसानी रहेगी। भाजपा, कांग्रेस और आप सभी पार्टियों में खींचतान तेज हो गई है। टिकट के लिए आवेदन करने वालों का तांता लगा रहा। पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ खासी संख्या में लोगों ने पार्टी प्रदेश अध्यक्षों से मुलाकात शुरू कर दी है जिससे कि दावेदारी जतानी की जंग आरम्भ हो गई है। सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में हर सीट पर संभावित दावेदारों की लंबी कतार है। सभी पार्टियाँ जीतने वाले मजबूत व पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को आगामी चुनाव में मैदान में उतारने की रूप रेखा की ओर आगे बढ़ रही हैं। कुछ बड़े नेताओं के वंशज भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने की फिराक में लगे हुए हैं। अपनी खोई हुई विरासत को पुनः पाने की भी कवायद तेज हो गई है। यह प्रक्रिया सभी खेमों में बखूबी दिखाई दे रही है। प्रत्येक बड़ चेहरे के पीछे एक छोटा चेहरा जरूर खड़ा हुआ है। जिसको इस बार के चुनाव में टिकट का इन्तेजार है। इसमें सांसद विधायक से लेकर मुख्यमंत्री के पुत्र गण भी पूरी तरह से शामिल हैं जोकि पूरी ताकत से लगे हुए हैं और अपनी किस्मत आजमाना चाह रहे हैं। जानकारों की माने तो इस बार मुख्यमंत्री के पुत्र गण भी अपनी किस्मत आजमाना चा रहे हैं। जोकि किसी तरह से विधानसभा में पहुँचना चाह रहे हैं। पुत्रो के साथ-साथ कुछ नेताओं के छोटे भाई भी इस बार टिकट की जुगत में लगे हुए है। इस बार कुछ नई सियासी पार्टियां भी दिल्ली के चुनाव में अपना दम दिखाने की जोर आजमाइश में लगी हुई है। हरियाणा में भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकने का निर्णय लिया है। इसके लिए वह करीब एक दर्जन विधानसभा सीटों पर सर्वे करा रही है। इसी सप्ताह सर्वे पूरा हो जाएगा। जजपा यह फीडबैक जुटाने में लगी है कि किन सीटों पर उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है और किन सीटों पर मेहनत करनी पड़ेगी। दिल्ली में जजपा अकेले ताल ठोंकेगी या भाजपा के साथ गठबंधन करेगी, इसका फैसला पार्टी ने रणनीतिकारों पर छोड़ दिया है। सूत्रों की मानें तो जजपा खुद चाहती है कि दिल्ली विस चुनाव में भाजपा उसके साथ गठबंधन करे, जिसका फायदा दोनों दलों को मिल सकता है। जातीय समीकरणों को साधने का कार्य तेजी के साथ आरम्भ हो गया है। जजपा को दिल्ली में जाट बाहुल्य सीटों पर अधिक समर्थन मिलने की आस है। नजफगढ़, मुंडका, बवाना, नरेला, बिजवासन, मटियाला, पालम, महिपालपुर, महरौली, नांगलोई, बदरपुर, देवली और चकरपुर जैसी सीटें शामिल हैं, जहां दुष्यंत चौटाला को लगता है कि उन्हें बढ़त मिल सकती है। इसी के साथ लालू की पार्टी और नितीश की पार्टी भी दिल्ली की राजनीति में अपना दम-खम दिखाएगी। आचार संहिता लगते ही चुनाव आयोग भी सतर्क हो गया है। इसके बाद होर्डिग्स और पोस्टरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई है। साथ ही दिल्ली का सियासी पारा अपने चरम पर पहुँचता दिखाई दे रहा है। सभी नेता अपनी-अपनी जुगत में लगे हुए हैं। अब दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली की जनता क्या फैसला सुनाती है। क्योंकि, इस बार का दिल्ली चुनाव कुछ खास ही है क्योंकि, इस बार कई नई राजनीतिक पार्टियों ने अपने आपको दिल्ली के चुनाव में उतार दिया है जिससे कि मतों का उथल-पुथल होना स्वाभाविक है। जिससे कि अभी कुछ कहना उचित नहीं होगा। क्योंकि, झारखण्ड और हरियाणा चुनाव के बाद अब देश के राजनीतिक समीकरण कुछ अलग दिशा में चल रहे हैं। दिल्ली की बात करें तो दिल्ली देश की राजधानी होने के कारण मिनी इण्डिया के रूप में जानी जाती है क्योंकि, दिल्ली में पूरा भारत निवास करता है। जिसमें युवा मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है जोकि दिल्ली की सरकार के भाग्य का फैसला करेगा कि क्या होता है। क्योंकि इस बार मतों का विभाजन बड़े पैमाने पर होगा। क्योंकि, भाजपा का अपना जनाधार है। साथ ही केन्द्र में भाजपा की सरकार है। अगर दिल्ली की बात करते हैं तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी सत्ता में है जोकि अपने कार्यो के आधार पर जनता के बीच जा रही है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस का मत जब चुनाव में सामने आएगा तो मामला त्रिकोणीय होना तय है। इसके बाद बाकी नीतीश और लालू की पार्टी क्या फर्क डालती है, यह देखना होगा। इसलिए चुनाव की स्थिति काफी गंभीर हो जाती है जिससे कि इस बार के चुनाव में कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि इस बार का चुनाव किस करवट लेगा।

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