दिल्ली हो सकती है पूरी तरह से रिन्यूबल एनेर्जी पर निर्भर, अगर… 

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रिन्यूएबल एनर्जी नामक पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक लेख से इस बात की प्रबल संभावना जाहिर हुई है कि दिल्ली वर्ष 2050 तक जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाकर 100% अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता का लक्ष्य हासिल कर सकती है। अपनी तरह के इस पहले शोध में दिल्ली जैसे उत्तर भारतीय महानगर में 100% अक्षय ऊर्जा प्रणालियों की तकनीकी साध्यता और आर्थिक व्यवहार्यता के बारे में बात की गई है। 

अध्ययन के मुताबिक बैटरी और उपयोगिता स्तर की सौर ऊर्जा से वर्ष 2050 तक दिल्ली की कुल बिजली मांग का ज्यादातर हिस्सा पूरा हो जाएगा और तब तक जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल भी चरणबद्ध ढंग से समाप्त कर दिया जाएगा। विचार के दायरे में ली गई ऊर्जा प्रणाली में ऊर्जा, ऊष्मा, परिवहन और अलवणीकरण के क्षेत्र भी शामिल हैं। दिल्ली में जमीन की उपलब्धता सीमित होने की वजह से यह राज्य देश के उत्तरी क्षेत्रों मैं स्थित 8 राज्यों से बिजली हासिल करना जारी रखे हुए हैं। ऐसी अपेक्षा है कि यह राज्य जम्मू कश्मीर (लद्दाख सहित), हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ऑप्टिमाइज़्ड ट्रांसमिशन नेटवर्क (अनुकूलित संचरण नेटवर्क) से आपस में जुड़े हुए हैं।  

जुलाई 2022 में दिल्ली में बिजली की मांग 7 गीगावॉट तक पहुंच गई थी। उम्मीद है कि वर्ष 2020 में दिल्ली में बिजली की मांग जहां 2000 टेरावाट थी वह 2050 तक 4400 टेरावाट पहुंच जाएगी। आस-पास के राज्य कम लागत वाली अक्षय ऊर्जा के नए निर्यातक के रूप में उभरे हैं जो राज्यों को आर्थिक रूप से बढ़ावा दे सकते हैं और रोजगार भी पैदा कर सकते हैं।  

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हाल के एक ऐलान से ऐसे संकेत मिलते हैं कि वर्ष 2023 में कोयले के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जाएगी। हालांकि यह आदेश थर्मल पावर प्लांट पर लागू नहीं होगा। यह आदेश वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए दिया गया है। दिल्ली सरकार ने भी हाल ही में वर्ष 2030 तक देश की रूफटॉप कैपिटल बनने और इस दिशा में 50% सौर रूफटॉप का लक्ष्य हासिल करने का इरादा जाहिर किया है।  

इस अध्ययन के लेखकों में शामिल डॉक्टर मनीष राम ने कहा, “यह काफी उत्साहजनक और सही दिशा में उठाया जा रहा कदम है। वहीं, हमारा शोध यह बताता है कि सरकार को इस मामले में और भी ज्यादा महत्वाकांक्षी होना चाहिए क्योंकि अक्षय ऊर्जा से जहां लागतें कम होती हैं, वहीं ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है। इसके अलावा पिछले करीब एक दशक से दिल्ली को जकड़े वायु प्रदूषण में भी गिरावट आती है और ज्यादा संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। यह रूपांतरणकारी बदलाव लाने का वक्त है और दिल्ली के पास उत्तर भारत में ऊर्जा रूपांतरण को गतिमान बनाने का बेहतरीन मौका है।”  

पूर्व के अध्ययनों में नगरीय ऊर्जा प्रणालियों को बीजिंग, वैंकूवर, केपटाउन और हेलसिंकी जैसे महानगरों की प्रणाली के तौर पर देखा गया था लेकिन वे ज्यादा विस्तृत नहीं थी। नगरीकरण तेजी से बढ़ रहा है और ऐसी उम्मीद है कि वर्ष 2050 तक दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी शहरों में बस जाएगी। यूएन हैबिटेट के मुताबिक दुनिया की कुल उत्पादित ऊर्जा का 78% हिस्सा शहरों में खर्च होता है और यह शहर कुल उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों के 60% से ज्यादा हिस्से के लिए जिम्मेदार होते हैं।  C40 की क्षेत्रीय निदेशक श्रुति नारायण ने कहा, “शहर पहले से ही जलवायु परिवर्तन के भीषण प्रभावों का सामना कर रहे हैं। बढ़ते नगरीय विकास और संसाधनों के मोर्चे पर व्याप्त चुनौतियों को देखते हुए शहरों में जलवायु संबंधी कार्यवाहियों को सबसे आगे रखना होगा। आंकड़ों पर आधारित जलवायु संबंधी कार्य योजनाएं नगरों को एक रणनीतिक आधार देती हैं, जिनसे वे दीर्घकालिक आर्थिक और नगरीय योजना में जलवायु संबंधी कार्रवाई को समग्र रूप से मुख्यधारा में ला सकें।

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