फैसला और अध्यादेश का प्रलाप एक विधवा-विलाप

1
179

मनोज ज्वाला
भारतीय जनता पार्टी जब से केन्द्र में सत्तासीन हुई है , तब से
राम-जन्मभूमि- मंदिर-निर्माण को ले कर हिन्दू-संगठनों के तेवर नरम देखे
जा रहे हैं , जबकि हिन्दू-समाज का मीजाज थोडा गरम प्रतीत हो रहा है ।
ऐसा इस कारण , क्योंकि मंदिर-निर्माण-आन्दोलन का समर्थन करते रहने तथा
स्वयं भी तत्सम्बन्धी रथ-यात्रा निकालने के साथ-साथ अपने चुनावी
घोषणा-पत्रों में भी उसे प्राथमिकता देते रहने और गत चुनाव में तो
निर्माण का पक्का आश्वासन भी दे देने वाली भाजपा का राजनीतिक उन्नयन और
शासनिक राज्यारोहण हिन्दू-संगठनों के सहयोग व हिन्दू-समाज के समर्थन के
कारण ही हुआ है । इसे हिन्दू-संगठनों का सहयोग एवं हिन्दू-समाज का समर्थन
अगर प्राप्त नहीं होता , तो न इसका सांगठनिक आकार ही विस्तार पाता , न
केन्द्र से ले कर उतरप्रदेश सहित अनेकानेक राज्यों में इसकी सरकार का गठन
होता और न ही देश भर से कांग्रेस का सफाया हो पाता । ऐसे में भाजपा से
हिन्दू-संगठन और हिन्दू-समाज दोनों की तत्सम्बन्धी अपेक्षा अर्थात
राम-जन्मभूमि-मंदिर के निर्माण हेतु सम्बन्धित विवादित-प्रतिबन्धित भूमि
पर से प्रतिबन्ध हटा देने मात्र के सरकारी सहयोग की आशा स्वाभाविक ही रही
है । य सर्वविदित है कि भाजपा इस वायदे के आधार पर हिन्दू-संगठनों से
सहयोग और हिन्दू-समाज से समर्थन हासिल कर ही सत्ता प्राप्त कर सकी है ।
इस तथ्य को न भाजपा झुठला सकती है , न भाजपा-विरोधी दूसरे दल । हालाकि
पहले भी एक बार केन्द्र में भाजपा की सरकार बन चुकी थी, किन्तु वह चूंकि
कई ऐसे गैर-भजपा-दलों के गठबन्धन से बनी थी, जिनकी प्राथमिकताओं में
मन्दिर-निर्माण नहीं था और रामजन्मभूमि वाले प्रान्त- उतरप्रदेश में
भाजपा-विरोधी समाजवादी सरकार कायम थी ; इस कारण इस मजबूरी को समझते हुए
संगठन या समाज किसी को भी उस भाजपा-सरकार से ऐसी अपेक्षा नहीं थी ।
किन्तु २०१४ के संसदीय चुनाव के पश्चात केन्द्र में पूर्ण बहुमत की
भाजपाई सरकार कायम हो जाने पर तमाम हिन्दू-संगठन एक तरह से इत्मीनान हो
गए कि अब तो बिना किसी आन्दोलन के भी मन्दिर बन ही जाएगा । इसी कारण उनके
तेवर नरम पड गए । इस नरमी की एक वजह यह भी रही है कि मन्दिर-निर्माण के
लिए आन्दोलन करने वाले प्रायः सभी हिन्दू-संगठन उसी संघ-परिवार से
सम्बद्ध रहे हैं, जिससे भाजपा भी सम्बद्ध है । किन्तु केन्द्र में हुए इस
सत्ता-परिवर्तन के बाद संघ-परिवारेतर वृहतर हिन्दू-समाज में ऐसा उबाल आया
कि उसके बाद हुए विधानसभा-चुनाव में भी उसने भजपा के पक्ष में व्यापक
मतदान कर उसे उतरप्रदेश का शासन भी सौंप दिया । यहां ध्यातव्य है कि
केन्द्र और प्रदेश दोनों में भाजपा को अप्रत्याशित रुप से मिली जीत के
पीछे उसके सहयोगी संघ-परिवारी संगठनों की ही भूमिका नहीं थी, बल्कि
संघ-परिवारेतर समाज में भाजपा के प्रति आई स्वतःस्फूर्त जागृति से उपजी
प्रीतिपूर्ण आकांक्षा भी थी।आकांक्षा यह कि रामजन्मभूमि पर मन्दिर बने,
जम्मू-कश्मीर से धारा ३७० हटे , गो-हत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगे और देश
भर में समान नागरिक कानून लागू हो। इन आकांक्षाओं में राम-मन्दिर के
निर्माण की आकांक्षा सर्वाधिक बलवती रही है।यही कारण था कि गत संसदीय
चुनाव में भाजपा और उसकी संघी शक्तियां जितना पाने की उम्मीद नहीं की
थीं, उससे भी ज्यादा समर्थन समाज ने उसे यह सोच कर दिया कि उपरोक्त
आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भाजपा-सरकार को पहले की तरह बहुमत के
अभाव की मजबुरी का बहाना न मिले। ऐसी सोच से निःसृत जनमत के बहुमत से
देश व प्रदेश दोनों की सत्ता जब भाजपा को मिल गई , तब संघ-परिवारेतर समाज
उन संघ-परिवारी संगठनों की तरह नरम होने के बाजाय गरम ही रहा और आज भी
गरम है , क्योंकि यह भाजपा के पक्ष में पहली बार गरमाया था (है)।किन्तु प्रचण्ड बहुमत से सत्तासीन होने के बाद भाजपा काशीर्ष नेतृत्व संघ-परिवारेत्तर समाज को भी संघ-परिवारी संगठन मानने-समझनेकी भूल करता रहा है । सत्तासीन होने के बाद चार साल के भीतर भाजपा ने एकबार भी रामजन्मभूमि पर मन्दिर-निर्माण के बावत न केवल शासनिक तौर पर ,बल्कि राजनीतिक तौर पर भी कोई ठोस घोषणा करने से कतराती ही रही ।हिन्दू-संगठन व हिन्दू-समाज की आकांक्षाओं के बढते दबाव में आ कर उसकेनेताओं ने कभी कुछ कहा भी तो सिर्फ यही कि न्यायालय का जो फैसला होगा उसेही माना जएगा । कल्पना कीजिए कि न्यायालय का फैसला अगर मन्दिर-निर्माण के पक्ष में नहीं आया तब क्या कांग्रेस की तरह भाजपा भी हिन्दू-भावनाओं के विरोध में खडा नहीं हो जाएगी ? यहां ध्यातव्य है कि न्यायालय में यहमामला पिछले सत्तर वर्षों से लम्बित है । ऐसे में भाजपा से तो यह अपेक्षा की गई थी कि वह सत्तासीन  होने पर न्यायालय से इस मामले का त्वरितनिष्पादन कराएगी , किन्तु अपेक्षा के विरूद्ध न्यायालय इसे लगातार टालने
में ही लगा हुआ है और भाजपा-सरकार उसके फैसले की बाट जोह रही है । यहां हिन्दू-संगठनों में से एक- रामजन्मभूमि मन्दिर के महंथ रामविलाश वेदान्ती का एक सवाल गौरतलब है कि मन्दिर-निर्माण जब कोर्ट के फैसले से ही होनाहै, तब चुनाव के दौरान भाजपा ने क्यों आश्वासन दिया था ? और तब भाजपा क्या करेगी ? और फिर मन्दिर-निर्माण के बदले भाजपा के पक्ष में मतदान क्यों किया गया तथा आगे क्यों किया जाए ? इन सवालों का कोई जवाब नहीं है इस भाजपा के पास , जबकि एक मजबूत सरकार की शक्ति से सम्पन्न होने केबावजूद वह इच्छा-शक्ति नहीं जुटा पा रही है और न्यायालय से फैसला आने का प्रलाप करते हुए ततविषयक अपनी प्रतिबद्धता भी जता रही है । उधर हिन्दुओं के तमाम संगठन और समाज के लोग इसी भाजपाई केन्द्र-सरकार से अध्यादेश लाने का एक दूसरा प्रलाप कर रहे हैं । ये दोनों ही प्रलाप वास्तव में एक अशक्त अबला के विधवा-विलाप की तरह हैं, जो अनापेक्षित भी हैं और अवांछित भी ।ऐसा मैं इस कारण कह रहा हूं , क्योंकि भाजपा-सरकार अध्यादेश तो ला ही सकती है, संसद में तत्विषयक विधेयक ला कर मन्दिर-निर्माण का कानून भी बना सकती है . हिन्दू-समाज के राजनीतिक जागरण और चुनावी ध्रुविकरण के इस दौर में रामजन्मभूमि का मामला अब ऐसा व्यापक रुप ले चुका है कि कोई भी गैर-भाजपाई राजनीतिक दल इसकी मुखालफत करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता । ऐसे में भाजपा के तो दोनों ही हाथों में लड्डू हैं – अध्यादेश लाने अथवा कानून बनाने में सफल हुई तब भी और विफल हुई तब भी । किन्तु ऐसा कोई प्रयास करने के बजाय वह फैसला आने का प्रलाप कर रही है । उधर हिन्दू-संगठन और हिन्दू-समाज द्वारा सरकार से अध्यादेश लाने का जो प्रलाप किया जा रहा है, सो भी एक तरह का विधवा-विलाप ऐसे है कि इसी रामजन्मभूमि पर इसी प्रस्तावित मन्दिर-निर्माण का शिलान्यास तो केन्द्र की गैर-भाजपाई सरकार के कार्यकाल में बगैर किसी अध्यादेश के ही हो चुका है । इतना ही नहीं, जन्मभूमि पर अवस्थित अवांछित ढांचे का उद्भेदन और भूमि-समतलीकरण के काम भी तो धुर भाजपा-विरोधी समाजवाजी राज्य-सरकार और कांग्रेसी केन्द्र सरकार के कर्यकाल में अध्यादेश का राग अलापे बिना ही समाज के शौर्य और संगठन के जोर से हो चुके हैं । बावजूद इसके आज तमाम हिन्दू-संगठन राष्ट्रीय महत्व के इस अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए सरकारी अध्यादेश की गुहार लगा रहा रहे हैं, तो इसका मतलब कि भाजपा-सरकार और इन संगठनों के बीच जरूर कोई खिंचडी पक रही है । उस खिंचडी का रंग-रुप और स्वाद चाहे जैसा भी हो , किन्तु उसे बनाने वाले हाथ अगर इस तरह के विधवा-विलाप के आंसू पोछ रहे हों, तो जाहिर उसे खाने-चखने से समाज का शौर्य तो क्षीण होगा ही , भारत के राष्ट्रीय नवोन्मेष की धार को अपने अनाप-शनाप फैसलों से कुन्द करते रहने वाली न्यायपालिका की अनावश्यक स्वेच्छाचारिता बढते-बढते एक दिन हमारे लोकतन्त्र को ही ग्रस लेगी । यह वही न्यायपालिका है, जिसे इन्दिरा गांधी ने उसकी हैसियत का आइना सन १९७५ में ही दिखा दिया था और जिसकी अहमियत के बावत भाजपा तो हमेशा यह कहती रही है कि आस्था से जुडे मामले कोर्ट की परिधि से बाहर हैं । ऐसे में रामजन्मभूमि पर मन्दिर-निर्माण के राष्ट्रीय मसले को ले कर ‘न्यायिक फैसला’ और ‘शासनिक अध्यादेश’ का अनावश्यक प्रलाप करना सर्वथा अनुचित व
अवांछित है ।

1 COMMENT

  1. कुछ माह के अंतराल बाद मनोज ज्वाला जी द्वारा लिखा निबंध “फैसला और अध्यादेश का प्रलाप एक विधवा-विलाप” पढ़ा और उनके विश्वसनीय लगने वाले तर्क-वितर्क से अलग एक और स्थिति है जिसे मैं सामान्य हिन्दू के आचरण (हिंदुत्व) की स्वाभाविक उत्पत्ति और युगपुरुष मोदी शासन का आधार मानता हूँ| राष्ट्र-विरोधी तत्वों द्वारा न्यायालयों में हमें बांटे रख चिरकाल से उनकी पकती खिचड़ी अब तक कोई व्यवहार्य निर्णय न दिला पाई है और न ही आगामी लोकसभा निर्वाचनों के पहले ऐसा कुछ संभव होते दिखाई देता है|

    भले ही इक्कीसवीं शताब्दी में आधुनिक लोकतंत्र की अवधारणा का अर्थ केवल बहुमत नियम (अध्यादेश) जो विषय-अनुरूप निश्चित ही एक बहुसंख्यक हिन्दू राष्ट्र में संभाव्य है लेकिन युगपुरुष मोदी द्वारा १२५ करोड़ भारतीयों को संग लिए पुनर्निर्मित किये जा रहे परंपरागत भारत में “सबका साथ, सबका विकास” की हुंकार का क्या हुआ? उस स्थिति में पिछले सत्तर वर्षों से अधिक अवधि से बहुसंख्यक हिन्दू भारत में शान्ति से रह रहे सामान्य मुसलमान में श्रीराम मंदिर के लिए उसकी सद्भावना व आदर की भावना स्वतः जगनी होगी| क्यों न सम्पूर्ण भारत के नागरिकों के हित को ध्यान में रखते सर्वोच्च न्यायालय के हिन्दू और मुसलमान न्यायाधीश मिल बीच-बचाव कर सभी धर्मावलम्बियों से श्री राम मंदिर की स्थापना के लिए आग्रह करें? अवश्य ही कांग्रेस-मुक्त भारत में हम सभी राम-राज्य की कामना करते हैं!

    हाँ, बिना किसी प्रकार के “विधवा-विलाप” की अनुमति दिए अब एक आवश्यक “अध्यादेश” द्वारा मैं इंडिया को शीघ्र भारत अथवा भारतवर्ष में बदलने का प्रलाप होते देखना चाहूँगा! दिन रात मात्र “भारत” शब्द के सगर्व उच्चारण में हमारी भारतीयता, हमारी भाषाएँ, हमारे भारतीय दर्शन व परम्पराएं उभर कर हमारे ह्रदय को प्रफुल्लित करने में समर्थ हैं और हम प्रेम मुदित मन से भारत माता की जय पुकारते हैं|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here