प्रजातंत्र विरुद्ध अराजकता

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानून बिलो को वापस लेने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि इसी महीने होने वाली संसद के सत्र में इन कानून को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी जायेगी। आन्दोलनजीवियों द्वारा इसे भले ही अपनी विजय के रूप में प्रचारित कर अपने हाथों से अपनी पीठ ठोकी जाए, किन्तु इससे प्रजातंत्र की विवशता समझी जा सकती है। 
राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन कि हम किसानों को समझा नही सके। इतनी पवित्र बात,,पूर्ण रूप से शुद्ध,किसानों के हित की बात हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नही पाये। कृषि अर्थशास्त्रियों ने,वैज्ञानिकों ने सभी ने इस बिल की सार्थकता पर प्रकाश डालने और इसके दूरगामी परिणामो को समझाने की पुरजोर कोशिशें की,परन्तु सभी असफल रहे।
देश के प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के निहितार्थ समझने की आवश्यकता है। भले ही प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है,परन्तु उनके वक्तव्य से इन कृषि कानूनों को वापस लेने की मजबूरी को भी समझने की आवश्यकता है। साथ ही इस घोषणा के बाद कृषि कानूनों को निरस्त करवाने के लिये शुरू हुए आंदोलन को समझने और इससे जुड़े हुए लोगो की जानकारी जुटाना भी आवश्यक है।
जब किसान आंदोलन का एपिसेंटर भारत से 12 हजार किलोमीटर दूर कनाडा बन गया हो,और मोनिंदर सिंह धालीवाल से इसके तार जुड़ गए हो, जो ये कहता रहा है कि कृषि कानून वापस हो भी जाये,तो भी ये आंदोलन चलता रहेगा,और तब तक चलता रहेगा जब तक पूरे पंजाब को खालिस्तान घोषित नही कर दिया जाता। तो क्या किसान आंदोलन के नाम पर चल रहे खालिस्तानी आंदोलन को रोकना इन कृषि कानूनों को वापस लेने के मूल में है?
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के द्वारा  पूर्व में दिया हुआ बयान कि किसान आंदोलन के नाम पर देशविरोधी ताकते काम कर रही है, समय आने पर उसको हम उजागर करेंगे,हमारे पास सभी सबूत मौजूद है। उक्त बयान आज रह रहकर स्मरण आता है।भले ही कुछ लोग इसे उत्तरप्रदेश,हरियाणा या पंजाब चुनाव से जोड़कर राजनीतिक फायदा उठाने वाला कदम माने,,परन्तु पवित्र प्रकाश पर्व पर देश की एकता अखंडता को बनाये रखना, सीधे सीधे एक भारत समर्थ भारत की संकल्पना भी इसके मूल में है।
ये प्रमाण प्राप्त हो चुके है कि कनाडा के  Poetic justice Foundation से इस आंदोलन के तार जुड़े है,26 जनवरी को  Global day of nation नाम का महत्वपूर्ण प्लान तैयार किया था,जिससे देश का माहौल खराब करने की योजना बनाई गई थी। संभवतः इसी को समझते हुए ये कदम उठाया गया है।
किसान आंदोलन के बाद जेल में बंद अर्बन नक्सलियों को छोड़ने। धारा 370 जैसे मुद्दों से भी देश विरोधी गतिविधि संचालित होती रहेगी। कई दौर की वार्ता से और अब स्वयम देश के प्रधान के द्वारा प्रकाश पर्व पर राष्ट्र के नाम उदबोधन के माध्यम से कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी हो, परन्तु उसके बाद भी किसान आंदोलन से जुड़े जिम्मेदारों के बयान की अभी केवल इस घोषणा से कि हमारा आंदोलन समाप्त नही होगा, हमे जब तक लिखित में प्रमाण नही दिया जाता,और किसानों के ऊपर लगे मुकदमो को वापस नही लिया जाता, तब तक आंदोलन चलता रहेगा, यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि कृषि कानून को निरस्त करवाने के नाम पर प्रारम्भ किया गया किसान आंदोलन, गणतंत्र दिवस पर दिल्ली की सड़कों पर अराजकता का नंगा नाच करने वालो पर केंद्रित होने वाला है,जिन्होंने सरे आम राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीकों का अनादर किया।  अब अगली मांग उन पर लदे मुकदमो को वापस लेने से जुड़ी हो जायेगी, और उन्हें बेगुनाह किसान बताते हुए रिहा करने की मांग के साथ ये आंदोलन आन्दोलनजीवियो का चलता रहेगा।
देशविरोधी ताकतों से संचालित मोटी रकम प्राप्त कर सड़के जाम कर यातायात बाधित करने वाले,संसाधनों पर कब्जा करने वाले,ट्रेनों के पहिये रोकने वाले,अर्थव्यवस्था को कमजोर करने में लगे ये आन्दोलनजीवी अब नए रास्ते खोजने में लग गए है।  वास्तविकता तो यही है कि न इन्हें कल किसानों से कोई लेना देना था,न आज है न कल रहेगा।
प्रधानमंत्री देश तोड़ने वाली शक्तियों को रोकने इन षड्यंत्रकारियों के मंसूबे विफल करने के लिए भले ही पूर्ण ईमानदारी से अपने काम पर लगे रहे,परन्तु देश विरोधी ताकते भी अब विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से चुनोती प्रस्तुत करते ही रहेंगे।  इस काम मे उन्हें कई दलों से जुड़े लोगों का समर्थन भी तो प्राप्त है। वह अपने काम पर है और देश का विधान अपने काम पर है,अब ये सत्य समझना हर सजग भारतीय को जरूरी है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ये शब्द स्मरण रखना आज की घृणित राजनीति के दौर में नितांत आवश्यक हैं – हमारे तत्वज्ञान ने और हमारे विचारकों ने तो अधर्म की शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष में निराशा का उपदेश कभी नहीं किया | अधर्म की शक्तियों पर धर्म की शक्तियों की अंतिम विजय का विश्वास हमारे रक्त में दृढमूल है | क्या हम नही जानते कि अपने प्रारम्भिक दिनों में मनुष्य शारीरिक द्रष्टि से कहीं अधिक भयानक और शक्तिशाली जंगली जानवरों से परास्त नहीं हुआ | उसने उन्हें जीतकर अपनी श्रेष्ठता प्रतिपादित की | मनुष्य में अंतरजात अच्छाई की शक्ति दुष्ट शक्तियों को अवश्य एक दिन पराजित कर देगी |
आशुतोष शर्मा
स्वतंत्र लेखक

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