डेंगू एक महामारी : हजारों मौत का कारण

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delguसंजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश मे डंेगू, चिकनगुनिया, मलेरिया और वायरल फीवर ने महामारी का रूप ले लिया है। इस महामारी को रोकने के लिये यूपी सरकार और स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जो प्रयास किये जा रहे हैं, वह नाकाफी नजर आ रहे हैं। न कहीं साफ-सफाई नजर आ रही है, न ही डाक्टरों की टीम मुस्तैद दिख रही है। यूपी के स्वास्थ्य राज्य मंत्री शंखलाल मांझी ही जब डेंगू से बढ़ी संख्या में मौतों की खबरों को अफवाह बता रहे हों तब इस महामारी को लेकर सरकार की गंभीरता का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। जनता के स्वास्थ के साथ खिलवाड़ हो रहा है, यह बात आमजन तो समझ ही रहा है प्रदेश की सर्वोच्च अदालत भी इससे चिंतित हैं। यही वजह थी इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ प्रदेश सरकार-शासन से पूछ रही है कि डेंगू रोकने के लिये उसने क्या किया ? बीमारियां बढ़ने पर अस्पतालों ने मरीजों की जान बचाने के लिये खुद को पहले से कितना तैयार किया था ?
बात सरकारी आंकड़ों की कि जाये तो प्रदेश के प्रमुख सचिव, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण अरुण कुमार सिन्हा स्वयं स्वीकार कर रहें हैं कि राज्य की प्रयोगशालाओं से 16 सितंबर 2015 को प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में डेंगू से 2848 मरीज, जापानी इंसेफलाईटिस बुखार से 177 लोग प्रभावित हुए हैं। इस बुखार से अभी तक 28 लोगों की मृत्यु होने की सूचना है। इसके अतिरिक्त प्रदेश में कालाजार से 76 तथा चिकुनगुनिया से 351 मरीज ग्रसित मिले हंै, लेकिन इन बीमारियों से किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से 1897 लोग ग्रसित हुए हंै, जबकि इस बीमारी से 301 लोगों की मृत्यु होने की जानकारी प्राप्त हुई है।
अभी हाल ही में पंजाब में डेंगू के 1218 केस और 7 मौतें सामने आने के बाद पंजाब में महामारी घोषित कर दी गयी है। सवाल ये है कि आखिर उत्तर प्रदेश में कब डेंगू को महामारी घोषित किया जायेगा ? रोजाना डेंगू से दर्जनों मौतें हो रही हैं लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अफसर आंकड़ों की बाजीगरी में जुटे हैं। डेंगू को लेकर स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों और हकीकत में बहुत बड़ा अंतर है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में अब तक पूरे प्रदेश में डेंगू से सिर्फ तीन मौतें ही हुई हैं। जबकि हकीकत इससे काफी अलग है। प्रदेश छोड़िये केवल लखनऊ की बात करें तो यहाँ डेंगू के 2500 केस सामने आये हैं और 78 मौतें हो चुकी है। वही प्रदेश भर की स्थिति तो और भयावह हो सकती है। पूरे प्रदेश में डंेगू से मौत के जो गैर सरकारी आंकड़े आ रहे हैं,उसके अनुसार डेंगू से मरने वालों की संख्या हजार की ऊपर पहुुच चुकी है।
लखनऊ में पिछले दिनों राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष मुन्ना सिंह चैहान की डेंगू से निधन हो गया था। 61 वर्षीय मुन्ना सिंह चैहान को 27 अगस्त को तेज बुखार की शिकायत के बाद एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी जांच की जा रही थी इसके बाद उनको डेंगू की पुष्टि हुई जिसके बाद उन्हें लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां की मौत हो गई थी। अभी कुछ दिन पहले ही राजधानी लखनऊ के गाजीपुर थाना क्षेत्र के भूतनाथ में तैनात चैकी इंचार्ज कृष्ण गोपाल शर्मा और एक दरोगा अनिल कुमार पाण्डेय की डेंगू से मौत हो गई थी। इस हादते के बात पुलिस के बड़े अधिकारियों को फरमान जारी करना पड़ गया था कि जिस किसी पुलिस वाले को डेंगू होगा,उसे तुरंत छुट्टी दी जायेगी।
शासन से लेकर प्रशासन तक सभी डेंगू की रोकथाम के लिए दावे तो खूब कर रहे हैं लेकिन सारे दावे फेल नजर आ रहे हैं। डेंगू का आतंक और उसकी दहशत लोगों में बुरी तरह फैली हुई है। सरकारी अस्पताल ही नहीं निजी अस्पतालों में भी डेंगू के मरीज भरे पड़े हैं। पूरे प्रदेश में डेंगू का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। शहर में रहने वाले लोगों का यह सौभाग्य है कि उन्हें गाॅव जैसे हालात का सामना नहीं करना पड़ रहा है। यूपी के तमाम गांवों में जहां आजादी के 70 वर्षो के बाद भी चिकित्सीय सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं,वहां डेंगू या चिकनगुनिया जैसी महामारी फैल जाना,मौत को दावत देने से कम नहीे है।
कई जिलों में तो डेंगू के लिये अलग से विभाग ही नहीं बन पाये हैं। अगर बने भी हैं तो बंद पड़े हुए हैं। इससे भी दुख की बात यह है कि प्रदेेश भर में फैली महामारी को कुछ चिकित्सकों और पैथोलाजी के गठजोड़ ने धन उगाही का धंधा बना लिया है। प्लेटलेट्स की जांच के नाम पर मरीजों को ठगा जा रहा है। डेंगू के नाम पर निजी अस्पतालों में मरीजो को कैसे लूटा जाता है, इसकी बानगी एक चिकित्सक के शब्दों में समझी जा सकती है। यह चिकित्सक नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताते है कि निजी अस्पताल पहुंचते ही डाॅक्टर ईसीजी प्लेटलेट्स और दूसरी जांच के बाद मरीज की कंडीशन क्रिटिकल बताकर उसे आइसोलेट करने की सलाह देते है। आइसोलेट से इनका मतलब आईसीजी से होता है। आईसीजी में लगें माॅनिटर, 24 घंटे बीपी-प्लस रेट और ईसीजी की डिजिटल रिपोर्ट ये सब देखकर परिवारीजन समझते है कि बेहतर इलाज हो रहा है। आईसीजी में तैनात रहने वाले डाॅक्टर की फीस और आॅनकाल आने वाले डाॅक्टर की फीस वसूली जाती है। मरीज के सिरे के पास लगा माॅनिटर और उसमें होंने वाले बीप की आवाज से मरीज व तीमारदार सहमें रहते है। आईसीयू में किसी का भी आना-जाना बंद रहता हैै। बस, इसी के बहाने मरीज के ट्रीटमेंट बुक पर मानमानी एंट्री होती है। तीमारदार बस पैसा जमा करता रहता है। हकीकत ये है कि डेंगू या बुखार के मरीजों का इलाज आईसीयू में करने से ठीक नहीं होता है, जितना बड़ा अस्पताल होगा उसके आईसीयू का उतना बिल होगा ।
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भारत 2030 तक होगा मलेरिया मुक्त

यह दुर्भाग्य ही है कि सीमित साधनों के बावजूद अपनी इच्छाशक्ति के बल पर भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में मलेरिया जैसी महामारी पर पूरी तरह काबू पा लिया गया है, मगर भारत में इसकी डेडलाइन वर्ष 2030 की रखी गई है। भारत सरकार का मलेरिया उन्मूलन अभियान अपने मकसद मे अबतक नाकामयाब रहा है। अपनी नाकामयाबी को छिपाने के लिये मलेरिया उन्मूलन का काम देख रहे अधिकारियों का कहना था कि मच्छरों को मिटाने के लिए जिन दवाओं का छिड़काव किया गया। वो धीरे-धीरे मच्छरों पर अपना असर खोने लगी हैं, क्योंकि मच्छरों मे जेनिटिक बदलाव आते गए, इसलिए मलेरिया को अब तक खत्म नही किया जा सका है। वैसे यूपी की ही जनता डेंगू से प्रभावित नहीं है। कई राज्यों में यह महामारी का रूप लिये हुए है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी स्वीकार कर रहा है कि पूरी दुनिया मे करीब 250 करोड़ जनता डूंेग से प्रभावित है। वहीं वैज्ञानिक अगले वर्ष तक डेंगू से निपटने का टीका बना लेने की बात भी कर रहे हैं। श्री लंका ने मलेरिया के खिलाफ 1911 में जंग छेड़ दी थी। उस दौरान यह बीमारी अपने चरम पर थी और लगभग 15 लाख लोग मलेरिया की चपेट में थे। 1963 तक आते-आते पूरे देश में मात्र 17 मामले ही मलेरिया के रह गए थे लेकिन जब ऐसा लगने लगा कि श्रीलंका इस बीमारी से जीत जाएगा, तभी फंडिंग बंद कर दी गई और मलेरिया ने दोबारा अपनी जड़ें जमा लीं। जड़ से इसके खात्मे में 40 से ज्यादा साल लग गए। 2006 में एक हजार मामले सामने आए, जबकि अक्टूबर 2012 से अब तक एक भी मलेरिया का केस कहीं भी सामने नहीं आया।

डेंगू महज हौव्वाः स्वास्थ्य मंत्री,यूपी

उत्तर प्रेदश में डेंगू के प्रकोप से ताबड़तोड़ हो रही मौतों को अनदेखा करते हुए राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री सुधीर रावत ने विवादास्पद बयान देते हुए कहा, ‘डेंगू को महज हौव्वा बनाया जा रहा है। दरअसल, कंपनियां और डॉकटर मिलकर डेंगू जांच की किट बेचने की साजिश रच रहे हैं। हर बुखार डेंगू नहीं है। और तो और डेंगू से मरने वालों की संख्या भी ज्यादा नहीं है।’ मंत्री ने कहा कि लोगों को डेंगू कहकर डराया जा रहा है। राज्य में आलम है कि लोग साधारण मच्छर से भी घबराने लगे हैं। मलेरिया, टॉयफाइड सरीखे बुखार को भी डेंगू, चिकनगुनिया बताया जा रहा है। अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
डेंगू पर लापरवाही बर्दाश्त नहींः मुख्य सचिव,यूपी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहिमत कई जिलों में डेंगू के प्रकोप के मद्देनजर राज्य के मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने आगाह किया कि डेंगू के उपचार और रोकथाम में किसी भी स्तर पर लापरवाही को बर्दाश्त नहीं की जायेगी। मुख्य सचिव ने सभी जिलाधिकारियों और मंडलायुक्तों से कहा है कि डेंगू से बचाव के लिए लखनऊ सहित सभी जिलों में वृहद सफाई अभियान चलाया जाए।

भटनागर ने सभी जिलों के नगर स्वास्थ्य अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के साथ सामंजस्य कर हर जगह एंटी लार्वा का छिड़काव कराया जाये. रोग से बचाव के लिए जन जागरूकता अभियान चलाया जाये और कहीं भी कूड़ा एकत्र ना होने दिया जाये. प्रवक्ता के मुताबिक मुख्य सचिव ने कहा कि डेंगू के उपचार एवं रोकथाम में किसी भी स्तर पर लापरवाही क्षम्य नहीं होगी और सरकारी अस्पतालों में इमरजेंसी ड्यूटी पर तैनात डाक्टरों की शत प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित की जाए।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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