भगवान भोलेनाथ को “मनाने” चले भक्त कावड़िये

प्रदीप कुमार वर्मा

मन में भगवान भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा। जुबान पर बम बम भोले का जय घोष। कंधों पर पवित्र गंगाजल से भरी कावड़। और गंगाजल को शिव मंदिर में चढ़ाने का जुनून। सावन के महीने में पवित्र कावड़ यात्रा का यही नजारा इन दिनों दिखाई पड़ रहा है। आदि देव महादेव की आराधना का पर्व कहे जाने वाले सावन के महीने में गंग तीर्थ से कावड़ लाकर शिव मंदिरों पर जलाभिषेक करने की परंपरा काफी प्राचीन है। कावड़ यात्रा का शुभारंभ सावन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है। इस साल देश में कावड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू जो रही है। इस साल सावन मास में कुल चार सोमवार पड़ेंगे। कांवड़ यात्रा सावन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर कृष्ण चतुर्दशी तक यानि सावन की  शिवरात्रि तक चलती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है, इसलिए कृष्ण पक्ष को भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए अच्छा माना जाता है।

      ऐसी पौराणिक मान्यता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान विषपान करने से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था, तब उसके प्रभाव को कम करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया गया। इसी तरह आज भी शिवलिंग पर जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भोलेनाथ भक्‍तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कावड़ यात्रा शिव की असीम भक्ति का प्रतीक मानी जाती है। इस दौरान कावड़िए पैदल चलकर पवित्र तीर्थस्थानों से गंगाजल लेकर आते हैं और उससे शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। कावड़ के प्रकार की बात करें तो वर्तमान में चार प्रकार की कावड़ प्रचलन में है जिनमें साधारण, डाक, खड़ी, और झूला कांवड़ शामिल हैं। पवित्र कावड़ यात्रा के संबंध में एक प्राचीन मत यह भी है कि  त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की नींव रखी थी। कथा के अनुसार अपने अंधे माता-पिता की तीर्थ यात्रा की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने उन्हें कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लाया और गंगा स्नान कराया। 

          लौटते समय वे साथ में गंगाजल भी ले गए, जिससे यह परंपरा शुरू हुई। वैसे तो भारत मे कावड़ यात्रा में कई प्रमुख रास्ते शामिल हैं। लेकिन हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री इसके मुख्य शुरूआती स्थल माने जाते हैं। भक्त यहां से पवित्र गंगा जल लेकर अलग-अलग शिव मंदिरों की ओर रवाना होते हैं। हरिद्वार वाला रास्ता सबसे लोकप्रिय है, जिसमें श्रद्धालु हरिद्वार से ऋषिकेश के नीलकंठ महादेव मंदिर या उत्तर प्रदेश के बागपत में स्थित पूरा महादेव मंदिर तक यात्रा करते हैं। कुछ भक्त गौमुख जाकर वहां से गंगाजल लेते हैं और फिर अपनी पसंद के शिव मंदिर तक यात्रा करते हैं। गंगोत्री भी एक पवित्र स्थान है, जहां से भक्त गंगाजल लेकर वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर या झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम तक पहुंचते हैं। इसी तरह, देश में कई जगहें हैं जहां से लोग गंगाजल लेकर अपने-अपने शिव मंदिरों तक जाते हैं और वहां शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा करते हैं। 

         धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। कहा तो यह भी जाता है कि इस यात्रा से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, इससे अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है। मान्यता यह भी है कि जो भक्त पूरी श्रद्धा, नियम और संयम से यह यात्रा करते हैं, उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।  गंग तीर्थ से पवित्र गंगाजल लाकर अपने इलाके के शिवालयों में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने की यह प्राचीन परंपरा सर्वाधिक रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा तथा बिहार और पश्चिम बंगाल में है। सावन के महीने में इन दोनों कावड़ यात्रा के चलते काफी रौनक देखने को मिलती है बता भगवान भोलेनाथ के भक्ति कावड़ चढ़कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।  इसके अलावा कई भक्त विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए भी कावड़ यात्रा करते हैं। 

         उधर, सावन का महीना आते ही श्रद्धा, विश्वास और आस्था का प्रतीक मानी जाने वाली कावड यात्रा पर राजनीति शुरू हो जाती है।  पिछले पांच सालों से यात्रा हर बार किसी न किसी विवाद के कारण सुर्खियों में रही है। फिर  चाहे वह कांवड़ियों पर हेलिकॉप्टर से पुष्पवर्षा हो, कांवड़ की ऊंचाई को लेकर नियम हो, या फिर कांवड़ मार्ग पर होटलों और दुकानों के मालिकों की पहचान की अनिवार्यता संबंधी सरकारी फरमान। इस बार भी उत्तर प्रदेश की योगी तथा उत्तराखंड की धामी सरकार ने कावड़ यात्रियों की सुविधा, सुरक्षा तथा सुगमता के साथ-साथ कावड़ यात्रियों की आस्था और धार्मिक मान्यताओं के चलते कावड़ यात्रा पर पड़ने वाले मार्ग पर स्थित दुकानों पर नेम प्लेट लगाने का आदेश जारी किया है। इस आदेश के पीछे सरकार की मंशा यह है कि कावड़ यात्रियों के लिए शुद्ध एवं पवित्र भोजन तथा जलपान की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।

        इसके उलट विपक्ष इसे हिंदू-मुसलमान में बांटने की कोशिश बता रहा है।  कावड़ जल चढ़ाने के सबसे शुभ दिनों की बात करें तो सावन सोमवार, सावन प्रदोष व्रत और सावन शिवरात्रि का दिन जल चढ़ाने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। वैसे ज्यादातर श्रद्धालु सावन शिवरात्रि के दिन कावड़ जल शिवलिंग को अर्पित करते हैं। धार्मिक उत्सव के साथ-साथ पवित्र कावड़ यात्रा बीते सालों में विवाद का कारण बनी है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कावड़ियों के लिए जहां ऐतिहासिक इंतजाम किए हैं वहीं, विपक्ष से एक धर्म विशेष को खुश करने की कोशिश बता रहा है। पूर्व की भांति ही इस बार कावड़ यात्रा के मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों पर दुकानदारों तथा उस पर काम करने वाले लोगों को नाम और पते लिखना अनिवार्य किया गया है। जिसको लेकर भी सियासी खिंचतान देखनो को मिल रही है। कावड़ यात्रा पर हुए विवाद के इतिहास पर गौर करें तो वर्ष 2022 में मांस और शराब की बिक्री पर प्रतिबंध को लेकर विवाद हुआ। 

         विपक्ष ने इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव बताया, जबकि सरकार ने इसे कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने का कदम करार दिया। इससे एक साल पूर्व वर्ष 2023 में कांवड़ियों पर हेलfकॉप्टर से पुष्पवर्षा और यात्रा मार्गों पर विशेष सुविधाओं को लेकर सवाल उठे थे। बीते साल 2024 में कांवड़ मार्ग पर दुकानों और ढाबों के लिए नेमप्लेट अनिवार्य करने का आदेश सबसे बड़ा विवाद बना। मुजफ्फरनगर में शुरू हुआ यह नियम पूरे प्रदेश में लागू किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए अंतरिम रोक लगा दी थी। वर्ष 2025 में भी नेमप्लेट विवाद ने फिर से जोर पकड़ा है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ मार्ग पर दुकानदारों के लिए नाम और लाइसेंस प्रदर्शित करने का नियम बनाया, जिसे विपक्ष ने सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला कदम बताया है। लेकिन इस सब को भुला कर भगवान भोलेनाथ के भक्त अपने कंधों पर कावड़ लेकर उन्हें मनाने के लिए अपने गंतव्य और शिवालयों की ओर निकल पड़े हैं।

प्रदीप कुमार वर्मा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here