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मनोज ज्वाला
कायदे से होना तो यह चाहिए था कि वोटों के लिए मुस्लिम-समाज को
तुष्ट करने हेतु इस्लामी-जिहादी आतंक पर पर्दा डालने के बावत ‘भगवा आतंक’
नामक षड्यंत्र रच कर जिन बेगुनाह साध्वी-सन्यासी व अन्य लोगों को वर्षों
तक जेल में यातनायें दिलाते रहे थे कांग्रेस के नेता-नियन्ता उन सब को
जांच-एजेन्सियों से क्लीनचीट मिल जाने के बाद न्यायालय उन तमाम कांग्रेसी
षड्यंत्रकारियों को भी उसी तरह का सेवा-सत्कार मुहैय्या करा कर उन्हें
उनकी काली करतूतों का ‘पुरस्कार’ प्रदान कर देता । किन्तु अपने देश की
विधिक व्यवस्था ही ऐसी है कि किसी भी झुठे मुकदमे में फंसने वाला व्यक्ति
अपनी बेगुनाही सिद्ध करते तक उस मामले के निर्धारित दण्ड से भी ज्यादा
सजा व प्रताडना झेल चुका होता है, जबकि इत्मीनन से मजे लेते हुए उसे
फंसाने वाला व्यक्ति उसके बेगुनाह सिद्ध हो जाने और जांच-एजेन्सियों व
न्यायिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर चुके होने के बावजूद धृति-उपदेशक बना
रहता है । क्योंकि, न्यायिक प्रक्रिया की जटिल तकनीकी बारिकियों के कारण
वह पकड में आ ही नहीं पाता । किन्तु सियासत व शोहरत की कुव्वत के बदौलत
सफेद नकाब धारण किए हुए ऐसे लोग शासनिक सत्ता की न्यायिक प्रक्रिया से
भले ही बच जाते रहे हों , लेकिन प्रकृति की न्याय-व्यवस्था उन्हें एक न
एक दिन बेनकाब कर के सजा सुना ही देती है । ‘भगवा आतंक’ नामक षड्यंत्र रच
कर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को वर्षों तक प्रताडित करते-कराते रहने वाली
कांग्रेस और उसकी मालकिन के दरबारी ढोलची-तबलची दिग्विजय सिंह के साथ अब
यही हो रहा है । काल के प्रवाह ने प्रतिकूल परिस्थितियां उत्त्पन्न कर
उन्हें जनता की अदालत में धकेल दिया है । इतना ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र
के कठघरे में हाजिर होने के लिए उनकी हांक लगायी जा रही है । अब उन्हें
उन सभी सवालों के जवाब देने होंगे, जो उनके द्वारा एक शांत सहिष्णु सनातन
समाज को आतंकवादी सिद्ध करने तथा एक साधु-साध्वी के निष्कलंक व्यक्तित्व
को कलंकित करने और निर्दोष-निरिह लोगों को जेलों में बन्द कर प्रताडित
कराने के वीभत्स व कुत्सित कारनामों से उपजे हैं । कांग्रेस का वोट-बैंक
सुरक्षित करने व भाजपा के बढते जनाधार की राह रोकने के बावत संघ-परिवार व
अन्य हिन्दू-संगठनों को बदनाम करने हेतु शासनतंत्र का गलत इस्तेमाल कर
‘हिन्दू-आतंकवाद’ व ‘भगवा-आतंक’ नाम की अनुचित अवांछित खतरनाक अवधारणा
गढने-रचने वाले दिग्विजय सिंह तो अपना अपराध बहुत पहले स्वयं ही स्वीकार
भी कर चुके हैं । अब तो बस जरुरत है उन्हें उनके उन बयानों का स्मरण
दिलाने और फैसला सुनाने की । यहां यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस-नेतृत्व
वाले युपीए०-शासन के दौरान जिन दिनों इस्लामी जिहादी आतंक पर पर्दा डालने
के बावत हिन्दू-समाज को आतंकवादी सिद्ध करने का उनका षड्यंत्र
शांत-सहिष्णु हिन्दू समाज के धवल निर्मल पर्दे पर ‘भगवा आतंक’ नाम से
फिल्माया जा रहा था, जिसे देख-सुन कर पूरा देश हतप्रभ था उन्हीं दिनों
सिंह जी ने उस फिल्म के निर्माण का श्रेय स्वयं लेते हुए यह बयान दिया
हुआ था कि “भगवा आतंक पर काम करने के लिए दस-जनपथ को तैयार करने में मुझे
चार वर्ष का समय लग गया” । ऐसे एक नहीं अनेक बयान हैं दिग्विजय सिंह के
जो प्रमाणित करते हैं कि हिन्दू-समाज को आतंकवादी सिद्ध करने के लिए भाडे
के मुस्लिम आतंकियों को हिन्दू-शक्ल दे कर समस्त भारत भर में
हिंसक-विस्फोटक हमला करा कर उसे भगवा आतंक नाम से प्रचारित कराने की
योजना इन्हीं के दीमाग की एक ऊपज थी । इनका नार्को-टेस्ट कराने की कोई
जरूरत नहीं है । बहरहाल इनसे कतिपय सवालों के जवाब ले लेना ही पर्याप्त
है ।
……. तो जनता की अदालत में इधर से उधर घूम रहे दिग्विज्य सिंह
! आप कठघरे में आइए और यह बताइए कि कश्मीर घाटी से हिन्दुओं कर सफाया कर
देने वाले तथा भारतीय सुरक्षा-बल के जवानों पर हमला करते रहने वाले और
वाराणसी दिल्ली मुम्बई आदि महानगरों के सार्वजनिक स्थानों पर ही नहीं
बल्कि भारत की संसद में भी बम-विस्फोट करने वाले आतंकियों में सारे के
सारे मुस्लिम होने के बावजूद आपके अनुसार आतंकवाद का कोई धर्म, रंग या
मजहब नहीं होता है, तो फिर आपने अजमेरशरिफ व मालेगांव विस्फोट मामले से
महज संयोगवश कुछ हिन्दुओं का नाम जुड जाने पर उसे ‘हिन्दू आतंकवाद’ व
‘भगवा आतंक’ नाम से कैसे विभूषित कर दिया ? जिस मालेगांव-विस्फोट मामले
में गिरफ्तार ०९ मुस्लिम युवकों ने अपना वह अपराध कबूल कर लिया था, उसी
मामले में उन सभी अपराधियों को रिहा करा कर हिन्दू युवकों को आरोपित
करने-कराने का खेल जांच-एजेन्सियां किसके इशारे पर खेल रही थीं ? जुलाई
२००९ में अमेरिकी सरकार के ट्रेजडी डिपार्टमेण्ट ने अपने एक एक्स्क्युटिव
ऑर्डर (संख्या- १३२२४) में इस्लामी जिहादी गिरोह- ‘लश्कर-ए- तोएबा एवं
‘अल कायदा’ से जुडे चार आतंकियों का ब्यौरा जारी करते हुए उन्हें भारत के
समझौता एक्सप्रेस-विस्फोट मामले का आरोपी सिद्ध कर रखा था, जिसके आधार पर
संयुक्त राज्य सुरक्षा परिषद ने इन्हें प्रतिबन्धित कर दिया था और
पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मल्लिक ने भी डॉन अखबार (२३ जनवरी, २०१०)
को दिए साक्षात्कार में साफ-साफ यह स्वीकार किया हुआ था कि “समझौता
एक्सप्रेस-विस्फोट में पाकिस्तानी आतंकियों का हाथ है” तब भी आप उन
मामलों में हिन्दुओं की संलिप्तता का राग आखिर क्यों आलाप रहे थे ? आप इन
सवालों के जवाब नहीं दे सकते तो कम से कम यही बता दीजिए कि मुम्बई-ताज व
शिवाजी टर्मिनल पर हुए विस्फोट में हिन्दू-संगठनों का हाथ कैसे दिखा था
आपको ? और , उस हाथ को हिन्दू प्रमाणित करने के लिए आपने ०६ दिसम्बर २०१०
को जिस अजीज बर्नी की किताब- ‘आरएसएस की साजिश’ का लोकार्पण किया था उसकी
कितनी प्रतियां मुद्रित हुई थीं ? मैं जानता हूं कि जनता की अदालत को आप
यही कहेंगे कि आपको नहीं मालूम । तो लीजिए मैं बताता हूं- नामी-गिरामी
लेखकों की महत्वपूर्ण पुस्तक भी प्रथम संस्करण में जहां एक हजार से अधिक
नहीं छपती हैं, वहीं उस किताब की पच्चीस हजार प्रतियां छपी थीं , पूरे
देश भर में वितरित करने के लिए । उस किताब का लेखन-प्रकाशन आपके भगवा
आतंक नामक षड्यंत्र के तहत ही हुआ था या नहीं ? मैं जानता हूं आप कुछ
नहीं बोलेंगे, क्योंकि जनता की अदालत में उस अजीज बर्नी का बयान पहले ही
आ चुका है । उस किताब का आपके हाथों विमोचन होने के एक साल बाद अजीज
बर्नी ने जनता से माफी मांगते हुए अपने उक्त माफीनामें में यह कह रखा है
कि “भारतीय नागरिक होने के नाते भारत की विदेश नीति के तहत वह हमेशा
भारत-सरकार के फैसले का पक्षधर रहा है किन्तु उस किताब के बावत यु०पी०ए०
सरकार ने उससे जो कहा, वही उसने लिखा” । अब आप कह सकते हैं कि उस दौर की
युपीए० सरकार में किसी पद पर नहीं थे आप । -जाहिर है । लेकिन सरकार की
रिमोट-कण्ट्रोलर का खास प्यादा आप ही थे धिग्गी बाबू । और अगर नहीं, तो
फिर यह बताइए कि टुकडे-टुकडे तारों को जोड-मोड कर भगवा आतंक नामक आपके
षड्यंत्र को एक दैत्य का आकार देने के काम पर आपकी सरकार ने जिस
आई०पी०एस० अधिकारी- हेमन्त करकरे को प्रतिनियुक्त कर रखा था, उस करकरे के
सरकारी फोन पर आप किस हैसियत से इस सम्बन्ध में लगातार बातें किया करते
थे ? अब आप यह नहीं कह सकते कि बात नहीं करते थे, क्योंकि आप उस आईपीएस
अधिकारी के साथ बैठकें भी किया करते थे, जिसका पूरा ब्योरा गृहमंत्रालय
के एक अण्डर सेक्रेटरी आरवीएस मणि की पुस्तक में दर्ज है, जबकि करकरे के
‘चूक जाने’ के बाद आप स्वयं यह बयान दे चुके हैं कि ताज में विस्फोट होने
से महज दो घण्टे पूर्व करकरे ने फोन पर आपको बता दिया था । क्या बताया
था यह जानने की जरुरत नहीं । और , आपने जब यह तय कर लिया है कि किसी भी
सवाल का कोई जवाब नहीं देंगे, तो मत दीजिए, जनता की अदालत भी फैसला कर
चुकी है, जो फिलहाल सुरक्षित है ।
• मनोज ज्वाला