प्रगति मैदान लग गया,पुस्तक का भण्डार
अपना अपना शोर है, अपनी अपनी रार!
बड़े-बड़े लोगों के ,अपने अपने स्टाल,
वे ही सब ले जायेंगे,पुरुस्कार या शाल!
बड़े बड़े अब रचयिता, आये दिल्ली द्वार,
किसकी किताब ने किया,सर्वाधिक व्यापार?
कवि व्यापारी से लगें,जब बेचते किताब,
आज एक से लग रहे, आफ़ताब महताब!
मेला किताब का लगा,होगा कुछ व्यापार,
बढ़िया पुस्तक के लिये,होंगे ख़रीददार।
पढ़ने वालों के लिये ,इतना बड़ा बज़ार,
अपनी पसन्द चुन सको,पुस्तक यहाँ हजार।
मेले मे बिछड़े मिलें, लेखक कवि औ’ मित्र,
चर्चा पुस्तक की करें, लेवें सैल्फी चित्र।