दिल्ली पुस्तक मेला

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प्रगति मैदान लग गया,पुस्तक का भण्डार
अपना अपना शोर है, अपनी अपनी रार!

बड़े-बड़े लोगों के ,अपने अपने स्टाल,
वे ही सब ले जायेंगे,पुरुस्कार या शाल!

बड़े बड़े अब रचयिता, आये दिल्ली द्वार,
किसकी किताब ने किया,सर्वाधिक व्यापार?

कवि व्यापारी से लगें,जब बेचते किताब,
आज एक से लग रहे, आफ़ताब महताब!

मेला किताब का लगा,होगा कुछ व्यापार,
बढ़िया पुस्तक के लिये,होंगे ख़रीददार।

पढ़ने वालों के लिये ,इतना बड़ा बज़ार,
अपनी पसन्द चुन सको,पुस्तक यहाँ हजार।

मेले मे बिछड़े मिलें, लेखक कवि औ’ मित्र,
चर्चा पुस्तक की करें, लेवें सैल्फी चित्र।

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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