माहवारी पर विमर्श : बस, सुर्खियों में बने रहने की चाहत

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व्‍यालोक पाठक

men 3हमारे-आपके लिए इसका अंदाज़ा भी लगा पाना मुश्किल है कि महिला सशक्तिकरण में भला माहवारी की क्या भूमिका हो सकती है, लेकिन हालिया कुछ विमर्शों को देखें तो यही कहना पड़ेगा कि सशक्तिकरण में माहवारी की महती भूमिका है। नारीवादी आंदोलन महिलाओं के शरीर को लेकर पहले भी मुखर रहा है, लेकिन इसकी हालिया आक्रामकता कुछ और ही संकेत देती है।

ज़रा, हाल की तीन घटनाओं को इससे जोड़कर देखिए। फेसबुक पर अचानक ही माहवारी पर एक कविता नमूदार होती है, वह फेसबुक से फैलकर पत्रिकाओं में जगह पा जाती है और विमर्श का विषय हो जाती है। हालांकि, यह बात दीगर है कि उस कविता की तीन कवयित्रियां दावेदार हैं। असल का पता अभी तक कम से कम इस लेखक को तो नहीं है। एक बात बस तय है कि इसे कविता कहना भी नासमझी होगी। यह बस खोखले शब्दों का संग्रहमात्र है।

दूसरी घटना में, बीबीसी जैसा सशक्त मीडिया हाउस कनाडा में रहनेवाली एक महिला रूपी कौर की इंस्टाग्राम पर छपी फोटो को वैचारिक जंग का प्रतीक बता दिया। आप सोचेंगे, वह तस्वीर कौन सी थी? तस्वीर माहवारी के दौरान रूपी कौर के खून लगे पाजामे और बिछावन की थी।

इन दोनों ही घटनाओं में साझा क्या है? माहवारी को महिला सशक्तिकरण से जोड़ कर देखना। यहीं, ठहरकर आप जैसे ही कुछ कहेंगे, आपको तुरंत ही ‘मेल-शॉवनिस्ट’, सामंतवादी आदि कहकर गालियों से नवाज दिया जाएगा। ज़रा, यह बताया जाए कि इन दोनों ही बातों से भला महिला-सशक्तीकरण कैसे पाया जा सकता है। ज़ाहिर सी बात है, माहवारी एक बिल्कुल ही सामान्य-सहज और प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसके लिए औरतों को किसी भी तरह की शर्म या ग्लानि के भाव से पीड़ित नहीं होना चाहिए, ना ही किसी भी तरह उन्हें इसके लिए अपमानित किया जा सकता है, किंतु महिला उत्थान की मशाल थामे विद्वानों और विदुषियों से मैं यह भी पूछना चाहता हूं कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया को आप सार्वजनिक विमर्श और प्रसंग का हिस्सा बनाकर कौन सी क्रांति लाना चाहते हैं।

माहवारी की तरह सेक्स भी एक प्राकृतिक क्रिया है, शौच भी एक प्राकृतिक क्रिया है, तो क्या इन सभी क्रियाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन ही औरतों को सशक्तिकृत करेगा? उसी तरह, इस लेखक ने जब कहा था कि माहवारी के बाद अब बवासीर पर लिखी कविता से ही क्रांति का आगाज़ होगा, तो भी उसे काफी निंदा झेलनी पड़ी थी, महिला-विरोधी बताया गया था।

इसी क्रम में ‘वोग’ पत्रिका के लिए दीपिका पादुकोण का ‘माइ बॉडी, माइ च्वाइस’ नामक विज्ञापन देखिए। उसमें सशक्तिकरण का मतलब हमें एक सिने-तारिका समझाती हैं, भले ही डायलॉग किसी ने भी लिखे हों। दीपिका पादुकोण जैसी समाजविज्ञानी, अपने शरीर, मन औऱ चेतना पर अधिकार का दावा इससे तय करती है कि वह कितने दिन किससे प्रेम करेगी, स्थायी या अस्थायी तौर पर करेगी, शादी के पहले या बाद किसी के साथ सेक्स करेगी, शादी के बाहर करेगी या भीतर करेगी, सुबह 4 बजे घर लौटेगी, या शाम के छह बजे, जिससे सेक्स करेगी, उसका बच्चा पैदा करेगी या नहीं…वगैरा-वगैरा। वैसे, जिनको याद नहीं, उन्हें बता दें कि यह वही दीपिका है, जिसने अपने वक्ष-विदरण (क्लीवेज) की फोटो छापने पर एक अख़बार की मलामत की थी।

दीपिका के इस वीडियो और उसके बहाने महिलाओं पर बात के लिए दो-तीन आय़ामों को समझना ज़रूरी है। पहला, तो यह कि वीडियो ‘वोग’ नामक पत्रिका का  है और उसका लक्ष्य-समूह (टारगेट ऑडिएंस) कौन सा है, यह बड़ी आसानी से समझ में आ सकता है। अब ज़रा, ‘वोग’ नामक इस पत्रिका के महिला सशक्‍तीकरण कार्यक्रम की हकीकत भी जानिए।

वोग दरअसल, पश्चिमी देशों की उस नस्लवादी और उपनिवेशवादी मानसिकता का परिचायक है, जिसका अभियान बहुआयामी होता है। इस पत्रिका के नाम में इंडिया जोड़ देने से इसमें कुछ भी भारतीय नहीं जुड़ जाता है। यह दरअसल उस साम्राज्यवादी कुचक्र का हिस्सा है, जिसकी शुरुआत 1996 में ईवा एन्सलर ‘वैजाइना मोनोलॉग्स’ नामक नाटक से करती हैं और अंत 2012 में One Billion Rising नामक एक अभियान से। इसके केंद्र में V-Day, ईवा एन्‍सलर, कमला भसीन, आभा भाया जैसी धवलकेशी एनजीओइट महिलाएं हैं।

1996 से 2012 और अब 2015 तक की यात्रा भी बड़ी मज़ेदार है। एन्सलर ने यह नाटक 1996 में पहली बार हेयर आर्ट्स सेंटर में करने के बाद ब्रॉडवे तक की मंज़िल तय कर ली थी। यह नाटक तथाकथित तौर पर महिलाओं की व्यथा, कुंठा और परेशानियों को पेश करता है, हालांकि इसके कुछ एपिसोड के नाम ‘एंग्री वैजाइना’ और ‘रिक्लेमिंग द कंट’ का अनुवाद अगर यह लेखक खांटी हिंदी में कर दे, तो क्या होगा…यह पाठक समझ खुद समझ लें। कहने को यह महिलाओं की समस्याएं बताता है, पर इसमें मुख्यतः हस्तमैथुन, रेप, ऑर्गैज्म के बहाने पुरुषों को सबसे बड़ा वर्गशत्रु साबित किया जाता है।

अमेरिका से 1996 में शुरू हुआ यह अभियान अब भारत पहुंच चुका है और अश्वमेध के घोड़े की तरह बगटूट भाग रहा है। इतना याद दिलाना अप्रासंगिक नहीं होगा कि बीच में V-DAY और One Billion Rising जैसे कार्यक्रम भी इस अभियान का हिस्सा बन गए। इन योनि-एकालाप (वैजाइना मोनोलॉग्स) के जरिए अब तक 100 मिलियन डॉलर उगाहे जा चुके हैं। यह बात भी अब खुले में है कि दुनिया भर में निर्भया कांड के बाद भारत की जो थू-थू हुई, उसेक बाद अचानक ही एन्सलर नारी अधिकारों को लेकर सक्रिय हुई थीं, 2012 में ही V-DAY की शुरुआत हुई। एन्सलर दिल्ली के फिक्की सभागार में शहर भर की धवलकेशी एनजीओआइट महिलाओं के साथ जलसा करती हैं और भारत के कुछ नारीवादी संगठनों के पास महिला अधिकारों के नाम पर डकारने के लिए कई करोड़ रुपए आ गए थे। ख़बर तो यह भी है कि एक खांटी महिलावादी- जो नारीवाद की दुकान चलाती है- को 50 करोड़ रुपए मिले थे। इसके बाद ही हुए तथाकथित India Gate Uprising में इस प्रोजेक्‍ट से करोड़ों रुपये झोंके गए थे जिसके बल पर अचानक से इस देश में महिलावाद की आंधी चल पड़ी थी। दीपिका पादुकोण इसी अभियान की अघोषित ब्रांड राजदूत हैं।

इस पूरे प्रकरण को विस्तार से बताने के पीछे की मंशा इतनी सी है कि यह समझ लिया जाए कि यह वर्ग कौन है, जो इस पूरे विमर्श को हांक रहा है। कहने की बात नहीं कि ‘वोग’ और ईवा एन्सलर का लक्ष्य-समूह भारत का वह खाया-पीया अघाया नव-धनाढ्य, नव-उदारवादी वर्ग है, जो तमाम शब्दों के मायने बदल रहा है।

आज, जब नारीवाद का अनुवाद ही पुरुष-विद्वेष कर दिया गया है, तो इस षड्यंत्र को समझने के लिए रॉकेट-साइंस जानने की ज़रूरत नहीं है। दीपिका पादुकोण भी उसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो पेटा के विज्ञापनों में अवतरित होकर ‘सुशी’ का लुत्फ उठाता है, गरीबी पर चर्चा करने पांच सितारा होटलों में बैठक करता है।

माहवारी पर कविता(?) लिखना अधिक से अधिक सुर्खियों में बने रहने की चाहत को दिखाता है, क्योंकि इसकी कवयित्रियों को भी बस्तर, कोहिमा, पलामू, चाइबासा, दरभंगा, सीवान, जौनपुर, आजमगढ़ इत्यादि की महिलाओं का दर्द समझना तो दूर, उसे समझने की कोशिश तक करना मंजूर नहीं है।

बाक़ी, विमर्शों का क्या है? वह तो होते ही रहेंगे…होते ही रहे हैं…..

3 COMMENTS

  1. सारा खेल ख़बरों में रहने व सुर्ख़ियों का है , रहा सहा कोई एन जी ऒ बना पैसे बनाने का है शेष किसी का कोई मकसद नहीं है , आज बाजारवादिता का युग है , इसलिए भी ऐसे मुद्दे उठा कर कुछ बेचा जा सकता है लाभ कमाया जा सकता है , इस से आगे कोई कहानी नहीं है

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