भारतवर्ष का बहुसंख्य हिंदू समुदाय जिस भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहकर संबोधित करता हो और मुस्लिम समुदाय से संबंध रखने वाले विश्व के जाने-माने कवि अल्लामा इकबाल ने जिस भगवान राम को ‘इमाम-ए-हिंद’ कहकर संबोधित किया हो तथा सिख समुदाय के सबसे पावन धर्मग्रंथ गुरु ग्रंथ साहब में जिस रामनाम का अनेक बार उल्लेख किया गया हो वही भगवान राम दुर्भाग्ययवश हमारे ही देश में अक्सर किसी न किसी आलोचना का शिकार होते दिखाई देते हैं।
बड़े आश्चर्य की बात है कि भगवान के रूप में अवतार लेने वाले दशरथ पुत्र श्री राम जैसी असाधारण शख्सयत पर आज के दौर के साधारण लोगों द्वारा उंगलियां उठाई जाती हैं। वैसे यह त्रासदी सिर्फ भगवान राम के ही साथ नहीं है बल्कि मोहम्मद,ईसा, नानक, बुद्ध जैसे तमाम महापुरुष व अवतार रूपी लोग किसी न किसी व्यक्ति या समुदाय विशेष के निशाने पर अक्सर देखे जाते हैं। इन पर उंगली उठाने, इनकी आलोचना करने या इनके चाल-चरित्र या इनकी कारगुज़ारियों पर नुक्ताचीनी करने वाले लोग स्वयं अपने व इन महापुरुषों के मध्य के अंतर को भी भूल जाते हैं। ऐसे लोग इन महापुरुषों के विरुद्ध ज़हर उगलने या इन्हें नीचा दिखाने का असफल प्रयास करते समय इस बात को भी ज़ेहन से निकाल देते हैं कि उनकी इस प्रकार की निम्रस्तरीय आलोचना आम लोगों की भावनाओं को भी आहत कर सकती है।
ताज़ातरीन मामला देश के जाने-माने वकील तथा भारतीय जनता पार्टी के नेता राम जेठमलानी से जुड़ा है। उन्होंने अपने एक सार्वजनिक रूप से दिए गए भाषण में यह कहा डाला कि उनकी नज़र में राम दुनिया के सबसे बुरे आदमी हैं। क्योंकि उन्होंने एक मछुआरे के कहने पर अपनी पत्नी सीता को घर से निकाल दिया। जेठमलानी के अनुसार राम का यह फैसला सही नहीं था। उन्होंने आगे कहा कि लक्ष्मण तो राम से भी बुरे थे। क्योंकि जब राम ने लक्ष्मण से सीता की तलाश करने को कहा तो लक्ष्मण ने भी सीता को ढूंढने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह तो उन्हें पहचानते ही नहीं क्योंकि उन्होंने सीता की कभी शक्ल ही नहीं देखी। ज़ाहिर है जेठमलानी के इस बायान के बाद देश में चारों ओर से प्रतिक्रियाओं का दौर शुरु हो गया और उनकी निंदा, आलोचना व उनके वक्तव्य की भत्र्सना किए जाने का दौर चल पड़ा। जेठमलानी से मा$फी मांगने की अपील की जाने लगी। परंतु अपने जीवन के आठ दशक पूरे कर चुके जेठमलानी मा$फी तो क्या मांगते इसके बजाए उन्होंने अपने बयान पर माफ़ी मांगने से इंकार करते हुए आगे एक तीर और यह छोड़ा कि-‘पता नहीं राम थे भी या नहीं’? गोया उन्होंने हिंदू धर्मशास्त्र के अस्तित्व विशेषकर भगवान राम के वजूद को ही चुनौती दे डाली। ज़ाहिर है वे स्वयं देश के एक प्रतिष्ठित वकील हैं इसलिए उनकी हर बात आमतौर पर तर्कों पर आधारित होती है? वैसे भी हमारे देश में योग्य वकील उसे समझा जाता है जिसमें ऐसी क्षमता हो कि वह अपने तर्कों के आधार पर सच को झूठ व झूठ को सच साबित करने की पूरी क्षमता रखता हो।
परंतु राम जेठमलानी जैसे वरिष्ठ वकील, नेता व बुज़ुर्ग व्यक्ति को अपना यह वक्तव्य देने से पूर्व कम से कम इस बात को तो ध्यान में रखना ही चाहिए था कि आख़िर राम के नाम में कुछ ऐसा आकर्षण या विशेषता तो ज़रूर रही होगी जिसके चलते उनके माता-पिता ने उनका नाम कुछ और न रखकर ‘राम’ जेठमलानी ही रखा। दूसरी बात यह है कि भगवान राम के विषय में जेठमलानी का दिया हुआ वक्तव्य वर्तमान ज़माने के साधारण लोगों की साधारण सोच-विचार पर आधारित है। निश्चित रूप से आज के दौर में कोई एक व्यक्ति क्या यदि पूरा समाज भी किसी की धर्मपत्नी को कुछ भी कहता रहे परंतु यदि उसके पति की नज़र में उसकी पत्नी दुरुस्त है तो उसकी पत्नी की आलोचना करने वाला समाज जाए ठेंगे पर। यह आम लोगों की आम सोच है जैसाकि जेठमलानी के मुंह से निकले वक्तव्य से भी ज़ाहिर होता है। परंत ुराम को मर्यादा पुरुषोत्तम यूं ही नहीं कहा गया है। दुनिया में राम राज्य का उदाहरण ऐसे ही नहीं दिया जाता। राम राज्य की परिकल्पना का अर्थ ही यही होता है कि जिसके राज्य में कोई एक भी व्यक्ति असंतुष्ट,परेशान या संदेह की स्थिति में न हो। मछुआरे या किसी धोबी द्वारा सीता पर उंगली उठाया जाना आम लोगों की नज़र में साधारण सी बात हो सकती है। परंतु रामराज्य की मिसाल कायम करने वाले भगवान राम के लिए तो पत्नी मोह आम जनता की संतुष्टि या संतोष के आगे कोई मायने नहीं रखता था। निश्चित रूप से जेठमलानी साहब जिस युग में जी रहे हैं तथा जिस राजनैतिक व्यवस्था का वे भी एक हिस्सा हैं वहां मर्यादा या नैतिकता जैसी बातों का कोई महत्व नहीं है। यहां तो 51/49 का खेल खेला जाता है। 49 अगर गाली दें तो कोई बात नहीं क्योंकि इक्यावन तो मेरे साथ हैं? यह भारतीय लोकतंत्र की गणित तो हो सकती है परंतु रामराज्य की $कतई नहीं। वहां तो यदि किसी एक साधारण से साधारण व्यक्ति को भी कोई शिकायत है तो उसका संज्ञान लिया जाना चाहिए। इसी को कहा गया था असली रामराज्य।
दुर्भाग्यवश आज उस मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के नाम पर सत्ता के खेल खेले जाते हैं । सारे के सारे अमर्यादित, अनैतिक कार्य किए जाते हैं। उन्हीं के नाम का सहारा लेकर धर्म व संप्रदाय के आधारपर समाज को विभाजित करने का काम किया जाता है। रामसेवक या रामभक्त बन कर दंगे-$फसाद कराए जाते हैं तथा सत्ता पर राम नाम के सहारे $काबिज़ होने की कोशिश की जाती है। इनमें से कोई भी बात न तो राम राज्य से मेल खाती है न ही इसका मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के चाल-चरित्र व सिद्धांतों से कोई लेना-देना है। जहां तक भगवान राम के अस्तित्व का प्रश्र है तो यह भी पूरी तरह आस्था और विश्वास से जुड़ा विषय है। इस प्रकार के प्रत्येक धर्म की तमाम धार्मिक घटनाएं उनसे जुड़े तमाम घटनाक्रम, प्रत्येक समुदाय के बच्चों को उनके माता-पिता द्वारा विरासत में हस्तांतरित किए जाते हैं। विशेषकर अधिकांश एशियाई देशों में धर्म की घुट्टी बच्चे को सबसे पहले पिलाई जाती है। और अपना होश संभालते ही वह बच्चा भावनात्मक रूप से अपने धर्म, आस्था और विश्वास के प्रति श्रद्धावान हो चुका होता है। इस लिए यदि बड़ा होने पर आप उसकी धार्मिक आस्थाओं पर चोट करें तो निश्चित तौर पर उसे यह क़तई सहन नहीं होगा। तभी तो कभी सलमान रश्दी के विरुद्ध मौत का $फतवा जारी हो जाता है तो कभी जेठमलानी की गर्दन पर ग्यारह लाख रुपये का इनाम रख दिया जाता है। और तभी बैठे-बिठाए तमाम शांतिपूर्ण नगर दंगों व फसादों की चपेट में भी आ जाते हैं।
वैसे भी यदि आप भगवान राम सहित किसी भी दूसरे धर्म के महापुरुषों या अवतार पुरुषों के विषय में गंभीरता से निष्पक्ष होकर पढ़ें तथा उनके जीवन में उनके द्वारा उठाए गए कष्टों,कुर्बानियों व उनकी तपस्याओं को देखें तथा आज के दौर के कलयुगी लोगों से उसकी तुलना करें तो स्वयं यह पता चल जाएगा कि वे क्या थे, उनका रुतबा व मर्तबा क्या था उनकी कुर्बानियां कैसी थीं, वे कितने त्यागी व तपस्वीथे तथा हम स्वयं क्या हैं। कहां अपनी सौतेली मां के कहने पर 14 वर्ष के लिए अयोध्या का राजपाट त्याग कर जंगल-जंगल घूमते फिरने वाले भगवान राम और कहां आज के वे बेहया राजनीतिज्ञ जो कि भ्रष्टाचार अनैतिकता व आय से अधिक संपति इक_ा करने जैसे तमाम आरोपों में घिरे होने के बावजूद अपनी कुर्सी नहीं छोडऩा चाहते। बजाए इसके अपने ऊपर लगने वाले आरोपों का यही कहकर जवाब देते रहते हैं-‘कि यह सब विपक्ष की साजि़श है’। ऐसे अनैतिक लोग भगवान राम के त्याग व उनके नाम पर लोगों की भावनाएं भडक़ाकर दंगे-फसाद ज़रूर करवा सकते हैं। कलयुग का रामभक्त तो ऐसा राजनीतिज्ञ होता है जो पत्नी के होते हुए तथा स्वयं शादीशुदा होते हुए भी खुद को कुंआरा घोषित करता है और यही कथित रामभक्त देश के प्रधानमंत्री बनने के सपने भी संजोता है।
अंत में मैं बड़ी क्षमा के साथ जेठमलानी के विषय में भी यही कहना चाहूंगा कि अपने पेशे के लिहाज़ से उन्होंने भी न जाने कितने ऐसे मुकद्दमे लड़े हैं जहां उन्होंने कभी किसी आतंकवादी की पैरवी की है तो कभी किसी कातिल का पक्ष लेकर वे अदालत गए हैं। ऐसा करना आज के युग में किसी वकील का पेशा कहा जाता है। परंतु रामराज्य की परिकल्पना ऐसी कतई नहीं थी। वहां झूठ को झूठ और सच को सच कहा जाता था। लिहाज़ा जेठमलानी ने जो कुछ भी कहा वह तर्कों के आधार पर व्यक्त की गई उनकी व्यक्तिगत सोच तो हो सकती है। परंतु ऐसी सोच व्यक्त करने का अधिकार उन्हें कम से कम हरगिज़ नहीं हैं क्योंकि यह भी अभिव्यक्ति की वैसी ही खतरनाक स्वतंत्रता है जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत करती है। वैसे भी मैं व्यक्तिगत रूप से राम जेठमलानी के ऐसे अनर्गल व बकवासपूर्ण वक्तव्यों से इसलिए भी बेहद आहत हुआ हूं क्योंकि मैं देश के उस श्री रामलीला क्लब का संयोजक हूं जो भगवान राम की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले का निर्माण कर उसका दहन करता है तथा दुनिया को यह संदेश देता है कि बुराईयां अपना कद चाहे जितना क्यों न बढ़ा लें परंतु अंत में बुराईयों को समाप्त ही होना पड़ता है रावण के बुराई के प्रतीकरूपी पुतले की तरह।
तनवीर जाफ़री
जेठमलानी जी, एक बुद्धिमान वकील– के विचारार्थ:
यदि राम जन्मे ही ना होते, तो क्या, कश्मीर से कन्याकुमारी तक, समस्त भारत के समाज ने एक षड्यंत्र रचा और —सभी ने मिलकर निश्चय किया, कि अब से —
चैत्र की नवमी को प्रति वर्ष-
(१) एक ऐसे व्यक्तिका जन्म दिन मनाना है, जो कभी जन्मा ही नहीं था.
(२) उसका नाम राम –मान लेते हैं.
(३) और फिर पूरी रामायण रचकर सारे भारत में फैला देते हैं.
===>राम की ऐतिहासिकताअमरीका में डॉ. नरहरी आचार्य जी ने (विद्युत् तांत्रिकी के प्राध्यापक) -इस विषय को कन्फरेन्स मे प्रस्तुत किया था. बहुत प्रशन्सा पाया था.<====
अगर सीता का परित्याग हुआ ही नहीं तो जेठमलानी के कथन का महत्व भी समाप्त हो जाता है।
तनवीर जी, आपने एक बहुत ही सुन्दर लेख लिखा है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय, कम ही होगी। जेठमलानी से इतिहास, वेद, पुराण, धर्म या अध्यात्म पर सारगर्भित वक्तव्य की आप उम्मीद कैसे कर सकते हैं? पैसे के लिए वह आदमी इन्दिरा गांधी के हत्यारे, आतंकवादी और लिट्टे का मुकदमा लड़ने के लिए पहले से ही कुख्यात रहा हैं। सिन्धी होने के कारण आडवानीजी की कृपा से वे भाजपा के नेता बन गए, राज्य सभा के सदस्य भी बन गए। इस समय आडवानीजी भी पश्चाताप कर रहे होंगे। रही बात सीता-परित्याग की, तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि यह घटना हुई ही नहीं है। न तुलसीदास ने इसकी पुष्टि की है और न मुरारी बापू ने। हिन्दी के मूर्धन्य कवि सुमित्रानन्दन पन्त और प्रख्यात साहित्यकार राम कुमार वर्मा ने अपने खंड-काव्य ‘उत्तरायण’ में प्रमाण के साथ इस तथ्य की पुष्टि की है। मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा काम यह किया कि इस विषय पर गहन अध्ययन के पश्चात एक पुस्तक लिखी – राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं। इसकी एक प्रति मैंने पिछले ही हफ़्ते ज्ञानवर्धन हेतु जेठमालानी को भेजी है। मेरे पास यह पीडीएफ़ में भी उपलब्ध है। कृपया आप अपना इ-मेल आईडी भेज दें ताकि मैं आपको वह पुस्तक प्रेषित कर सकूं। धन्यवाद्!
विपिन जी, आप की पुस्तक के विषय पर ही एक आलेख प्रवक्ता में डालने का आग्रह, है.