कविता

फुर्सत नहीं इन्सान को,इन्सान से मिलने की

फुर्सत नहीं इन्सान को,इंसान से मिलने की |
ख्वाहिश रखता है वह,भगवान से मिलने की ||

कर्म कर रहा इन्सान,जो एक शैतान भी नहीं करता |
पर ख्वाहिश रखता है,मरने के बाद जन्नत जाने की ||

बस न सका इंसान ठीक से इस अपनी जमीन पर |
पर तैयारी कर रहा है इन्सान, चाँद पर बसने की ||

बन रहा है शैतान अब इंसान,गलत काम से न डरता |
कानून भी अँधा हो चूका है,नहीं बात उससे डरने की ||

इंसान अब निठल्ला हो चूका है,इस मशीनी दौर में |
सब काम इंटरनैट पर हो रहे है,जरूरत नहीं हिलने की ||

चिठ्ठी-पत्री बंद हो चुकी है,जरूरत नही लिखने की |
जरूरत नहीं समझता है,इंसान इंसान से मिलने की ||

अब क्या करे रस्तोगी,वह भी इस वख्त मजबूर है |
जुर्रत नहीं कर रहा है,वह गजल हाथ से लिखने की ||  

आर के रस्तोगी 
मो 9971006425