महापुरुष किसी भी राजनैतिक दल की बपौती नहीं देश की अनमोल धरोहर है

हस्तक्षेप / दीपक कुमार त्यागी एडवोकेट*

*स्वंतत्र पत्रकार व स्तंभकार*


हमारे देश में आयेदिन जिस तरह से चंद लोगों व राजनेताओं के द्वारा महापुरुषों का अपमान किया जाने लगा है वह सरासर गलत है. अपमान करने वाले ये वो लोग हैं जो कि बार-बार चर्चाओं में बने रहने के लिए, राजनैतिक लाभ लेने के लिए देश में अपनी राजनीति चमकाने के लिये देश की अनमोल धरोहर महापुरुषों के अपमान करने से भी बाज़ नहीं आते हैं. जो कि बहुत ही निदंनीय व अक्षम्य कृत्य है. वैसे देश के मौजूदा हालात ऐसे है कि आयेदिन देश में राजनैतिक नौटंकी के चलते महापुरुषों पर प्रश्नचिन्ह लगाना आजकल फैशन बन गया है. हाल के दिनों की बात करे तो अभी कुछ समय पूर्व हुए लोकसभा चुनावों के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी पर अभद्रतापूर्ण टिप्पणी की गयी थी जिसके लिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह कहा कि वो कभी भी दिल से साध्वी प्रज्ञा को माफ नहीं करेंगे वह बहुत उचित वक्तव्य था लेकिन उस पर धरातल पर भी अमल होना चाहिए तब ही लोगों के लिए नजीर बनेगी. हमारे सभ्य समाज में जब रोजाना के आपसी व्यवहार तक में किसी के लिए भी अभद्र भाषा, आपत्तिजनक शब्दों के लिए कोई स्थान नहीं है तो हमको यह अधिकार किसने दिया की हम अपनी ओछी राजनीति के लिए देश की अनमोल धरोहर महापुरुषों पर अभद्र टिप्पणी करें. आज जिसे देखो वो ही अपनी सुविधानुसार महापुरुषों के द्वारा अपने समय में लिये गये निर्णय व किये गये कार्यों का आकलन करने लग जाता है. हम लोग भी यह सोचने के लिये तैयार नहीं होते हैं कि किसी भी व्यक्ति के द्वारा जो निर्णय लिया गया जाता है वो उस समय के समयानुसार देशकाल व परिस्थितियों को देख कर लिया जाता है. अगर हम आज उसका वर्षों बाद आकलन करने बैठ गये तो वो ही निर्णय आज के समय के लोगों को आज के समयानुसार देशकाल व परिस्थितियों के चलते सही व गलत कुछ भी लग सकता है. लेकिन हम इसके चलते अपने महापुरुषों व पुर्वजों के मानसम्मान को ठेस पहुंचाने लगे तो वो उचित नहीं होगा. वैश्विक स्तर पर देखें तो सम्पूर्ण विश्व में राजनीतिक और वैचारिक मत-भिन्नताओं के कारण किसी भी व्यक्ति के कार्यों की व्याख्या अलग-अलग होती हैं, जिनके आधार पर सभी लोग अपने देश की राजनीतिक परंपराएं अपने नायक-नायिकाएं व प्रतिकों का चुनाव करते हैं तथा किसी अन्य महापुरुष पर प्रश्नचिन्ह लगाये बिना अपने आदर्श से जीवन भर प्रेरणा ग्रहण करते हैं. लेकिन हमारे देश का मामला कुछ अलग है. हमारे यहाँ महापुरुषों को नेता व राजनीतिक दल और सरकारें अपने-अपने संकीर्ण दायरों में बांधकर उन पर अधिकार जमाना चाहती हैं. अधिकांश नेताओं व राजनैतिक दलों के हालात यह है कि वो महापुरुषों पर कब्जा तो करना चाहते हैं, लेकिन वो इन महापुरुषों की विचारधारा, नीतियों व संदेश पर जरा भी अमल करने के लिए तैयार नहीं हैं, जो सरासर बहुत गलत रवैया है.
पिछले कुछ दशकों से देश में महापुरुषों को भी अपनी जरूरत व स्वार्थ के हिसाब से अलग-अलग जाति-धर्म में बांटने की जबरदस्त साजिश चल रही है. आज देश के तमाम महापुरुषों को चाहे वो राष्ट्र-निर्माता रहे हो, राजनेता रहे हो, समाज सेवा करनेवाले हो, विचारक या दार्शनिक हो या फिर किसी धर्म समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले धर्मगुरु रहे हो, उन सभी को चंद नेताओं व चंद लोगों की ओछी मानसिकता के चलते वर्तमान संदर्भो में किसी ना किसी जाति-धर्म से जोड़ कर देखा जाने लगा है. ऐसा इसलिए हो गया हैं कि क्योंकि नेताओं ने वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता को अपने स्वार्थ के लिए ओछी राजनीति के दायरें में बांधने का काम किया है. अगर हम महापुरुषों को किसी राजनैतिक दल या जाति-धर्म विशेष का बताते है तो वो उनका घोर अपमान है. महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, मौलाना अबुल कलाम आजाद, लाल बहादुर शास्त्री, अब्दुल गफ्फार खां आदि ना जाने कितनी ऐसी शख्सियात हैं, जिनका वैचारिक उत्तराधिकारी हमारा पूरा देश है. ना कि ये किसी राजनैतिक दल या एक जाति-धर्म समुदाय की धरोहर हैं, लेकिन दुर्भाग्य से आज उनकी अच्छी वैचारिक छवि पर भी षड़यंत्रकारी लोगों की कृपा से आयेदिन देश में जमकर ओछी राजनीति होती है, देश के सियासतदार अपने स्वार्थ के लिए इनका भी ओछी राजनीति के लिए जमकर उपयोग करते हैं. देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हमारे वो राजनेता जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के बाद भी भारत को एक मजबूत लोकतांत्रिक देश बनाने में जीवन भर अपना अनमोल महत्वपूर्ण योगदान दिया था, आज उनसे देश की आजादी के 72 वर्ष बाद भी कुछ नेताओं के चलते बार-बार हिसाब मांगा जा रहा है और देश के राजनेताओं के द्वारा तथ्यों को तोड़मरोड़कर पेश कर के उनकी छवि को अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए धूमिल किया जा रहा है.
आज देश में राजनैतिक पार्टियां जिस तरह से अपनी राजनीति को परवान चढ़ाने के लियें अपनी सुविधा के अनुसार देश के महापुरुषों के मानसम्मान से खिलवाड़ करने की ओछी हरकत करने में लगी हैं वो  देशहित के लिए ठीक नहीं है और साथ ही साथ देश की एकता अखंडता व अमनचैन को कायम रखने के लिये बहुत बड़ा खतरा है. क्योंकि देश में आज राजनैतिक दलों के साथ-साथ उनके बहकावे व उकसावे में आकर देश के अलग-अलग राजनैतिक विचारधारा के नेता व कुछ आम लोग भी महापुरुषों को जाति-धर्म व पार्टी विशेष से जोड़ने लगे हैं जो कि बेहद शर्मनाक और दुःखद है. हमारे देश का इतिहास गवाह है कि जितना खून हमने दुश्मन से युद्ध में नहीं बहाया उसे अधिक खून हमने पिछले कुछ दशकों में महापुरुषों के नाम पर इंसान व इंसानियत का कत्ल करके बहा दिया है. क्योंकि देश में कुछ लोग ऐसे मानसिक गुलाम पैदा हो गये है जो कि नेताओं के उकसावे में आकर उन्माद और धर्मांधता के शिकार होकर किसी हैवान से कम नहीं हैं. जो महापुरुषों के नाम पर लोगों को आपस में लड़ाकर देश को दिन-प्रतिदिन कमजोर कर रहे हैं. कोई भी महापुरुष कट्टरता अपनाने की इजाजत नहीं देता है. आज समय की सबसे बड़ी मांग है फिरका-परस्ती की बातें करने वालों को हम सभी देशवासी संगठित होकर मुंह तोड़ जवाब दें. जो चंद नेता व लोग वोटों के लिए आम-जनमानस में महापुरुषों के नाम पर दुष्प्रचार करके नफरत के बीज बोने का काम कर रहे हैं हम उनका सार्वजनिक जीवन में बहिष्कार करें. हालांकि यह भी तय है कि देश की जनता समय आने पर उनको सख्त सजा देकर कठोर सबक सिखाएगी क्योंकि हिंदुस्तान जैसा आपसी प्यार सद्भाव विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलता है. लेकिन अब वह समय आ गया हैं जब देश के सभी जिम्मेदार आम नागरिकों को देश के अमनचैन को कायम रखने की खातिर ठंडे दिमाग से सोचना होगा कि महापुरुष किसी राजनैतिक दल की बपौती या धरोहर नहीं होते हैं बल्कि वो देश की अनमोल धरोहर होते हैं उनके दिखाये मार्ग से ही सीखकर देश आज विश्व में विकास के रोज नित नये आयाम व कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. देश में आज राजनैतिक दलों के चंद लोग अपनी उकसाने वाली ओछी हरकतों से देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर भी अपने बेहुदे कुतर्क पेश कर रहे हैं. हालात यह हो गये है कि देश के चंद राजनैतिक लोग आज अपने स्वार्थ के लिए व वोटों की राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप लगाने के लिए महापुरुषों की प्रतिमा तक तो गिरावा देते हैं. लेकिन इन छोटी ओछी मानसिकता वाले चंद लोगों को यह भी हमेशा ध्यान रखना चाहिये कि प्रतिमा गिरने से कभी किसी की विचारधारा खत्म नहीं हो जाती है. लोगों के मन, कर्म व जीवनशैली में विचारधारा हमेशा जिंदा बनी रहती है और सबसे बड़ी बात यह है कि हमारें प्यारे देश में तो लोकतंत्र की निष्पक्ष जड़े इतनी गहरी हैं कि आप जबरन किसी पर भी अपनी या अपने दल की या किसी अन्य के विचार व विचारधारा थोप नहीं सकते हैं चाहें वो किसी के भी विचार व विचारधारा का क्यों ना हो.
आज हमारे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, बिस्मिल, गोलवलकर, लाल बहादुर शास्त्री, पेरियार, लोहिया, इंदिरा गाँधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गाँधी आदि सबकी विचारधारा व विचारों के पालन करने वाले लोग रहते है. इन सभी के विचार व विचारधारा एक या अलग-अलग होने के बाद भी देश के आम नागरिकों के मन व कर्म में हमेशा बनी रहती है और यही हमारे देश के आम-आदमी व आजाद लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी है. इसी खूबी के चलते ही विश्व में भारतीय लोकतंत्र को सबसे अधिक स्वतंत्र व निष्पक्ष माना जाता है और इस खूबी को हमेशा अपने देश व समाज में बना कर रखना आज हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. आज हम सभी देशवासियों का दायित्व है कि सभी विचारधाराओं का सम्मान करते हुए राजनैतिक दलों के उकसावे में आकर अपने महापुरुषों का अपमान ना करें उन्हें जाति-धर्म में ना बाट़े, बल्कि हमेशा उनका दिल से मान-सम्मान करते हुए देश को विकास के पथ आगे बढ़ाने का कार्य करें.
जय हिन्द जय भारत मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान

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