कोरोना के बहाने सतह पर आए तबलीगी कुचक्र की घातकता को कम न आँका जाये

-डॉ. वीरेन्द्र सिंह चौहान

निजामुद्दीन के तबलीगी मरकज ने कोरोना के खिलाफ देश के द्वारा रचे जा रहे व्यूह को तोड़ने का जो अपराध किया, उसके घातक और बुरे नतीजों से पार पाने में हमारी सरकार और समाज के पसीने छूट रहे हैं। अंततः इस कोरोना जेहाद की भारत को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी, अभी कहना कठिन है। परंतु गंभीर सवालों और स्थितियों का सीधा सामना करने से बचने की आदत से लाचार देश के बुद्धिजीवियों का एक वर्ग तबलीगी कुचक्र को कोरोना जिहाद करार देने से परहेज करने की कह रहे हैं। भारत के कथित बुद्धि विलासियों को अमेरिका के उस तबके का भाई बंधु करार दिया जा सकता है जो कोरोनावायरस को चाइनीज़ या चीनी वायरस कहकर पुकारने पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पीछे हाथ धोकर पड़ गए थे। चीन से जन्मे वायरस को चाइनीज़ वायरस ना कह कर अगर किसी और नाम से पुकारेंगे तो क्या वह कम भयावह हो जाएगा? कदाचित नहीं। मगर उसके नाम के साथ चीन अंकित रहने से चीन को लेकर जो सावधानियां बरती जानी चाहिए उनका एहसास नीति निर्माताओं से लेकर नागरिकों तक सबके मन में रहेगा, नामकरण से यह लाभ पक्के तौर पर मिल जाएगा।

इसी प्रकार तबलीगी करतूत को कोरोना जेहाद कहने या ना कहने से, उसके वर्तमान घातक परिणाम शायद प्रभावित न हो। मगर तबलीगी जमात जिस वैचारिक वायरस का प्रतिनिधित्व करती है, उसके प्रति देश और समाज में चेतना लाने में यह शब्द प्रयोग प्रभावी भूमिका अदा कर सकता है। तबलीगी मरकज और उसके मुखिया मौलाना साद के राजनीतिक व वैचारिक वकील बनकर उभरे कुछ लोग टेलीविजन चैनलों पर यह कहते सुने जा सकते हैं कि निजामुद्दीन के तबलीगी मरकज में जो हुआ वह अनायास हुआ और वहां जमा हुए लोग अचानक लॉक डाउन में फंस गए। मगर यह चतुराई से बोला जा रहा अर्ध सत्य है। हकीकत यही है की तबलीगी जमात में जमा हुए देसी विदेशी इस्लाम प्रचारकों को जो पढ़ाया या सिखाया जा रहा था, देशभर में उनके द्वारा फैलाया गया कोरोना का मकड़जाल उसी जेहादी विचारधारा का प्रतिफल है।

सोशल मीडिया पर उपलब्ध तबलीगी जमात के आकाओं के वीडियो यह प्रमाणित करने के लिए काफी हैं कि वहां मौजूद लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग व लॉक डाउन आदि सरकारी निर्देशों का अनुपालन न करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उकसाया जा रहा था। कोरोना से बचने के लिए जमावड़ों से परहेज को तबलीग के नेता अल्लाह के संदेश और इस्लाम के खिलाफ साजिश करार दे रहे थे। कुल मिलाकर मुसलमानों को राष्ट्रीय मुख्यधारा से अलग रखना और इस्लाम के नाम पर देश की निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार की सरेआम अवहेलना का प्रशिक्षण तबलीगी विचारधारा का केंद्रीय बिंदु कहा जा सकता है।

निजामुद्दीन से निकलने के बाद देशभर में फैले इन कोरोना बमों या आत्मघाती दस्तों ने जिस तरह का माहौल पिछले 2 दिनों के दौरान देशभर में खड़ा किया है, वह भी इस बात को प्रमाणित करता है कि मामला इतना सीधा और हल्का नहीं है जितना देश के कुछ छद्म धर्मनिरपेक्षता वादी लोग इसे दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं। तबलीगीओं और उनके जैसे अन्य कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों ने देश में यहां वहां ऐसे मोहल्ले, गलियां या यूं कहिए छोटे बड़े सामाजिक टापू खड़े कर दिए हैं, जो संविधान को और सरकार को मानने से खुलेआम इनकार करने लगे हैं। यही लोग इनकी सेवा में लगे हुए चिकित्सकों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों पर इंदौर सहित देश के अलग-अलग भागों में पत्थरबाजी करते नजर आ रहे हैं। इन्हीं में से कुछ जंगली मानसिकता के लोग डॉक्टरों पर थूकने और अर्धनग्न होकर उनकी तरफ अश्लील इशारे करने का जघन्य अपराध भी कर रहे हैं।

खैर, कोरोना के खिलाफ हमारी और आपकी जंग के बहाने ही सही तबलीगीओं और उनके जैसे दूसरे असामाजिक तत्वों का घिनौना चेहरा जन सामान्य के सामने आ गया, यह अपने आप में एक संतोष की बात है। वरना भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग तो चुपचाप दशकों से इस्लामिक शुद्धता के नाम पर समाज के एक वर्ग विशेष को प्रदूषित कर भारत की जड़ें काटने में चुपचाप दीमक का काम करता जा रहा था। संभव है कि कोरोना के कारण शुरू हुई जांच पड़ताल की प्रक्रिया में इन अमानवीय ताकतों की अन्य देश विरोधी गतिविधियों के प्रमाण भी सरकार व समाज के सामने आ जाएं। ऐसा होना व्यापक राष्ट्र हित में है।

हाँ,तबलीगी जमात वालों से पूछियेगा तो वे स्वयं को अल्लाह के सच्चे संदेश वाहक बताएंगे। इस्लामिक शुद्धता के प्रचार प्रसार के लिए हर साल लाखों की संख्या में यह दुनिया भर में जाते है। अल्लाह, इस्लाम या पैगंबर मोहम्मद का संदेश लेकर उसका प्रचार करने निकलने के इनके अधिकार पर किसी कोई आपत्ति नहीं हो सकती। भारत का संविधान भी इसकी इजाजत देता है। परंतु संकट वहां खड़ा होता है जब यह अल्लाह इस्लाम या मोहम्मद साहब के नाम पर लोगों को प्रतिगामी और अवैज्ञानिक सोच के रास्ते पर धकेलने लगते हैं। धर्म प्रचार का अधिकार इन्हें जिस भारतीय संविधान ने दिया है, जब तबलीगी उसी संविधान की वैधानिकता को अस्वीकार करते नजर आते हैं तो उन्हें देश समाज और प्रजातंत्र के लिए खतरा करार देने में संकोच कैसा और किस लिए? इनके मूल चरित्र को जानते हुए भी अगर कोई इनके बचाव में आकर खड़ा होता है या इन्हें खतरा मानने से इनकार करता है तो यह कबूतर द्वारा आंख मूंदकर बिल्ली के अस्तित्व को नकारने जैसी मूढ़ता भरी हरकत होगी।

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