होली पर ये दो कार्य जरूर करें, स्वस्थ्य रहेगें और शुद्ध होगा वातावरण…

0
158

इस बार मार्च 20 को #होली आने वाली है हर साल की तरह इस बार भी मीडिया में 24 घंटे डिबेट चलने की संभावना है । कि होली दहन लकड़ियों से करने पर वातावरण प्रदूषित होगा, रंग खेलने पर पानी का बिगाड़ होगा आदि आदि…।
हमारे ऋषि-मुनियों ने जो भी त्यौहार बनाये उनके पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छुपे मिले ऐसे ही कपोल कल्पित त्यौहार हमारी संस्कृति में नहीं हैं उसके पीछे कई गूढ़ रहस्य छुपे हैं ।
#होलिका_दहन के पीछे का #वैज्ञानिक कारण…
बता दें कि होली के दिनों में ऋतु परिवर्तन होता है तो शरीर में कफ पिघलकर जठराग्नि में आता है जिसके कारण अनेक बीमारियां होती हैं उससे बचने के लिए होली दहन की तपन से कफ जल्दी पिघल कर नष्ट हो जाता है और दूसरे दिन कूद-फांद कर रंग खेलने से कफ निकल जाता है जिसके कारण अनेक भयंकर बीमारियों से रक्षा होती है । होली के पीछे आध्यात्मिक कारण भी छुपा है, भक्ति करने वाला का हमेशा विजयी होता है चाहे कोई कितना भी अनिष्ट करने की कोशिश करे उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है ।
प्राचीनकाल में होली का दहन #गाय के #गोबर के कण्डों से किया जाता था जिसमें से ऑक्सीजन निकलता था और धुलेंडी पलाश (केसूड़े) के फूलों के रंग से खेली जाती थी जिससे आने वाले दिनों में गर्मी के कारण होने वाले रोगों से बचाव हो जाता था ।
आजकल जिन लकड़ियों से होली दहन किया जाता है वैसे नहीं करना चाहिए उसके बदले गाय के गोबर के कण्डों से करना चाहिए ।
गोबर से कण्डों से होली जलाने के लाभ…
एक गाय करीब रोज 10 किलो गोबर देती है । 10.. किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं ।
एक कंडे की कीमत 10 रुपए रख सकते हैं । इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिल सकते है । यदि किसी एक शहर में होली पर 10 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 1 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं । औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के 60 लाख रुपए तक आ जाएंगे । लकड़ी की तुलना में लोगों को कंडे सस्ते भी पड़ेंगे ।
केवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है । वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते हैं तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।
गाय के गोबर के कण्डों से होली जलाने पर गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है, जिससे गौहत्या कम हो सकती है, कंडे बनाने वाले गरीबों को रोजी-रोटी मिलेगी, और वतावरण में शुद्धि होने से हर व्यक्ति स्वस्थ्य रहेगा ।
रंगों से होली खेलने के पीछे का वैज्ञानिक कारण..
होली के समय ऋतु परिवर्तन होता है, सर्दी से गर्मी में प्रवेश होता है इसलिए गर्मी की तपन और गर्मीजन्य रोगों से बचने के लिए पलाश के रंगों से होली खेली जाती है । आध्यात्मिक कारण ये है कि हमे सालभर में किसी से भी कोई लड़ाई झगड़ा हुआ है उसको भूलकर मिलजुलकर होली खेलें ।
#पलाश रंग से होली खेलने के फायदे…
पलाश कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है ।
रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामुहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. पानी लगता है ।
इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है । पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।

आओ मनाएं ऐसा त्यौहार जिससे महके घर आंगन और स्वस्थ रहे परिवार..                – अजय एहसास

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here