बचपन में एक कहानी पढ़ी थी। शायद आपने भी पढ़ी या सुनी होगी। कहानी इस प्रकार है।
एक विदेशी पर्यटक भारत घूमने के लिए आया। दिल्ली में उसने लालकिला देखकर तांगे वाले से पूछा, ‘‘इसे किसने बनाया ?’’ तांगे वाले ने कहा, ‘‘पता नहीं साहब।’’ इसके बाद वह कुतुबमीनार और बिड़ला मंदिर देखने गया। वहां उसने फिर यही प्रश्न पूछा। जवाब भी वही मिला, ‘‘पता नहीं साहब।’’
आगरा में ताजमहल देखकर उसने रिक्शे वाले से पूछा, ‘‘इसे किसने बनाया ?’’ रिक्शे वाले ने कहा, ‘‘पता नहीं साहब।’’ कुछ देर बाद वह खाने के लिए एक होटल में गया। सामने से एक अर्थी जा रही थी। हजारों लोग ‘राम नाम सत्य है’ कहते हुए एक व्यक्ति को कंधों पर ले जा रहे थे। पर्यटक ने होटल वाले से पूछा, ‘‘ये किसकी अर्थी जा रही है ?’’ होटल वाले ने गर्दन निकालकर बाहर की ओर देखा। दोनो हाथ जोड़े और कहा, ‘‘पता नहीं साहब।’’
बस फिर क्या था ? पर्यटक सिर पकड़कर रोने लगा, ‘‘हे भगवान, मैं कितना अभागा हूं। इतने महान आदमी के दर्शन नहीं कर सका। जिसने दिल्ली में लाल किला, बिड़ला मंदिर और कुतुबमीनार बनवायी। जिसने आगरा में ताजमहल बनवाया। वे ‘पता नहीं साहब’ आखिर भगवान को प्यारे हो गये।’’ दुख के मारे उसने भोजन ही नहीं किया और अपने ठिकाने पर चला गया।
पिछले दिनों कुछ ऐसा ही अनुभव हमारे मित्र शर्मा जी को भी हुआ। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव की चर्चा गरम थी। शर्मा जी के मन का सोया पत्रकार अचानक जाग गया और वे भा.ज.पा. के केन्द्रीय कार्यालय जा पहुंचे। उनके हाथ में कागज-कलम और कंधे पर कैमरा देखकर कई लोगों की जीभ में खुजली होने लगी। शर्मा जी ने एक राज्य के अध्यक्ष को ही पकड़ लिया।
– क्यों जी, भा.ज.पा. का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन बनेगा ?
– पता नहीं साहब; पर कोई न कोई बनेगा जरूर।
– आप तो पार्टी के बड़े नेता हैं। आपको तो पता ही होगा ?
– हां, कुछ-कुछ पता तो है; पर कई बार रातोंरात बात पलट जाती है। इसलिए पक्का नहीं कह सकते; पर कोई न कोई बनेगा जरूर।
– क्या मतलब … ?
– मतलब ये कि पिछली बार गडकरी जी के अध्यक्ष बनने की पूरी तैयारी हो गयी थी। हमने बधाई के पोस्टर और बैनर भी बनवा लिये थे; पर अचानक उनकी जगह राजनाथ जी अध्यक्ष बन गये। हमारे लाखों रुपये कबाड़ हो गये। रातोंरात नये पोस्टर बनवाने पड़े।
– लेकिन इस बार तो मामला काफी ठीक चल रहा है। लगता है अमित शाह फिर अध्यक्ष बन जाएंगे ?
– पता नहीं साहब।
शर्मा जी ने और भी कई बड़े लोगों से पूछा। कोई खुलकर कुछ बोलने को तैयार नहीं था। अधिक आग्रह करने पर सबके पास एक ही उत्तर होता था – पता नहीं साहब।
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शर्मा जी अगले दिन कांग्रेस के कार्यालय में जा पहुंचे। सत्ता में न होने के कारण वहां उदासी छाई थी। फिर भी कुछ लोग तो थे ही। शर्मा जी ने एक चकाचक सफेद कपड़े पहने युवा नेता से पूछा – क्यों जी, आपकी पार्टी में अगला अध्यक्ष कौन बनेगा ?
उसने शर्मा जी को ऐसे देखा मानो वे किसी दूसरे ग्रह से आये हों। फिर बोला – ये भी कोई पूछने की बात है। सारी दुनिया जानती है कि मैडम जी के बाद राहुल बाबा ही कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे।
– उनके अलावा क्या किसी और का नाम भी चल रहा है ?
– आपका दिमाग खराब है क्या; किसमें हिम्मत है जो अपना नाम आगे करे। कांग्रेस में रहकर राजनीति करनी है, तो नंबर दो या तीन पर ही रहना होगा। नंबर एक की कुर्सी अगले बीस-तीस साल तक खाली नहीं है।
– लेकिन राहुल बाबा अध्यक्ष बनेंगे कब ?
– पता नहीं साहब।
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शर्मा जी अगले कुछ दिन में राज्य स्तर के कई दलों के कार्यालयों में गये। इनका आधार कुछ जाति या क्षेत्रों तक ही सीमित है। इन्हें राजनीतिक दल भी कह सकते हैं और घरेलू दुकान भी। इसीलिए मुलायम सिंह, मायावती, लालू यादव, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी, शरद पवार, प्रकाश सिंह बादल, जयललिता, करुणानिधि, चंद्रबाबू नायडू, चंद्रशेखर राव, उद्धव ठाकरे, केजरीवाल आदि अपने दल में ‘सुप्रीमो’ कहे जाते हैं। शर्मा जी ने उनके समर्थकों से उनके अध्यक्षों के बारे में पूछा। सबने अपने अध्यक्ष का नाम बता दिया।
– पर ये तो काफी समय से अध्यक्ष हैं ?
– जी हां। इन्होंने ही पार्टी बनायी है। इनके नाम पर ही चुनाव लड़ा जाता है। तो फिर कोई और अध्यक्ष कैसे होगा ?
– पर इनके अलावा अध्यक्ष बनने लायक क्या कोई और नेता आपके पास नहीं है ?
– नेता तो इनके घर में ही बहुत सारे हैं; पर इनके रहते कोई और अध्यक्ष नहीं बन सकता।
– तो ये कब तक अध्यक्ष बने रहेंगे ?
– पता नहीं साहब।
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पुरानी कहानी तो न जाने कब की है। वह सच है या झूठ, यह भी कहना कठिन है; पर शर्मा जी की कहानी एकदम ताजी और सौ प्रतिशत सच है। इस अध्यक्ष-कथा का अगला चरण क्या होगा, इस बारे में जब हमने शर्मा जी से पूछा, तो वे मुस्कुरा कर बोले – पता नहीं साहब।
विजय कुमार
स्वस्थ रहने के लिए ऐसे व्यंग्य की बहुत आवश्यकता है – धन्यवाद