जिस समय अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान मे घुस कर मारा था तो पारम्परिक तौर पर हमेशा फौज का गुणगान करने वाली पाकिस्तानी अवाम ने अपनी सेना को खूब गालियां दी थी, और वहां आटो वाले अपनी गाडियों के पीछे “शोर न करें पाकिस्तानी फौज सो रही है” के बैनर टांग के चल रहे थे।
आज जब कारगिल के बाद फिर से काश्मीर के एक गांव पर पाकिस्तानी आतंकियो ने वहां की सेना के साथ मिलकर कब्जा कर लिया है तो उपर्युक्त सम्बोधन भारतीय फौज के लिये ज्यादा उपयुक्त लग रहा है, और पाकिस्तानी फौज से कहीं ज्यादा कमजोर और दिशाहीन हमे हमारी फौज लग रही है क्योंकी लादेन को अमेरिका जैसी महाशक्ती ने अपने बेहतरीन संसाधनो के दम पर पाकिस्तान मे मारा था वो भी अफगानिस्तान की सीमा से रात मे घुसकर, पाकिस्तान अफगान सीमा पर मुस्लिम और उसका कठपुतली देश होने के कारण उतना ध्यान नही देता अगर यही हमला अमेरिका उसकी पूर्वी सीमा अर्थात भारतीय इलाके से करता तो उसे नाकों चने चबाना पडता।
हम सारा दोष अपनी सरकार या पीएम पर ही नहीं डाल सकते आखिर कुछ तो जिम्मेदारी सेना की भी बनती है, जिस कश्मीर मे 5 लाख से ऊपर फौजी तैनात हों वहाँ पर यदि पाकिस्तानी घुसपैठ करके गांवों पर कब्जा करलें तो ये शर्म से डूब मरने वाली बात है साथ ही संदेह उठना स्वाभविक है की या तो कुछ फौजी बिक चुके है या फिर वो निद्रालीन हैं। इनसे तो कयी गुना अच्छे सीआरपीएफ के जवान हैं जो बेचारे अपनी जान हथेली पर लेकर नक्शलियों से ना सिर्फ भिडे हुये हैं बल्कि उन्हे मार भी रहे हैं।
हमारे देश मे फौज का सम्मान बाकी संस्थावों से कहीं ज्यादा रहा है किंतु यदि ऐसी ही घटनायें लगातार घटती रही तो भारतीय फौज न सिर्फ अपना सम्मान खो देगी बल्कि देश की सुरक्षा पर भी प्रश्न चिन्ह लग जायेगा, फौज को कम से कम अपने चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तानी फौज से ही उसका जुझारूपन सीखना चाहिये जो इतनी हार के बाद भी भारत से बदला लेने और काश्मीर को हड्प करने के इरादे से आज तक नही डिगा और उसे हासिल करने की हर सम्भव असम्भव कोशिश कर रहा है जबकी हमारे फौजी हताशा मे नजर आ रहे हैं।
मुकेश चन्द्र जी, बहुत हिम्मत जुटाई होगी आपने यह छोटा आलेख लिखने में.सेना की नियमित टुकड़ी तो बाद में मैदान में उतरती है.पहले तो यह जिम्मेवारी सीमा सुरक्षा बल और पुलिस की होती है क़ि वह इन घुसपैठियों को रोके.वे न तो इसको रोक पाए और न भारतीय सेना को इसकी उचित समय पर सूचना दे पाए. हालांकि भारतीय सेना को भी अपने ख़ुफ़िया सूत्रों से इसकी जानकारी मिल जानी चाहिए थी. तो क्या हम यह समझें क़ि देश के साथ साथ देश के प्रहरी भी निद्रामग्न हैं? भारतीय सैनिकों के सर काट कर ले जाने वाले घटना के समय ही मैंने अपनी टिपण्णी में सेना क़ि असावधानी का उल्लेख किया था..यह क्यों न समझा जाए क़ि वे छोटी मोटी वारदातें हमारी तैयारियों का अंदाजा लेने के लिए क़ी गयीं थी.
आर सिंह जी ये लेख लिखते हुये बहुत पीडा हुयी लेकिन लिखने से अपने को रोक नही पाया क्योंकी इकलौती फौज ही तो है हमारे देश मे जिस पर हम गर्व कर सकते हैं, लेकिन कुछ पिछली घट्नावो को देखते हुये अब इनपर भी संदेह उठने लगा है