हे भाई बंधुवर कोई मत दहेज लो

—विनय कुमार विनायक
एक बात मन में अवश्य सहेज लो,
हे भाई बंधुवर! कोई मत दहेज लो!
कुछ भी नहीं अंतर बेटा व बेटी में,
बेटा के खातिर एक बेटी खोज लो!

बेटी को मत समझो कोई बोझ है,
बेटा गर गुलाब है तो बेटी रोज है!
दहेज एक बुराई अब जमींदोज हो,
बेटा अगर राजा, बेटी रानी समझो!

वैदिक काल में बेटा और बेटी में,
तनिक ना भेद था, बेटी थी बेटा!
मनुज के पिता मनु की एक बेटी,
इला थी भ्राता इच्छवाकु सा बेटा!

इला को मनु ने बेटे सा राज दिए,
सृष्टि की प्रथम कन्या इला रानी
पुत्र से नहीं कम थी पिता के लिए,
बुध की ब्याहता इला थी पुरुष भी!

स्त्री पुरुष सा उपनयन पहनती थी,
स्त्री पुरुषों सा, शिक्षा ग्रहण करती,
स्त्री पुरुष सा युद्ध भूमि जाती थी
स्त्री पुरुषों से, कभी नहीं डरती थी!

नारी पतिम्बरा थी, स्वयंवर में स्त्री,
पुरुष को ग्रहण या त्याग करती थी,
घोषा विदुषी, कैकेयी युद्ध में सारथी,
सीता,शिखण्डी राजा की सेनापति थी!

महाभारत रण से स्त्री अधिकार घटी,
मध्य काल में विदेशी आक्रांताओं से,
स्त्री अधिकारों में होने लगी कटौती,
बाल-विवाह,सतीप्रथा आई विदेशी से!

अब पुनः बेटियां कंधे से कंधा मिला,
शिक्षा चिकित्सा अंतरिक्ष रक्षा क्षेत्र में,
फिर से परचम लहराने लगी वाह-वाह,
अब नहीं बेटियों का मत लो इम्तहा!
—विनय कुमार विनायक

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