प्रभुनाथ शुक्ल
ईश्वर वैसे कभी रोता नहीं!
हमने उसे रोते नहीं देखा
लेकिन-
जरूर रोया होगा ईश्वर!
धरती में धंसते उस शहर को देख
मलबे में तब्दील उस संरचना को देख!
ईश्वर रोया होगा!
उस मासूम को देख
मलबे के ढेर में मां को निहारते
बिखरी दूध की बोतल, किताबें
और उसके खिलौने देख!
वह रोया होगा!
गर्भनाल के साथ असमय आयी
उस अबोली को देख!
जिसने आने से पहले ही खो दिया
एक खूबसूरत संसार
अपनी उम्मीदें और सपने!
ईश्वर रोया होगा!
जलजले में खत्म होते
रिश्ते, उम्मीदें और ऐहसास देख!
ईश्वर ने जिन्हें बचा लिया
उनके पास अब है भी क्या!
एक खौफनाक डर, उखड़ती सांसे
और मलबे में बूत बने अपने!
ईश्वर को गुस्सा भी आया होगा!
निष्ठुर प्रकृति और उसकी निर्दयता पर!
लेकिन –
ईश्वर करेगा न्याय!
जब हम होंगे उसके विधान के साथ!
आज नहीं तो कल!