हिन्दुस्तान में हिन्दी के प्रचार प्रसार का प्रभावी एवं सशक्त माध्यम – बॉलीवुड एवं दूरदर्शन

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उमेश कुमार यादव

आज के तारीख में हिन्दी फिल्म इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि चाहे जो भी भाषा-भाषी हो, हिन्दी फिल्म अवश्य देखते हैं । उनके हिट गानें अवश्य गुनगुनाते हैं, भले ही उसका अर्थ नहीं पता हो । क्योंकि आज लोगों को लगने लगा है कि यदि नाम कमाना है या फिर लोकप्रिय बनना है तो हिन्दी फिल्मों से जुड़ना आवश्यक है । यदि आप ऑकड़े देखें तो पायेंगे कि अहिन्दी भाषी व्यक्तियों को जितनी जनप्रियता हिन्दी फिल्मों से मिली है उतनी अपनी क्षेत्रीय भाषा से नहीं । ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं । जैसे – बप्पी लाहिड़ी, किशोर कुमार, अशोक कुमार व कुमार शानु इन सबकी मातृभाषा बंगला है पर ये चमके हैं तो बस हिन्दी से ही । आप अब तनिक सोचें तो पायेंगे कि आदमी भाषा के क्षेत्र में भी कितना स्वार्थी हो चुका है । यदि किसी भाषा से फायदा है तभी उसे बोलेंगे या पढ़ेंगे नहीं तो अपनी भाषा से ही लटके रहेंगे । बहुत ऐसे गैर हिन्दी भाषी हैं जो अपनी जरुरत के अनुसार हिन्दी का अनुसरण करते हैं पर जब राष्ट्रहित में हिन्दी को बढावा देने या समर्थन देने की बात आती है तो पीछे हट जाते हैं । कहते हैं कि यह मेरी भाषा नहीं है । हम क्यों करें ? हमारे साथ अन्याय हुआ है । हमारी भाषा को ही राष्ट्रभाषा होना चाहिये था । अभी जरुरत है तो बस मानसिकता बदलने की । वैसे हम अहिन्दी भाषी को ही दोष क्यों दें ? इसपर एक उदाहरण देखें ।

जिस कारखानें में मैं काम करता हूँ वहाँ मैंने यह अनुभव किया है कि बहुत सारे ऐसे हिन्दी भाषी भी रहते हैं जिनकी मातृभाषा हिन्दी होते हुए भी उन्हें हिन्दी में कार्यालयीन कार्य करने में शर्मींदगी महसुस होती है । उन्हें ऐसा लगता है कि यदि मैंने हिन्दी में कुछ लिखा-पढ़ा तो लोग हमें क्या कहेंगे ? शायद कहीं उन्हें ऐसा न लगने लगे कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती है । यानी अंग्रेजी लिखना और बोलना कितने फक्र की बात है ! अंग्रेज चले गये पर अपनी छाप छोड़ गये । भले ही शुद्ध शुद्ध अंग्रेजी लिखनी न आती हो पर अंग्रेजी ही लिखेंगे और बोलने में भी अपनी शान समझेंगे पर अपनी राष्ट्रभाषा में कार्यालयीन कार्य करने का प्रयास करना भी ऐसे लोगों को पसन्द नहीं है । यानी कि बातें बड़ी बड़ी पर हिन्दी के विरोध में । कहने का मतलब कि अपने थोथे दिमाग में इतने भ्रम पाल रखें गये हैं कि अंग्रेजी के बगैर एक पग भी आगे बढ़ने की सोच नहीं सकते । मानते हैं कि अंग्रेजों ने अपने भाषा को जबरन थोपा पर यह तो उनकी सफलता है, आप ने स्वीकार कर लिया यहीं तो आपकी असफलता की शुरुआत हो गई । कहा भी गया है कि जुल्म करने वाले से ज्यादा गुनाहगार होता है जुल्म सहन या स्वीकार करने वाला । आज के दिन में अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनकर सामने आयी है । यह भी सही है कि आज के तारीख में अंग्रेजी भाषा बहुत से लोगों के लिये जरुरत बन चुकी है पर मजबुरी नहीं । वो चाहे तो हिन्दी को भी अंग्रेजी की तरह प्रयोग में ला सकते हैं । अंग्रेजी एक सम्पर्क भाषा है जिससे हम अलग-अलग भाषा वाले चाहे वह किसी प्रदेश के हों या देश के, अपने विचारों को एक दूसरे से आदान-प्रदान कर पाते हैं । पर यह यहीं तक ठीक है । आप अपने ज्ञान को, अनुभव को यदि अपने भाषा में कलमबद्ध करेंगे तो इससे इस देश का भविष्य जो नन्हे पौधे के रुप में शहरों से अति दूर सम्पूर्ण सुविधारहित गावों में पनप रहे हैं, आपके द्वारा लिखे गये पुस्तकों को पढ़कर एक दिन हिन्दुस्तान को छाया प्रदान करने वाले वृक्ष का रुप ले पायेंगे ।

खैर हम बात कर रहे थे बॉलीवुड और दूरदर्शन की । आज के युग में मीडिया के माध्यम से हिन्दी का प्रचार-प्रसार काफ़ी हद तक बढ़ा है । चलचित्र और मीडिया ज्ञान का एक ऐसा श्रोत है जिसके माध्यम से जो बातें हम सुनते और देखतें हैं वह मन मस्तिष्क में इस तरह रिकार्ड हो जाता है जिसे मिटा पाना असम्भव है । यदि आप सरकारी और प्रशासनिक तौर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार की बातें करते हैं तो उसका विभिन्न तरिकों से विरोध प्रदर्शन सामने आता हैं क्योंकि हिन्दुस्तान में भिन्न भिन्न विचारधारा और भाषा वाले लोग रहते हैं और वे कुछ भी बोलने और करने के लिये पूरी आजादी पाये हुये हैं । पर इस आजादी को वे राष्ट्रहित में नहीं राष्ट्र के विरोध में इस्तेमाल करते हैं ।

पहले भी और आज भी बॉलीवुड फिल्म जगत ने अनेकोनेक हिन्दी फिल्में बनायी है । विभिन्न निर्देशकों ने अलग अलग क्षेत्र से आये हुए भिन्न भिन्न भाषाओं के कलाकारों के माध्यम से हिन्दी फिल्म की गुणवत्ता को और ज्यादा निखार प्रदान किया है ।

हिन्दी जगत में यदि मीडिया के योगदान को देखा जाये तो हमें पता चलता है कि मीडिया के विभिन्न अंगों ने मिलकर हिन्दी को जन जन तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है ।

समाचार पत्रों के हिन्दी संस्करणों ने भारत वर्ष में अपना स्थान बना लिया है । प्राय: हरेक अंग्रेजी समाचार पत्रों का हिन्दी संस्करण निकल चुका है । जैसे – टाईम्स ऑफ इन्डिया, हिन्दुस्तान टाईम्स, इकनॉमिक्स टाईम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड आदि अनिकों अखबारों के हिन्दी संस्करण बाजार में उपलब्ध हो चुके हैं । ध्यान देने वाली बात यह है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ? देर से ही सही पर इन्हें एहसास तो हुआ कि इस देश की आधी से अधिक आबादी ऐसी है जो केवल हिन्दी समझती है और बची आधे की आधी आबादी ऐसी है जो इनकी कलिष्ट और लम्बी चौड़ी अंग्रेजी समझ नहीं पाती है । अतः यदि उन्हें अपने अखबार का व्यापार बढ़ाना है तो सरल एवं सहजता से समझी जाने वाली हिन्दी में अखबार छापना होगा जिसे आम गाँव तक का आदमी भी देश दुनिया के खबरों से अवगत हो जाये और उन्होंने ऐसा ही किया जिसका लाभ आज आम जनता उठा रही है ।

दूसरे तरफ हिन्दी मे समाचार पढ़ने वाले चैनलों की संख्या में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है तथा इनकी गुणवत्ता भी पहले से अधिक अच्छी हुई है । जैसे – एन डी टी वी इन्डिया, स्टार न्यूज़, तेज, आज तक, सहारा समय, ई टी वी न्यूज़, जी न्यूज़, डी डी न्यूज़ इत्यादि ।

अन्त में बात करते हैं टेलीविजन के हिन्दी धारावाहिकों की । अनेकोनेक टेलीविजन चैनलों के अनेकोनेक हिन्दी धारावाहिकों ने तो क्या हिन्दी भाषी बल्कि अहिन्दी भाषी परिवारों में भी एक भावुक जगह बनाने में एक हद तक कामयाबी हासिल कर ली है । अभी ऐसा हो गया है जैसे महिलाओं को भले ही खाना पकाने में देर हो जाये या सोने में देर हो जाये पर उन हिन्दी धारावाहिकों को तो देखना ही है । इसका बहुत कुछ श्रेय जाता है एकता कपूर को । इस तरह से जो महिलाएँ और पुरुष हिन्दी लिखना, पढ़ना या बोलना भले ही न जानते हों पर अच्छी तरह से हिन्दी समझ तो लेते ही हैं । इतना योगदान ही क्या कम है ?

भले व्यापार ही सही पर व्यापार के माध्यम से ही लोगों में हिन्दी जानने की इच्छा तो जागी है । जिन जिन धारावाहिकों ने समाज में हिन्दी प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभायी है या अभी भी निभा रही है उनके नाम कुछ इस तरह हैं – STAR PLUS की “सास भी कभी बहु थी, कहानी घर घर की, कसौटी जिन्दगी की, प्रतिज्ञा, ये रिश्ता क्या कहलाता है, आप की कचहरी, हमारी देवरानी” । ZEE TV की “मेंहदी तेरे नाम की, सिंदुर, छोटी बहु, पवित्र रिश्ता, छोटी सी जिन्दगी, अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो, शोभा सोमनाथ की, खिचड़ी, बनुँ मैं तेरी दुल्हन” । COLORS की “लागी तुझसे लगन, बालिका बधु, ससुराल सिमर का, हमारी सास लिला, ना आना इस देश में लाडो, उत्तरन” । SONY की “अब होगा फुल ऑन, कॉमेडी सर्कस का नया दौर, X फेक्टर” । NDTV IMAGINE की “द्वारकाधीश, बींद बनुंगा घोड़ी चढ़ुँगा, बाबा ऐसो वर ढुंढो, चन्द्रगुप्त मौर्य, महिमा शनि देव की, अरमानों का बलिदान-आरक्षण” । SAB TV की “ऑफिस ऑफिस, तारक मेहता का उल्टा चश्मा, लापतागंज” । यह कार्य आज तक भारत सरकार अपने किसी भी नियमों और नीतियों के तहत सम्पूर्ण रुप से नहीं कर पायी है क्योंकि भारत सरकार ये सारे कार्य कागजों में ही करती आ रही है । व्यहारिक धरातल पर कुछ भी नहीं हुआ है और हो भी तो कैसे, इनके कार्यकारी अधिकारियों में इच्छाशक्ति ही नहीं है । केवल ऑकड़ो और प्रतिवर्ष हिन्दी प्रचार-प्रसार के लिये धनराशि मुहैया कराने का खेल ही चल रहा है और शायद चलता भी रहेगा ।

अन्त में मैं यह कहना चाहुँगा कि सबकुछ एकतरफ और इच्छाशक्ति एकतरफ । यदि कोई लाख कोशिश कर लें पर यदि हमारे दिल में हिन्दी के प्रति या राष्ट्रहित के प्रति जागरुकता नहीं है या कुछ सृजनात्मक चाहत नहीं है तो कोई भी हमें हिन्दी नहीं सीखा सकता है ।

अतः जरुरत है हिन्दी विकास के प्रति नेक भावना की जो एकमात्र नेक सोच और राष्ट्र प्रेम से ही पैदा की जा सकती है । जरुरत है अपनी घटिया सोच को बदलने की ।

तुलसीदास जी ने कहा भी है – जिसकी रही भावना जैसी…प्रभु मुरति तिन देखहुँ तैसी…

 

4 COMMENTS

  1. हाँ भाई, निकम्मी कोंग्रेस सरकार तो हिन्दी को बढ़ावा देने से रही. अब उम्मीद की किरण दूरदर्शन और बोलीवुड ही है.
    लेकिन दूरदर्शन तो नेहरू-गांधी खानदान के महिमा मंडन में लग गया है और बोलीवुड भी धीरे-धीरे पाक-परस्त ताताको के हाथ में जा रहा है.

  2. पन्तजी कि पंक्तिया मुझे याद आ रही है।
    ” कोटि कोटि संतान नग्न तन ,
    अर्ध-क्षुधित,शोषित,निरस्त्र जन ,
    मूढ असभ्य अशिक्षित निर्धन ,

    नत मस्तक तरुतल निवासिनी,
    मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी ,
    वह अपने घर मे प्रवासिनी ,
    भारत माता ग्रामवासिनी । “

  3. उमेश यादव जी, आपने ने निसंदेह एक अच्छा लेख लिखकर हिन्दी को प्रोत्साहित करने की दिशा मे एक अच्छा प्रयास किया है ।आज हिन्दी मे काम करने मे अधिकतर हीन भावना ग्रस्त हिन्दी भाषी लोग भी लज्जा का अनुभव करते है ,और हिन्दी के बजाय अंग्रेजी मे अपना काम करते है ,जो आसानी से हिन्दी मे भी किया जा सकता है ।गुलामी की इस विद्रूप, विड्म्बना से हिन्दी अपने घर मे ही प्रवासिनी बनती जा रही है ,यह शोचनीय है ।
    आपका धन्यवाद ।

  4. उमेश यादव जी॥
    बहुत बहुत बधाइ ।
    हिन्दी के प्रचार व प्रसार मे यह लेख एक सशक्त लेख है जो एक भारतीय लोगो को झकझोर सकने मे अपना प्रभाव समेटे हुए है ,शर्त यह है कि यह आम जन साधारण व विशिष्ट ,लोगो तक पहुचे । आपने मीडिया की बात की है ,यह सच है ,पर उनका हिन्दी मे कार्य करना उनकी एक व्यापारिक मज़बूरी है ,इनके मालिक ,मुख्तार , निर्देशक, ,कर्मी दल, अभिनेता, आपसी कामो मे हिन्दी के बजाय अंग्रेजी ही ज्यादा इस्तेमाल करते है ,और इसे अपनी शान मानते है । यह विरोधाभास ,हास्यास्पद है । बहरहाल ,यह एक सार्थक लेख है ,और भी इस क्षेत्र मे काम करना होगा तब जाकर जनजागरण आएगा ।

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