पृथ्वी के अस्तित्व का आधार है पर्यावरण

प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती। प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है – प्र और कृति। प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ/उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है। कहने का तात्पर्य प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है। प्रकृति दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक प्रकृति और मानव प्रकृति। प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व- पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश शामिल हैं। मानव प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। पृथ्वी मां स्वरुप है। प्रकृति जीवन स्वरुप है। पृथ्वी जननी है। प्रकृति पोषक है। पृथ्वी का पोषण प्रकृति ही पूरा करती है। जिस प्रकार माँ के आँचल में जीव जंतुओं का जीवन पनपता या बढ़ता है तो वहीँ प्रकृति के सानिध्य में जीवन का विकास करना सरल हो जाता है। पृथ्वी जीव जंतुओं के विकास का मूल तत्व है। प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। विकास और आधुनिकता की दौड़ में पर्यावरण को नुकसान पहुँचाना ठीक नहीं है। हम प्रकृति से दूर जा रहे हैं। झरना,नदी, झील और जंगल देखने के लिए हमें बहुत दूर जाना पड़ता है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का खामियाजा हम समय-समय पर भुगत भी रहे हैं। कभी बाढ़ आ जाती है तो कभी बादल फटते हैं। कहीं धरती में पानी सूख रहा है तो कहीं की जमीन आग उगल रही है। ये सब क्लाइमेट चेंज की वजह से ही हो रहा है। पेडों के कटने से हवा इतनी दूषित हो गई है कि शहरों में सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। ग्लोबल वार्मिंग से गर्मी अपनी चरम सीमा पर है। अत्यधिक गर्मी का पड़ना डायरिया, ब्रेन स्ट्रोक आदि बीमारियों का कारण बनता है। शहरों की लाइफ तो पर्यावरण और प्रकृति से बहुत दूर हो गई है। यहां रहने वाले लोगों को ऐसी बीमारियां हो रही हैं जो पहले न कभी सुनी और न कभी लोगों ने देखी। इन सबकी वजह कहीं न कहीं हमारी खराब होती दैनिक दिनचर्या भी है। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पूरी दुनिया में पर्यावरण को बचाने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाता है। इसीलिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस साल विश्व पर्यावरण दिवस 2022 की थीम है – ‘ओनली वन अर्थ ‘ यानी केवल एक पृथ्वी रखी गई है। जिसका मतलब है कि ‘प्रकृति के साथ सदभाव में रहना’ जरुरी है। जलवायु किसी स्थान के वातावरण की दशा को व्यक्त करने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह शब्द मौसम के काफी करीब है। जलवायु और मौसम में कुछ अन्तर है। जलवायु बड़े भूखंडो के लिये बड़े कालखंड के लिये ही प्रयुक्त होता है जबकि मौसम अपेक्षाकृत छोटे कालखंड के लिये छोटे स्थान के लिये प्रयुक्त होता है। पूर्व में पृथ्वी के तापमान के बारे में अनुमान बताते हैं कि यह या तो बहुत अधिक था या फिर बहुत कम। मुख्य रूप से,सूर्य से प्राप्त ऊर्जा तथा उसका हास् के बीच का संतुलन ही हमारे पृथ्वी की जलवायु का निर्धारण और तापमान संतुलन निर्धारित करती हैं। यह ऊर्जा हवाओं,समुद्र धाराओं और अन्य तंत्र द्वारा विश्व भर में वितरित हो जाती हैं तथा अलग-अलग क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती है। जलवायु पर्यावरण को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कारक है। क्योंकि जलवायु से प्राकृतिक वनस्पति,मिट्टी,जलराशि तथा जीव जन्तु प्रभावित होते हैं। जलवायु मानव की मानसिक तथा शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव डालती है। मानव पर प्रभाव डालने वाले तत्वों के जलवायु सर्वाधिक प्रभावशाली है क्योंकि यह पर्यावरण के अन्य कारकों को भी नियंत्रित करती है। कहने का तात्पर्य यह है की पृथ्वी का संरक्षण तभी संभव है जब हमारा पर्यावरण शुद्ध हो। विश्व में जलवायु परिवर्तन चिंता का विषय बना हुआ है। शहरों का भौतिक विकास जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है। मृदा संरक्षण में जलवायु परिवर्तन की भूमिका अहम् होती है। अतएव समाज को प्रकृति से जोड़ने और समाज को प्रकृति के करीब लाने की आवश्यकता है। मृदा संरक्षण और प्रकृति के बारे में समुदायों को जागरूक होना होगा। पृथ्वी की सुरक्षा का घेरा है वायुमंडल। प्रकृति का पूरे मानव जाति के लिए एक सामान व्यवहार होता है। प्रकृति का सम्बन्ध धर्म विशेष से नहीं होता। अतएव सभी मानव जाति को प्रकृति को अपना मूल अस्तित्व समझना चाहिए। पृथ्वी का वातावरण सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है,उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड,मीथेन,नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। ये गैसें सूर्य की ऊर्जा का शोषण करके पृथ्वी की सतह को गर्म कर देती है इससे पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन हो रहा है। गर्मी की ऋतु लम्बी अवधि की और सर्दी की ऋतु छोटी अवधि की होती जा रही है। पर्यावरण की जागरूकता,जलवायु परिवर्तन की मार से बचा सकती है। अतएव हम कह सकते हैं कि शुद्ध पर्यावरण ही पृथ्वी के अस्तित्व का आधार है।
लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह

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