– दिव्य अग्रवाल
हरियाणा में मजहबी उपद्रव किसी एक प्रदेश की समस्या नहीं है अपितु यह समस्या धीरे धीरे पुरे भारत की होने वाली है। इसको समझने के लिए कुछ पूर्व में जाना होगा जैसे रामनवमी हो या हनुमान जयंती , दुर्गा पांडाल हो या रामलीला का मंचन जहाँ भी इस्लामिक जनसख्या बहुसंख्यक है वहां निरंतर हमले होते हैं धार्मिक कार्यो को बाधित किया जाता है और संगठनात्मक शक्ति के अभाव में हिन्दू को पलायन करना पड़ता है। हिन्दुओ के अनेको धार्मिक स्थल के चारो तरफ इस्लामिक समाज ने या तो दुकाने खोलकर या दुकाने किराए पर लेकर , अवैध कब्जे कर या अत्यधिक मूल्य पर हिन्दुओ से जमीने खरीदकर अपने समाज को बहुसंख्यक के रूप में स्थापित कर लिया है। अब उन धार्मिक स्थलों पर प्रतिदिन , विशेष पर्व पर या किसी आयोजन पर कितने हिन्दू आते हैं उनमे पुरुषो की संख्या कितनी होती है , महिलाओ की कितनी होती है , बच्चो की कितनी होती है , कितने श्रद्धालु निहत्थे आते है , कितने पैदल , किस मार्ग से आते जाते हैं, आपत्कालीन स्तिथि में बचने का क्या विकल्प है इस प्रकार की सभी जानकारी मजहबी कटटरपंथी बहुत ही सहजता से अर्जित कर लेते हैं जिसका सीधा नुकसान सनातनी समाज को होता है। मेवात नूह में यही तो हुआ पुरे सनातनी समाज को घेर कर मंदिर प्रांगण व् मार्ग पर निहत्थे हिन्दुओ पर विधर्मियो द्वारा पहाड़ो से लेकर सड़को तक हमला किया गया। इसी प्रकार की घटना सपा शासन काल में ग़ाज़ियाबाद के डासना मंसूरी राजमार्ग पर हुई थी जिसमे मजहबी कटटरपंथी हिन्दू महिलाओं को बसों से खींचकर जंगलो में ले गए थे, पुलिसकर्मियों की वर्दिया फाड़ दी थी, चौकी में आग लगा दी थी। अतः पुनः धार्मिक स्थलों की चर्चा की जाए तो उदहारण के रूप में सहारनपुर बेहट के सिद्धपीठ माँ शाकुंबरी देवी के मंदिर की स्थिति यह है की यदि मजहबी कटटरपंथी वहां हमला कर दें तो पहड़ियो से एक भी श्रद्धालु के पास जीवित बचकर निकलने का मार्ग नहीं है वो अलग बात है की आज पुरे इस्लामिक समाज को मंदिर में आने वाले यात्रियों के कारण व्यापार मिल रहा है तो मजहबी कटटरपंथी वहां कुछ उपद्रव कर नहीं रहे इसी प्रकार की स्थिति अन्य धार्मिक स्थलों की भी हो चुकी है। वास्तविकता तो यह है की आने वाले समय में सनातनी समाज अपने किसी भी तीर्थस्थल पर जा पायेगा यह भी विचारणीय है जिस प्रकार सर तन से जुदा के नारो से हिन्दुओ में यह भय स्थापित किया गया की यदि तुमने आसमानी विचारो की सत्यता पर चर्चा भी की तो तुम्हारा सर कलम कर दिया जाएगा अब इसी प्रकार का भय धार्मिक स्थलों की यात्रा को लेकर स्थापित किया जाएगा क्यंकि सनातनी समाज अपने धर्म की शास्त्र व् शस्त्र विद्या को तो विस्मृत कर चूका है और निहत्था अपने परिवार को बचाएगा कैसे । एक विचारक व् लेखक का कर्तव्य है सत्यता को लिखना बाकी समाज किस विवेक से समझता है या समझना ही नहीं चाहता यह समाज के ऊपर है।
दिव्य अग्रवाल