Home समाज सबको सिर्फ सेक्स चाहिए, प्यार नहीं 

सबको सिर्फ सेक्स चाहिए, प्यार नहीं 

0
2340
अनिल अनूप
.. मैं एक ट्रांसजेंडर सेक्‍स वर्कर हूं. ये है मेरी कहानी.
12 जून, 1992 को आजमगढ़ के एक मध्‍यवर्गीय परिवार में मेरा जन्‍म हुआ. हमारा बड़ा सा संयुक्‍त परिवार था. प्‍यार करने वाली मां और रौब दिखाने वाले पिता. चाचा, ताऊ, बुआ और ढेर सारे भाई-बहन. मैं पैदा हुआ तो सबने यही समझा कि घर में लड़का पैदा हुआ है. मुझे लड़कों की तरह पाला गया, लड़कों जैसे बाल कटवाए, लड़कों जैसे कपड़े पहनाए. बहनों ने भाई मानकर ही राखियां बांधी और मां ने बेटा समझकर हमेशा बेटियों से ज्‍यादा प्‍यार दिया. हमारे घरों में ऐसा ही होता है. बेटा आंखों का तारा होता है और बेटी आंख की किरकिरी. ये रवींद्रनाथ टैगोर का एक नॉवेल भी है. बहुत साल पहले पढ़ा था, जब मैं पहले-पहल दिल्‍ली आया था.
सबकुछ ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि कुछ भी ठीक नहीं रहा. मैं जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था, मेरे भीतर एक दूसरी दुनिया जन्‍म ले रही थी. घर में ढेर सारी बहनें थीं, बहनें सजती-संवरती, लड़कियों वाले काम करतीं तो मैं भी उनकी नकल करता. चुपके से बहन की लिप्‍सटिक लगाता, उसका दुपट्टा ओढ़कर नाचता. मेरा मन करता कि मैं उनकी तरह सजूं, उनकी तरह दिखूं, उनकी तरह रहूं. लेकिन हर बार एक मजबूत थप्‍पड़ मेरी ओर बढ़ता. छोटा था तो बचपना समझकर माफ कर दिया जाता, थोड़ा बड़ा हुआ तो कभी थप्‍पड़ पड़ जाता तो कभी बहन मार खाने से बचा लेती. बहन सबके सामने बचाती और अकेले में समझाती कि मैं लड़का हूं. मुझे लड़कों के बीच रहना चाहिए, घर से बाहर खेलना चाहिए, लेकिन मुझे तो बहनों के बीच रहना अच्‍छा लगता था. बाहर मैदान में जहां सारे लड़के खेलते थे, वहां जाने में बहुत डर लगता. पता नहीं क्‍यों, वो भी मुझे अजीब नजरों से देखते और तंग करते थे. उनकी अजीब नजरें वक्‍त के साथ और डरावनी होती गईं.
मैं स्‍कूल में ही था, जब वह घटना घटी. दिसंबर की शाम थी. अंधेरा घिर रहा था. तभी उस दिन स्‍कूल के पास एक खाली मैदान में कुछ लड़कों ने मुझे घेर लिया. उन्‍हें लगता था कि मैं लड़की हूं. वो जबर्दस्‍ती मुझे पकड़ रहे थे और मैं रो रहा था. खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था. उन्‍होंने जबर्दस्‍ती मेरे कपड़े उतारे और ये देखकर छोड़ दिया कि मेरे शरीर का निचला हिस्‍सा तो लड़कों जैसा ही था. इस हाथापाई में मेरे पेट में एक सरिया लग गया. मेरी पैंट खुली थी और पेट से खून बह रहा था. वो लड़के मुझे उसी हालत में अंधेरे में छोड़कर भाग गए. मैं पता नहीं, कितनी देर वहां पड़ा रहा. फिर किसी तरह हिम्‍मत जुटाकर घर वापस आया. मैंने किसी को कुछ नहीं बताया. चोट के लिए कुछ बहाना बना दिया. घरवाले मुझे अस्‍पताल ले गए. मैं ठीक होकर वापस आ गया.
दुनिया से अलग मेरे भीतर जो दुनिया बन रही थी, वो वक्‍त के साथ और गहरी होती चली गई. मेरी दुनिया में मैं अकेला था. सबसे अपना सच छिपाता, कई बार तो अपने आप से भी. मैं अंदर से डरा हुआ और बाहर से जिद्दी होता जा रहा था.
घर में सब मुझे प्‍यार करते थे, मां और बहन सबसे ज्‍यादा. लेकिन जब बड़ा हो रहा था तो लगा कि उनका प्‍यार काफी नहीं है. स्‍कूल में एक लड़का था- सन्‍नी. वो मेरा पहला ब्‍वॉयफ्रेंड था, मेरा पहला प्‍यार. लेकिन बचपन का प्‍यार बचपन के साथ ही गुम हो गया. जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, दुनिया देखते हैं, हमें लगता है कि हम इससे ज्‍यादा के हकदार हैं, इससे ज्‍यादा पैसे के, इससे ज्‍यादा खुशी के, इससे ज्‍यादा प्‍यार के. जब साइकिल थी तो मैं उसमें ही खुश था. स्‍कूटी आई तो लगा, साइकिल की खुशी इसके आगे कुछ नहीं. साइकिल से मैं कुछ किलोमीटर जाता था, और स्‍कूटी से दसियों किलोमीटर. लगा कि आगे रास्‍तों पर और प्‍यार मिलेगा, और खुशी. मैं दौड़ता चला गया. लेकिन जब आंख खुली तो देखा कि रास्‍ता तो बहुत तय कर लिया था, लेकिन न प्‍यार मिला, न खुशी. मेरे 9 ब्‍वायफ्रेंड रहे. हर बार मुझे लगता था कि ये प्‍यार ही मेरी मंजिल है. लेकिन हर बार मंजिल साथ छोड़ देती. सबने मेरा इस्‍तेमाल किया, शरीर से, पैसों से, मन से. लेकिन हाथ किसी ने नहीं थामा. सबको मुझसे सिर्फ सेक्‍स चाहिए था. सबने शरीर को छुआ, मन को नहीं. सबने कमर में हाथ डाला, सिर पर किसी ने नहीं रखा.
फिर एक दिन मैंने फैसला किया कि अगर यही करना है तो फ्री में क्‍यों, पैसे लेकर ही क्‍यों न किया जाए.
मैं बाकी लड़कों की तरह पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, अपना कॅरियर बनाना चाहता था. कानपुर यूनिवर्सिटी से एम.कॉम किया और सीए की परीक्षा भी दी. अब तक जिंदगी उस मुकाम पर पहुंच चुकी थी कि मैं घरवालों और आसपास के लोगों के लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया था. मैं समाज में, कॉलेज में मिसफिट था.
मैं लड़का था, लेकिन लड़कियों जैसा दिखता था. मर्द था, लेकिन औरत जैसा महसूस करता था. मेरा दिल औरत का था, लेकिन उसमें बहुत सारी कड़वाहट भर गई थी. प्‍यार की तलाश मुझे जिंदगी के सबसे अंधेरे कोनों में ले गई. बदले में दी कड़वाहट और गुस्‍सा.
अपनी पहचान छिपाने के लिए दिल्‍ली आ गया. नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन मिली नहीं. शायद उसके लिए भी डिग्री से ज्‍यादा ये पहचान जरूरी थी कि तुम औरत हो या मर्द. मुझे खुद नहीं पता कि मैं क्‍या था. यहां मैं कुछ ऐसे लोगों के संपर्क में आया, जो मेरे जैसे थे. उन्‍हें भी नहीं पता था कि वो औरत हैं या मर्द. अजनबी शहर में रास्‍ता भूल गए मुसाफिर को मानो घर मिल गया. कोई तो मिला, जिसे पता है कि मेरे जैसा होने का अर्थ क्‍या होता है. कोई तो मिला, जो सेक्‍स नहीं करना चाहता था, लेकिन उसने सिर पर हाथ रखा. थोड़ी करुणा मिली तो मन की सारी कड़वाहट आंखों के रास्‍ते बह निकली. मैं थोड़ी और स्‍त्री हो गया.
इन नए दोस्‍तों ने मुझे खुद को स्‍वीकार करना सिखाया, शर्म से नहीं सिर, उठाकर. मैंने उनके साथ एनजीओ में काम किया, अपने जैसे लोगों की काउंसिलिंग की, उनके मां-बाप की काउंसिलिंग की. सबकुछ ठीक होने लगा. लेकिन दिल के किसी कोने में अब भी कोई कांटा चुभा था. प्‍यार की तलाश अब भी जारी थी. कुछ था, जिसे सिर्फ दोस्‍त नहीं भर सकते थे. प्‍यार किया, फिर धोखा खाया. जिसको भी चाहा, वो रात के अंधेरे में प्‍यार करता और दिन की रौशनी में पहचानने से इनकार कर देता. और फिर मैंने तय किया कि ये काम अब मैं पैसों के लिए करूंगा. शरीर लो और पैसे दो.
मुझे आज भी याद है मेरा पहला काम. एक सेक्‍स साइट पर तन्‍मय राजपूत के नाम से मेरा प्रोफाइल बना था. उसी के जरिए मुझे पहला काम मिला. नोएडा सेक्‍टर 11 में मेट्रो हॉस्पिटल के ठीक सामने वाली गली में मैं एक आदमी के पास गया. वो आदमी मुझसे सिर्फ 4-5 साल बड़ा था. मैंने पहली बार पैसों के लिए सेक्‍स किया. उनकी भाषा में इसे सेक्‍स नहीं, सर्विस कहते हैं. मैंने उसे सर्विस दी, उसने मुझे 1500 रु. तब मेरी उम्र 22 साल थी. उस दिन वो 1500 रु. हाथ में लेकर मैं सोच रहा था कि जेरी, तूने जो रास्‍ता चुना है, उसमें हो सकता है तुझे बदनामी मिले, लेकिन पैसा अथाह मिलेगा. लेकिन हुआ ये है कि बदनामी और गंदगी तो मिली, लेकिन पैसा नहीं. इस रास्‍ते से कमाए पैसों का कोई हिसाब नहीं होता. ये जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है. ये सिर उठाकर की गई कमाई नहीं होती, सिर छिपाकर अंधेरे में की गई होती है.
एक बार जो मैं उस रास्‍ते पर चल पड़ा तो पीछे लौटने के सारे रास्‍ते बंद हो गए. अब हर रात यही मेरी जिंदगी है. एक शादीशुदा आदमी की जिंदगी में कुछ दिनों या हफ्तों का अंतराल हो सकता है, लेकिन मेरी जिंदगी में नहीं. हर रात हमें तैयार रहना होता है. 15 क्‍लाइंट हैं मेरे. कोई न कोई तो बुलाता ही है.
आपको लगता है कि सेक्‍स बहुत सुंदर चीज है, जैसे फिल्‍मों में दिखाते हैं. लेकिन मेरे लिए वो प्‍यार नहीं, सर्विस है. और सर्विस मेहनत और तकलीफ का काम है. हमारी लाइन में सेक्‍स ऐसे होता है कि जो पैसे दे रहा है, उसके लिए वो खुशी है और जो पैसे ले रहा है, उसके लिए तकलीफ. क्‍लाइंट जो डिमांड करे, हमें पूरी करनी होती है. जितना ज्‍यादा पैसा, उतनी ज्‍यादा तकलीफ. लोग वाइल्‍ड सेक्‍स करते हैं, डर्टी सेक्‍स करते हैं, मारते हैं, कट लगाते हैं. लोगों की अजीब-अजीब फैंटेसी हैं. किसी को तकलीफ पहुंचाकर ही एक्‍साइटमेंट होता है, किसी को तब तक मजा नहीं आता, जब तक सामने वाले के शरीर से खून न निकल जाए.
मैं ये सबकुछ बिना किसी नशे के पूरे होशोहवास में करता हूं. शराब, ड्रग्‍स कुछ नहीं लेता. जो कर रहा हूं, उससे मेरे शरीर को काफी नुकसान हो रहा है. अगर नशा करूंगा, ड्रग्‍स लूंगा तो सर्विस नहीं दे पाऊंगा. क्‍लाइंट शराब पीते हैं, ड्रग्‍स लेते हैं और मेडिकल स्‍टोर से सेक्‍स पावर बढ़ाने की दवा लेकर आते हैं और मैं पूरे होश में होता हूं. कई बार पूरी-पूरी रात ये सब चलता है.
दिन के उजाले में शहर की सड़कों पर बड़ी-बड़ी गाडि़यों में जो इज्‍जतदार चेहरे घूम रहे हैं, कोई नहीं जानता कि रात के अंधेरे में वही हमारे क्‍लाइंट होते हैं. बड़े-बड़े अधिकारी, पॉलिटिशियन, नेता, पुलिस वाले, एसएचओ. मैं नाम गिनाने लग जाऊं तो आपकी आंखें फटी रह जाएं. क्‍या पता कि आपके हाईफाई दफ्तर में घूमने वाली कुर्सी पर बैठा सूट-बूट वाला आदमी रात के अंधेरे में हमारा क्‍लाइंट हो. एक बार मैं कनॉट प्‍लेस में एक ऑफिस में इंटरव्‍यू देने गया. वो एक वक्‍त था, जब मैं इस जिंदगी से बाहर आना चाहता था. वहां जो आदमी मेरा इंटरव्‍यू लेने के लिए बैठा था, वो मेरा क्‍लाइंट रह चुका था. उसने कहा, इंटरव्‍यू छोड़ो, ये बताओ, फिर कब मिल रहे हो. मैं कोई जवाब नहीं दे पाया. पता नहीं, मुझे क्‍यों इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई थी. मैं उसका सामना नहीं कर पाया या अपना. बिना इंटरव्‍यू दिए लौट आया.
मेरी नजर में सेक्‍स शरीर की भूख है. प्‍यार कुछ नहीं होता. जहां प्‍यार हो, सेक्‍स जरूरी नहीं. दुनिया में जो प्‍यार का खेल चलता है, उसका सच कभी हमारी दुनिया में आकर देखिए. अच्‍छे-खासे शादीशुदा इज्‍जतदार लोग आते हैं हमारे पास अपनी भूख मिटाने. एक बार एक आदमी आया, बोला मेरी बीवी प्रेग्‍नेंट है. मुझे रिलीज होना है. मैंने उसके साथ ओरल सेक्‍स किया. ये क्‍या है, एक औरत जो तुम्‍हारी पत्‍नी है, उसके पेट में तुम्‍हारा बच्‍चा है, वो तुम्‍हें सेक्‍स नहीं दे सकती तो तुम सेक्‍स वर्कर के पास जाओगे. ज्‍यादातर मर्दों के लिए औरत का सिर्फ दो ही काम है, उनके साथ सोए और उनके मां-बाप की सेवा करे. 90 फीसदी मर्दों की यही हकीकत है. ज्‍यादातर अपनी बीवी से प्‍यार नहीं करते.

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,066 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress