गरीब के लिये महंगी और मिलावटी होती चिकित्सा

आज बीमारी के नाम से गरीब की रूह कांप जाती है वजह है देश में दिन प्रतिदिन मंहगा होता इलाज। बडे बडे पूंजीपतियो ने चिकित्सा के नाम पर आज जगह जगह दुकाने खोल ली है जिस कारण आज देश में प्राईवेट अस्पतालो की बा सी आई हुई है। इन में अधिकतर अस्पताल फाईव स्टार सुविधाओ से युक्त होने के साथ ही आम आदमी की पहुॅच से दूर रहते है यदि मजबूरन इन अस्पतालो में किसी गरीब को इलाज करवाना प जाये तो उसे एक जान बचाने के लिये अपने परिवार के न जाने कितने लोगो के भविष्यो को बनिये के यहा गिरवी रखना पडता है और कभी कभी इन अस्पतालो में इलाज कराने आये रोगी की मृत्यू होने पर मृत शरीर को छुडाने के लिये उस के परिवार के पास पैसे भी नही होते। वही आज देश के सरकारी अस्पतालो की हालत गरीबो से भी बदतर और दिनो दिन खस्ता होती जा रही है। आजादी के बाद चिकित्सा के क्षेत्र में निजी क्षेत्रो का हस्तक्षेप केवल 8 फीसदी था जो आज सरकार की उदासीनता के कारण 80 फीसदी तक हो चुका है। आज देश में जगह जगह मानको की अनदेखी करते हुए मेडीकल शिक्षा, प्रिशक्षण, मेडीकल टेकनीक और दवाओ पर नियंत्रण से लेकर अस्पतालो के निर्माण और चिकित्सा सुविधाओ देने में निजी क्षेत्रो का बोलबाला होने के साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में प्राईवेट अस्पतालो के मालिक भरपूर पैसा कमाने के साथ ही सरकार का मुॅह भी चीड़ा रहे है।

सरकारी योजनाओ के बडे बडे फ्लैक्स बोर्ड अखबारो में विज्ञापन के रूप में सरकार लगवा और छपवा तो देती है पर आम आदमी के लिये ये तमाम सरकारी योजनाए सरकारी छलावा और सफेद हाथी जैसी होती है जो बहुत जल्द ही देश में दानव रूपी भ्रष्टतंत्र के आगे दम तोड देती है। सरकार के तमाम दावो के बाद भी देश में गांवगांव तक बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहय्या कराने के दावो के बीच देश की राजधानी सहित विभिन्न राज्यो में सरकारी और कुछ केंद्रीय अर्द्व सैनिक बलो के स्वास्थ्य केंद्रो में करोडो रूपये मूल्य की दवांए घटिया पाई गई। पिछले दिनो जांच के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली स्थित पंडित मदन मोहन मालवीय अस्पताल में ॔॔एंटा एसिड’’ की लगभग 4320 बोतले जिन की कीमत 50444 आंकी गई, चैन्नई स्थित सरकारी मेडिकल स्टोर (जीएमएसडी) में ॔॔पारासिटामोल’’ 500 एमजी की 2,99,800 गोलिया व पीजीआई चंडीग में 40327 रूपये मूल्य की ॔॔पारासिटामोल’’ एंव ॔॔क्लोराक्वीन’’ टैबलेट जांच में घटिया पाई गई जिन का उपयोग रिपोर्ट आने तक किया जा चुका था। वही सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले पॉच सालो में हरियाणा में 2005 में विटामिन बी कंप्लेक्स की 56000 गोलिया, डेक्ट्रोस इंजेक्शन की 6200 व 2006 में 3640 शीशिया। इनके अलावा 2006 में ही ॔॔सेरोपेप्टीडोज’’ की 53400 गोलिया और ॔॔एम्पीसिलिन’’ इंजेक्शन की 4400 शीशिया 2007 में जांच में घटिया पाई गई। सरकारी अस्पतालो में एक्सपायर दवाओ का वितरण और अधिकारियो के निरीक्षण के दौरान लाखो रूपये की दवाओ को जलाकर नष्ट करना तो आम बात है। गरीब मरे या जिये सरकारी अस्पताल के डाक्टरो को इस बात से कोई मतलब नही।

दवाओ के साथ ही खाद्य पदार्था और फलो में मिलावट का धंधा आज देश में जोर शोर से चल रहा है इस के साथ ही मंहगाई की मार अलग अगर गरीब अपने बच्चो के लिये कुछ फल लेकर आ रहा होता है तो रास्ते में कुछ लोग पूछने लगते है क्या घर में कोई बीमार है। फलो को पकाने में उपयोग किये जा रहे घटिया केमिकल दूध में डिर्टजेंट, यूरिया, सब्जियो रंगने में इस्तेमाल किये जा रहे घातक केमिकल रंग और इन्हे जल्द से जल्द उगाने के लिये खाद के इस्तेमाल ने गरीब की औसत आयु आज काफी घटा दी है। दिन भर मेहनत मजदूरी करने के बाद भी शरीर को उर्जा प्रदान करने के लिये आज वो क्या खाए घी दूध ऊॅचे दाम चुकाने के बावजूद नकली होते है। नकली दूध में पाए गये आक्सीटीसिन की वजह से उस का पावर हाऊस कहे जाने वाला शरीर का मुख्य अंग लीवर कमजोर हो रहा जो संक्रमण बने पर अचानक फैल हो जाता है। इंडीयन सोसाइटी ऑफ गैस्टोइंटोलोजी और गणेश विद्यार्थी मेडीकल कालेज कानपुर के मेडिसन विभाग द्वारा कराए गये सर्वेक्षण में पिछले दिनो ये बात सामने आई।

दरअसल हमारे देश में गरीबो की गणना करने के मापदण्ड विभिन्न संस्थाओ के साथ ही प्रदेश सरकारो के भी अलग अलग है। जिस के कारण गणना में प्रायः अंतर आ जाता है और देश में अपुष्ट आंकलन के कारण स्थिति स्पष्ट नही हो पाती। ओर गरीबो के लिये सरकार द्वारा बनाई तमाम योजनाए सरकारी आकडो का पेट भरने मात्र रह जाती है। सरकार के लक्ष्य और गरीब तक नही पहॅुच पाती है। देश मे सरकार द्वारा करोडो अरबो रूपया पानी की तरह बहाने के बाद भी गरीब महिलाओ की स्वास्थ्य संबधी देखभाल और बेहतरी पर समुचित ध्यान नही दिया जा रहा है। हर साल भारत में हजारो गरीब महिलाए केवल इस लिये मौत के मुॅह में समा जाती है क्याकि उन की पहॅुच सरकार द्वारा चलाई जा रही मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओ तक नही होती है। यूनिसेफ की ताजा रिर्पोट के अनुसार भारत में हर वर्ष गर्भावस्था तथा प्रसव की जटिलताओ के कारण 67,000 महिलाओ की मौत हो जाती है। ॔स्टेट ऑफ द वर्ल्ड मदर्स 2010’ की रिर्पोट के अनुसार भारत में 74,000 मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ (एकि्रडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट) की ओर 21,066 ऑग्जिलरी नर्स मिडवाइफ्स (एएनएम) की कमी है। सरकारी मानदंडो के अनुसार मैदानी इलाको में 1000 की आबादी पर एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और 5000 की आबादी पर एक एएनएम होना चाहिये। ये ही कारण है कि भारत मां बनने के लिये सवोर्तम देशो की सूची में 73 वां स्थान पर है। हमारे देश में हर साल पॉच साल से कम उम्र के 19.5 करोड बच्चे मौत के मुॅह में चले जाते ह यानि हर दिन देश में 5000 बच्चे या प्रति 20 सेकंड में एक बच्चे की मौत होती है। यह आंकडा विश्व में सर्वोधिक है।

मंहगाई से बेहाल परेशान गरीब आज सरकार से ये पूछना चाहती है कि जिस देश में 19.5 करोड पॉच वर्ष से कम उम्र के बच्चे हर साल मौत के मुॅह में समा जाते हो जिस देश में अस्पतालो के गेट के बाहर गरीब सिसक सिसक कर मर जाते हो जिस देश में हर वर्ष गर्भावस्था तथा प्रसव की जटिलताओ के कारण 67,000 महिलाओ की मौत हो जाती हो। जिस देश की अधिकतम विशाल आबादी भूखेनंगे की हो वहा करोडो अरबो रूपये कॉमनवैल्थ के नाम पर सिर्फ झूठी शान दिखाने के लिये खर्च करना क्या सही है। नही बिल्कुल नही, आज देश के गरीब नागरिको को जरूरत है दो वक्त की रोटी की, तन ापने के लिये कपडे की, देश के नौनिहालो को पाने के लिये स्कूलो की, दवाई के लिये सिसक सिसक कर मर रहे लोगो को अस्पतालो की। आखिर कब तक देशवासी कुछ देश के गैर जिम्मेदार लोगो की सनक की इतनी बडी कीमत अदा करते रहेगे, और कुछ राजनेता अपनी खामियो को छुपा कर झूठी शान की खातिर देशवासियो कि खून पसीने की कमाई को यू ही लुटाते रहेगे। देश का कानून ऑखो पर पट्टी बॉधे आखिर कब तक ये सब देखता रहेगा।

1 COMMENT

  1. श्री शादाब जी बिलकुल सही कह रहे है.

    आज समझदार व्यक्ति भगवान् से प्रार्थना करता है की किसी बीमारी में फ़सने से अच्छा है की किसी दुर्घटना में अकाल मृत्यु हो जाय, कम से कम जो पैसा महंगी दवाई में खर्च होना है वोह परिवार के दुसरे सदस्यों के रसन पानी, बच्चो की पढाई लिखाई पर खर्च हो जाय.

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