स्विस बैंक के डाटा चोरी करने वाले फ़ेल्सियानी का दावा

2
239

भारत के करोड़ों ईमानदार टैक्सदाताओं और नागरिकों के लिये यह एक खुशखबरी है कि फ़्रांस के HSBC बैंक के दो कर्मचारियों हर्व फ़ेल्सियानी और जॉर्जीना मिखाइल ने दावा किया है कि उनके पास स्विस बैंकों में से एक बैंक में स्थित 180 देशों के कर चोरों की पूरी डीटेल्स मौजूद हैं। 2 साल से इन्होंने लगातार यूरोपीय देशों की सरकारों को ईमेल भेजकर “टैक्स चोरों” को पकड़वाने में मदद की पेशकश की है। जर्मनी की गुप्तचर सेवा को भेजे अपने ईमेल में इन्होंने कहा कि ये लोग स्विटज़रलैण्ड स्थित एक निजी बैंक के महत्वपूर्ण डाटा और उस कम्प्यूटर तक पुलिस की पहुँच बना सकते हैं। इसी प्रकार के ईमेल ब्रिटेन, फ़्रांस और स्पेन की सरकारों, विदेश मंत्रालयों और पुलिस को भेजे गये हैं (यहाँ देखें…)। यूरोप के देशों में इस बात पर बहस छिड़ी है कि एक “हैकर” या बैंक के कर्मचारी द्वारा चोरी किये गये डाटा पर भरोसा करना ठीक है और क्या ऐसा करना नैतिक रुप से सही है? लेकिन फ़ेल्सियानी जो कि HSBC बैंक के पूर्व कर्मचारी हैं, पर फ़िलहाल फ़्रांस और जर्मनी तो भरोसा कर रहे हैं, जबकि स्विस सरकार लाल-पीली हो रही है। HSBC के वरिष्ट अधिकारियों ने माना है कि फ़ेल्सियानी ने बैंक के मुख्यालय और इसकी एक स्विस सहयोगी बैंक से महत्वपूर्ण डाटा को अपने PC में कॉपी कर लिया है और उसने बैंक की गोपनीयता सम्बन्धी सेवा शर्तों का उल्लंघन किया है।

फ़ेल्सियानी ने स्वीकार किया है कि उनके पास 180 देशों के विभिन्न “ग्राहकों” का डाटा है, लेकिन उन्होंने किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया, क्योंकि इस डाटा से उनका उद्देश्य पैसा कमाना नहीं है, बल्कि स्विस बैंक द्वारा अपनाई जा रही “गोपनीयता बैंकिंग प्रणाली” पर सवालिया निशान लगाना भर है। बहरहाल, फ़्रांस सरकार फ़ेल्सियानी से प्राप्त जानकारियों के आधार पर टैक्स चोरों के खिलाफ़ अभियान छेड़ चुकी है। स्विस पुलिस ने फ़ेल्सियानी के निवास पर छापा मारकर उसका कम्प्यूटर और अन्य महत्वपूर्ण हार्डवेयर जब्त कर लिया है लेकिन फ़ेल्सियानी का दावा है कि उसका डाटा सुरक्षित है और वह किसी “दूरस्थ सर्वर” पर अपलोड किया जा चुका है। इधर फ़्रांस सरकार का कहना है कि उन्हें इसमें किसी कानूनी उल्लंघन की बात नज़र नहीं आती, और वे टैक्स चोरों के खिलाफ़ अभियान जारी रखेंगे। फ़्रांस सरकार ने इटली की सरकार को 7000 अकाउंट नम्बर दिये, जिसमें लगभग 7 अरब डालर की अवैध सम्पत्ति जमा थी। स्पेन के टैक्स विभाग ने भी इस डाटा का उपयोग करते हुए इनकी जाँच शुरु कर दी है।

फ़ेल्सियानी ने सन् 2000 मे HSBC बैंक की नौकरी शुरु की थी, वह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में स्नातक और बैंक के सुरक्षा सॉफ़्टवेयर के कोड लिखता है। बैंक में उसका कई बार प्रमोशन हो चुका है और 2006 में उसे जिनेवा स्थित HSBC के मुख्यालय में ग्राहक डाटाबेस की सुरक्षा बढ़ाने के लिये तैनात किया गया था। इसलिये फ़ेल्सियानी की बातों और उसके दावों पर शक करने की कोई वजह नहीं बनती। फ़ेल्सियानी का कहना है कि बैंक का डाटा वह एक रिमोट सर्वर पर बैक-अप के रुप में सुरक्षित करके रखता था, जो कि एक निर्धारित प्रक्रिया थी, और मेरा इरादा इस डाटा से पैसा कमाना नहीं है।

जून 2008 से अगस्त 2009 के बीच अमेरिका के कर अधिकारियों ने स्विस बैंक UBS के “नट-बोल्ट टाइट” किये तब उसने अमेरिका के 4450 कर चोरों के बैंक डीटेल्स उन्हें दे दिये। कहने का मतलब यह है कि स्विटज़रलैण्ड की एक बैंक (जी हाँ फ़िलहाल सिर्फ़ एक बैंक) के 180 देशों के हजारों ग्राहकों (यानी डाकुओं) के खातों की पूरी जानकारी फ़ेल्सियानी नामक शख्स के पास है… अब हमारे “ईमानदार” बाबू के ज़मीर और हिम्मत पर यह निर्भर करता है कि वे यह देखना सुनिश्चित करें कि फ़ेल्सियानी के पास उपलब्ध आँकड़ों में से क्या भारत के कुछ हरामखोरों के आँकड़े भी हैं? भले ही इस डाटा को हासिल करने के लिये हमें फ़ेल्सियानी को लाखों डालर क्यों न चुकाने पड़ें, लेकिन जब फ़्रांस, जर्मनी, स्पेन और अमेरिका जैसे देश फ़ेल्सियानी के इन आँकड़ों पर न सिर्फ़ भरोसा कर रहे हैं, बल्कि छापेमारी भी कर रहे हैं… तो हमें “संकोच” नहीं करना चाहिये।

भारत के पिछले लोकसभा चुनावों में स्विस बैंकों से भारत के बड़े-बड़े मगरमच्छों द्वारा वहाँ जमा किये गये धन को भारत वापस लाने के बारे में काफ़ी हो-हल्ला मचाया गया था। भाजपा की तरफ़ से कहा गया था कि सत्ता में आने पर वे स्विस सरकार से आग्रह करेंगे कि भारत के तमाम खातों की जानकारी प्रदान करे। भाजपा की देखादेखी कांग्रेस ने भी उसमें सुर मिलाया था, लेकिन चुनाव निपटकर एक साल बीत चुका है, और हमेशा की तरह कांग्रेस ने अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है।

एक व्यक्ति के रुप में, प्रधानमंत्री की ईमानदार छवि पर मुझे पूरा यकीन है, लेकिन क्या वे इस मौके का उपयोग देशहित में करेंगे…? यदि फ़ेल्सियानी की लिस्ट से भारत के 8-10 “मगरमच्छ” भी फ़ँसते हैं, तो मनमोहन सिंह भारत में इतिहास-पुरुष बन जायेंगे…। परन्तु जिस प्रकार की “आत्माओं” से वे घिरे हुए हैं, उस माहौल में क्या ऐसा करने की हिम्मत जुटा पायेंगे? उम्मीद तो कम ही है, क्योंकि दूरसंचार मंत्री ए राजा के खिलाफ़ पक्के सबूत, मीडिया में छपने के बावजूद वे उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं, तो फ़ेल्सियानी की स्विस बैंक लिस्ट में से पता नहीं कौन सा “भयानक भूत” निकल आये और उनकी सरकार को हवा में उड़ा ले जाये…।

2 COMMENTS

  1. आदरणीय श्री चिपलूनकर जी,

    मैं अनेक बार आपकी अनेक बातों से असहमत होते हुए भी इस आलेख की अनेक बातों से पूरी तरह से सहमत हूँ, परन्तु मेरा सवाल है कि आखिर कब तक हम यह कहकर कि डॉ. मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत ईमानदारी पर हमें व्यक्तिगत रूप से या अन्य किसी को कोई सन्देह नहीं है, कब तक डॉ. सिंह को क्लीन चिट देते रहेंगे?

    इस मसय डॉ. मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत छवि कोई मायने नहीं रखती है। क्योंकि वे देश के प्रधानमन्त्री हैं और प्रधानमन्त्री के रूप में अपने अधिकार तथा कर्त्तव्यों का निर्वाह करने में कितने ईमानदार हैं, इस बात का अधिक महत्व है।

    यदि प्रधानमन्त्री के अपने मन्त्रीमण्डल का एक सदस्य स्वयं प्रधानमन्त्री के आदेशों की न मात्र अवज्ञा करता है, बल्कि साथ ही साथ देश के हितों के विरुद्ध कार्य करता रहे और फिर भी प्रधानमन्त्री चुप रहते हैं। इसको डॉ. मनमोहन सिंह की कौनसी व्यक्तिगत ईमानदारी कहा जायेगा?

    यदि डॉ. मनमोहन सिंह के पास प्रधानमन्त्री के पद के अधिकार नहीं हैं और यदि वे कुछ विरोधियों के अनुसार किसी के हाथ के रिमोट या कठपुतली हैं और साथ ही साथ व्यक्तिगत रूप से वास्तव में ईमानदार भी हैं, तो उन्हें अपने पद से त्यागपत्र क्यों नहीं दे देना चाहिये? एक साथ दो बातें नहीं चल सकती हैं। इस बारे में डॉ. मनमोहन सिंह को देश को सच्चाई बतानी ही होगी। अन्यथा हमें विदेशी शक्तियाँ पूर्व की भांति कभी भी गुलाम बनासकती हैं।

    इससे भी बडा सवाल यह भी है कि छोटे-छोटे और व्यक्तिगत या राजनैतिक लाभ के मुद्दों पर जो एकजुट विपक्ष संसद को नहीं चलने देता है, वही विपक्ष स्विस बैंक के मामलों में संसद को और देश को क्यों नहीं बन्द करवा पाता है?

    क्या केवल हम विचारकों और लेखकों को ही आपस में इन मुद्दों पर लिखने, विमर्श करने और बहस करने के लिये देश ने पैदा किया है?

    अब देश के लोगों को सांसदों से खुलकर पूछना ही चहिये कि आखिर वे कथित रूप से उपलब्ध स्विस बैंक के डाटा को भारत में लाने के लिये कठोरतम रुख क्यों नहीं अपनाते हैं?

    सार्थक आलेख के लिये धन्यवाद, लेकिन भाई चिपनूलकर जी आपके इस लेख में वो धार नजर नहीं आयी, जो हमेशा पढने को मिलती है। परमात्मा आप जैसे लेखकों को वह शक्ति हमेशा दे, जो नाइंसाफी के विरुद्ध आपकी कलम में चिनगारी बनके लहलहाती और फलती-फूलती रहे। शुभकामनाओं सहित।

  2. अब कुछ गोपनीय नहीं बचा …..भारत के बारे में बताते हैं की स्विस बैंकों में इतना धन जमा है …की ६० करोड़ लोगों को सरकारी नौकरी दी जा सकती है .देश के एक लाख गाँवों को ४ लेन रोड के द्वारा दिल्ली से जोड़ा जा सकता है ..पूरे देश के ३० करोड़ गरीब घरों को मुफ्त लाईट दी जा सकती है …..बगेरह बगेरह ….भारत की संसद को एकमत से स्विस सरकार पर ईमानदारी से दवाव डालना चाहिए ..वर्ना आलेख लिखत रहने .भृष्टाचार को कोसते रहना हमरी आदत में शुमार हो जाएगा ..

Leave a Reply to Dr. Purushottam Meena 'Nirankush' Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here