फीका-फीका फाग

बदले-बदले रंग है, फीका-फीका फाग !
ढपली भी गाने लगी, अब तो बदले राग !!

फागुन बैठा देखता, खाली हैं चौपाल !
उतरे-उतरे रंग है, फीके सभी गुलाल !!

बढ़ती जाए कालिमा, मन-मन में हर साल !
रंगों से कैसे मलें, इक दूजे के गाल !!

सूनी-सूनी होलिका, फीका-फीका फाग !
रहा मनों में हैं नहीं, इक दूजे से राग !!

स्वार्थ रंगी जब भावना, रही मनों को चीर !
बोलो सौरभ फाग में, कैसे उड़े अबीर !!

मन को ऐसे रंग लें, भर दें ऐसा प्यार !
हर पल हर दिन ही रहे, होली का त्यौहार !!

फौजी साजन से करे, सजनी एक सवाल !
भीगी सारी गोरियाँ, मेरे सूने गाल !!

आओ सजनी मैं रंगूँ, तेरे गोरे गाल !
अनायास होने लगा, मनवा आज गुलाल !!

सजनी तेरे सँग रचूँ, ऐसा एक धमाल !
तुझमे खुद को घोल दूँ, जैसे रंग गुलाल !!

✍ डॉo सत्यवान सौरभ

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