पहले हम, फिर सीबीआई

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enco248-1_1246794310_mदेहरादून के रणवीर सिंह फर्जी मुठभेड़ काण्ड में हमारी खोजबीन के निष्कर्षों पर आज सीबीआई ने मुहर लगा दी। दिल्ली से निकलने वाले एक राष्ट्रीय दैनिक में प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाली खबर का यह आमुख है।

खबर में यह गर्व झलकता है कि इतने लंबे समय तक तथ्य जुटाने की कवायद करने के बाद सीबीआई जिस निष्कर्ष पर पहुंची उसे तो अखबार ने पहले ही जाहिर कर दिया था। प्रकारान्तर से यह भी कहा गया है कि समाचार पत्र के खबरची जांच-पड़ताल के मामले में सीबीआई से भी एक कदम आगे हैं और सीबीआई भी उनके निष्कर्ष की ही पुष्टि करती है।

कुछ दशक पहले की कुलीन पत्रकारिता में जहां क्राइम बीट को थोड़ा हेय दृष्टि से देखा जाता था वहीं अब यह बीट वीआईपी हो गयी है। क्राइम बीट का महत्व स्थापित हो चुका है। पॉलिटिकल हो या शिक्षा अथवा स्वास्थ्य, क्राइम बीट के संवाददाता को किसी के भी पाले में घुस कर खबर निकालने की आजादी हासिल है।

अपनी विचित्र वेश-भूषा के साथ क्राइम रिपोर्टर टीवी स्क्रीन पर जिस नाटकीयता के साथ एण्ट्री लेते हैं वह बेमिसाल है। जो आरोपी न्यायालय में अपनी बेगुनाही साबित करने के लिये जूझ रहा होता है उसे ये बांकुरे खूनी, जल्लाद और हत्यारे जैसे विशेषणों से नवाजते हैं। कई चैनलों में तो प्राइम टाइम अब क्राइम टाइम बन चुका है।

अगर क्राइम का कोई ऐसा मामला हाथ लग जाये जिसका राजनैतिक मूल्य भी हो तो कहना ही क्या ! ऐसे समय में इस प्रस्तुति का बीड़ा अनेक बार तो स्वयं संपादक, प्रबंध संपादक या चैनल हेड ही उठा लेते हैं और प्राइम टाइम में नाटकीयता और स्वर के आरोह-अवरोह और पार्श्वसंगीत की मदद से वे रहस्यमय वातावरण का सृजन करते हैं, दर्शकों को अपनी अभिनय कला से विस्मय-विमुग्ध कर देते हैं।

मीडिया की प्रभावशीलता का उपयोग कर वे घटना विशेष को जाने या अनजाने किसी खास कोण पर केन्द्रित कर देते हैं। किसी व्यक्ति या संस्था के पक्ष अथवा विपक्ष में वे वातावरण बनाने में कामयाब रहते हैं । इसके चलते सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों पर यह दवाब रहता है कि वे अपनी जांच की दिशा मीडिया द्वारा दिखाये कोण पर ही केन्द्रित करें।

आरुषी हत्याकांड सहित कई मामलों में मीडिया की जांच एजेंसियों से आगे निकलने की होड़ ने जांच एजेंसियों पर इतना अधिक जनदवाब बना दिया कि उनके हाथ-पांव फूल गये। उन्हें हर दिन अपनी जांच की प्रगति का खुलासा करने के लिये विवश किया गया और आरोपियों के परिवारीजनों और मित्रों को किसी सेलेब्रिटी की तरह एक चैनल से दूसरे चैनल पर अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया। एजेंसियों द्वारा जांच की दिशा मीडिया से अलग होते ही उस पर टीका-टिप्पणी शुरू कर दी गयी।

रणबीर की हत्या के मामले में मीडिया ने प्रशासन पर जो दवाब बनाया, वस्तव में उसका ही परिणाम है कि सीबीआई जांच हुई और मीडिया द्वारा समूचे घटना क्रम पर व्यक्त किये गये संदेह की पुष्टि हुई। लेकिन “हम पहले और सीबीआई बाद में” की गर्वोक्ति मीडिया द्वारा अपनी सीमारेखा लांघने का अहसास कराती है।

मीडियाकर्मियों को यह सदैव स्मरण रखना चाहिये कि वे मीडिया प्रोफेशनल हैं, क्रिमिनोलॉजी प्रोफेशनल नहीं। उनके द्वारा की जाने वाली जांच में होने वाली एक छोटी चूक भी किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को तार-तार कर सकती है। शिक्षिका उमा खुराना का मामला इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

ऐसे भी अनेक मामले हैं जहां मीडिया ने किसी व्यक्ति अथवा संस्था को अपनी मान्यताओं, पूर्वाग्रह और अव्यावसायिक जांच प्रणाली के चलते मीडिया ट्रायल कर अपराधी घोषित कर दिया किन्तु उनके विरुद्ध न्यायालय में मामला साबित नहीं हो सका। एक प्रोफेशनल के नाते भी मीडियाकर्मियों की यह जिम्मेदारी है कि उनके अति उत्साह, बदहवासी और बड़बोलेपन की कीमत उनके संस्थान को न चुकानी पड़े।

-आशुतोष भटनागर

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आशुतोष
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे आशुतोषजी स्‍वतंत्र पत्रकार के नाते विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतर्जाल पर सम-सामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं। आप हिंदुस्‍थान समाचार एजेंसी से भी जुडे रहे हैं। सांस्‍कृतिक राष्ट्रवाद को प्रखर बनाने हेतु आप इसके बौद्धिक आंदोलन आयाम को गति प्रदान करने में जुटे हुए हैं।

3 COMMENTS

  1. मीडिया विशेष कोण को ही रखता है, और वह है जय महारानी -जय युवराज!

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