कविता

पाँच प्रेम कविताएँ

1

इंतजार

मैं तो भेजता रहूँगा

हमेशा उसको

‘ढाई आखर’ से पगे खत

अपने पीड़ादायक क्षणों से

कुछ पल चुराकर

उन्हें कलमबद्ध करता ही रहूँगा

कविताओं और कहानियों में

मैं सहेज कर रखूँगा

सर्वदा उन पलों को

जब आखिरी बार

उसने अपने पूरेपन से

समेट लिया था अपने में मुझे

और दूर कहीं

हमारे मिलन की खुशी में

चहचहाने लगी थी चिड़ियाएं

ऐसा नहीं है कि

मैं भूलने की कोशिश नहीं करता हूँ उसे

भूलने की उत्कट कोशिश करता हूँ

पर भूल कहाँ पाता हूँ उसे

इस असफल कोशिश में

वह और भी उत्कटता से

याद आती है मुझे

हँसता हूँ

लेकिन हँसते-हँसते

छलक पड़ती हैं ऑंखें

उससे हजारों मील दूर आ गया हूं

फिर भी

मन है कि मानता नहीं

घूम-फिरकर

चला जाता है उसी के पास

मैं जानता हूँ

अब वह नहीं आएगी

किन्तु दिल और आंखें

इस अमिट सत्य को

आज भी मानने को तैयार नहीं

वे आज भी

इंतजार करते हैं उसकी

और उसकी उन खतों की

जो कभी नहीं आएगा।

2

बदल गये रिश्‍ते

पहले

मैं मछली था

और तुम नदी

पर अब हम

नदी के दो किनारे हैं

एक-दूसरे से जुड़े हुए भी

और

एक-दूसरे से अलग भी।

3

मेरा प्यार

मेरा प्यार

कोई तुम्हारी सहेली तो नहीं

कि जब चाहो

तब कर लो तुम उससे कुट्टी

या कोई ईश निंदा का दोषी तो नहीं

कि बिना बहस किए

जारी कर दिया जाए

उसके नाम मौत का फतवा

या फिर

कोई मिट्टी का खिलौना तो नहीं

कि हल्की-सी बारिश आए

और गलकर खो दे वह अपनी अस्मिता

या कोई सूखी पत्तियां तो नहीं

कि छोटी-सी चिंगारी भड़के

और हो जाए वह जलकर खाक

मेरा प्यार

सच पूछो तो

तुम्हारी मोहताज नहीं

तुम्हारे बगैर भी है वह

क्योंकि मैंने कभी तुम्हें केवल देह नहीं समझा

मेरे लिए

देह से परे

कल भी थी तुम

और आज भी हो

मेरा प्यार

इसलिए जिएगा सर्वदा

तुम्हारे लिए

तुम्हारे बगैर भी

उसी तरह

जिस तरह

जी रही है

कल-कल करती नदी।

4

तुम्हारे जाने के बाद

तुम्हारे जाने के बाद

पता नहीं

मेरी आखों को क्या हो गया है

हर वक्त तुम्हीं को देखती हैं

घर का कोना-कोना

काटने को दौड़ता है

घर की दीवारें

प्रतिध्वनियों को वापस नहीं करतीं

घर तक आने वाली पगडंडी

सामने वाला आम का बगीचा

बगल वाली बांसवाड़ी

झाड़-झंकाड़

सरसों के पीले-पीले फूल

सब झायं-झायं करते हैं

तुम्हारी खुशबू से रची-बसी

कमरे के कोने में रखी कुर्सी

तुम्हारी अनुपस्थिति से

उत्पन्न हुई

रीतेपन के कारण

आज भी उदास है

भोर की गाढ़ी नींद भी

हल्की-सी आहट से उचट जाती है

लगता है

हर आहट तुम्हारी है

लाख नहीं चाहता हूँ

फिर भी

तुमसे जुड़ी चीजें

तुम्हें

दुगने वेग से

स्थापित करती हैं

मेरे मन-मस्तिष्क में

तुम्हारे खालीपन को

भरने से इंकार करती हैं

कविताएं और कहानियां

संगीत तो

तुम्हारी स्मृति को

एकदम से

जीवंत ही कर देता है

क्या करुं

विज्ञान, नव प्रौद्यौगिकी, आधुनिकता

कुछ भी

तुम्हारी कमी को पूरा नहीं कर पाते।

5

प्रथम प्रेम

इंसान को

कितना कुछ बदल देता है

प्रथम प्रेम

उमंग और उत्साह लिए

लौट जाता है वह

बचपन की दुनिया में

कुछ सपने लिए…

दिन, महीने, वर्ष

काट देता है

कुछ पलों में

कुछ वायदे लिए…

बेचैन रहता है

उसे पूरा करने के लिए

झूठ बोलता है

विरोध करता है

विद्रोह करने के लिए भी

तत्पर रहता है

सूख का एक कतरा लिए…

घूमता रहता है

सहेज कर उसे

अपने प्रियतम के लिए

हाँ, सचमुच!

बावरा कर देता है

इंसान को प्रथम प्रेम।

-सतीश सिंह