देसी मंडी में विदेशी खपत, जेब पर करारी चपत

क्षेत्रपाल शर्मा

आज एफ़ डी आई को लेकर कितनी गरमा गरम बहस है कि एक दूसरे के फ़ैसलों के आधार पर आरोप प्रत्यारोप मढे जा रहे हैं .लेकिन एक बुनियादी बात पर हम गोर कर लें कि क्या यह हमारे हित में हैं .जवाब मिलता है कि नहीं ,इससे पूर्ववर्ती महानुभावों ने तब क्या सोचा अब यह विचार का समय नहीं रह गया है . क्या कभी सोचा था कि एक लीटर पानी की कीमत , एक किलो गेहूं की कीमत और एक किलो नमक की कीमत एक समान होगी . नहीं न ।अब कोई एक्का दुक्का ही कमीज सिलवाना पसन्द करता है । सब सिली सिलाई खरीद कर पहनने का चलन जो बढ गया है ।आज बाज़ार चीनी केंची और सामान से भरा पटा है लेकिन स्थानीय मज़दूर जो इसे बनाने में लगे थे बेरोजगार् हो गए.कभी यह गाना जो शौक से गुन गुनाया जाता था अब हकीकत में सच हो रहा है कि

मेरा जूता है जापानी…….

अब बाज़ार में इटली , चीनी , बाहर के मुल्कों के सामान की बाढ सी आईहुई है तो क्या इससे हमारा आपसी श्रम संबंध बिगडेगा. विनिवेष हो ,लेकिन उन जगह जहां हम गुण्वत्ता के साथ बाज़ार में अपने कारीगरों को बेरोज़गार न होने दें और उन सामानों को देसी बाज़ार में लाएं जो हमारे आपस के हित को साध न सक रहे हों ।पिज्जा बर्गर और पेन्टलून , नाइक,और वेस्ट साइड आदि जैसे ब्रान्ड युवकों मे पहले ही जगह बना चुके हैं , मुश्किल है कि उनकी रुचि में परिवर्तन आ जाए .खाने पीने के मामले में मैं सिर्फ़ एक उदाहारण देना उचित समझता हूं कि यदि हमारे घर में रसोई का स्तर सुधर जाए तो हम नहीं मानते कि बाज़ार से खाने की आदत आप छोड़ नही देंगे.

तो खुदरा में जो आधे आध का विदेशी निवेश है वह जितना श्रम यहां लगाएगा उसका कई गुना मुनाफ़ा बाहर भेजेगा.तो बेहतर् यह लगता है कि हमारे ही कारीगरों को रोजगार मिले और समाज का हर वर्ग एक दूसरे के साथ और बंधा बन्धा महसूस करे वह ज्यादा फ़ायदे मंद लग रहा है। ज्यादा खुलापन और उससे रूस में हुए बवाल को हम इतनी जल्दी भुला भी तो नहीं सकते.कि वहां डबल् रोटी तक के लिए काफ़ी मारामारी हुई थी.

तो चलिए अब आलू को देख लें.

फ़सल इतनी अच्छी थी कि शीत भंडार में रखना मुनाफ़े का सोदा न रहा. और बिचोलिओं को घाटा उठाना पड़ गया चूंकि वे और कोई फ़सल न करके केवल मुनाफ़े पर ध्यान केन्द्रित किए रहे. तो किसान हाशिए पर है। अब जरूरत किसान नहीं कुछ ठेकेदार तय करते हैं तो किसान और रिटेलर के बीच आपस की वितरण प्रणाली के गड़बड़ाए असंतुलन को कैसे ठीक किया जाए यह समाज और अर्थ्शास्त्रियों के लिए एक विषय हो सकता है. फ़्रेन्चाइजी जो भी हों ,लेकिन मझोले बाज़ार में विदेशी खपत , देसी लोगों की जेब पर करारी चपत ही होगी.

आप को सजग रहना होगा . यह विषय अधिकारिओं के भरोसे छोडने का नहीं वरन सोचने के लिए यह है कि हम कौन से रास्ते चलें कि हमारा परिवार और समाज परस्पर भरोसे लायक रह जाए।यह हम सब कर सकते हैं भारत से छोटे मुल्कों ने तकनीकी में जो मुकाम हासिल किए हैं वह हम कर नहीं पाए । एक के बाद एक समस्या जूझने हेतु सामने आ जा रही है।सरकार कभी कोई स्थाई नहीं रही ।यह अदलनी बदलनी ही है , लेकिन जो आज हम निर्ण्यों के रूप में हम बो रहे हैं उसका असर अगली पौध पर न पड़े तो ठीक रहेगा।

अभी हाल में श्री सत्यव्रत चतुर्वेदीजी ने कहा कि पार्टी कोई भी हो लेकिन आज जो हम कानून बना रहे है वह एसा हो कि जिससे समाज और देश का व्यापक हित हो।हम कहने को झोंक में बहुत सारी बात कह और कर भी जाते हैं , कभी कभी लगता है कि कई पार्टियां जैसे एक हो गई हैं लेकिन एसा है नहीं , चूंकि

कहिबे को एकत बसत

अहि ,मयूर मृग बाघ

…….दीरघ दाघ निदाघ.

लेकिन जहां हमारे हित आर्थिक टकराने लगते हैं तो कुछ का चरित्र यह है कि वह समाज और देश से पहले अपनी , अपने परिवार की , कुनबे की और रिश्तेदारों की ही सिर्फ़ सोचते हैं , समाज और देश में वे रह रहे हैं यह तो उन्हें बार बार ध्यान दिलाना पड़ता है . अब समय नजदीक आ रहा है क्या आप उनको अब ध्यान दिलाएंगे?

हम आज मीठी चटनी के लालच में एक पराई गोद में बैठने को इतने भी आतुर और उतावले न हों कि हम अपने पड़ोसियों को गोद से उतारने पर हुए दर्द और फ़िर उनके विनाश को भूल जाएं. यह गोद कुछ एसी ही है।

तो क्यों न हम पुरानी बात पर अमल करें कि हम बाहर वालों के लिए तो एक सौ पांच हैं?

3 COMMENTS

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    dharmendra Kumar Gupta

    श्री क्षेत्रपाल शर्मा का आलेख “देसी मंडी में विदेशी खपत, जेब पर करारी चपत” विषय पर देश में घमासान मचा हुआ है .मैं अर्थशास्त्र का सामान्य ज्ञान रखता हूँ,अर्थशास्त्र का विद्वान तो मैं कतई नहीं हूँ , जो बात मेरी समझ में आती है वह इस प्रकार है-
    १) विदेशी पूंजी हमारे द्वारा तय प्राथमिकता के अनुसार आना चाहिए .
    २)प्राथमिकता में क्षेत्रवार वस्तुओं का चयन किया जाए .
    ३) अतिआवश्यक वस्तुएं ही ऐसी आमद में शामिल हों ,न कि ऐसी वस्तुओं को जो यहाँ बहुतायत से पैदा होने वाली वस्तुएं, घरेलू बाजार की शत प्रतिशत सुरक्षा तय होनी चाहिए .
    ४) वर्त्तमान एफ डी आई देश को खुला चरने की छूट की श्रेणी में आती है .
    ५) वर्त्तमान एफ डी आई द्वारा देशी और विदेशी व्यापारी के चयन की स्वतंत्रता तय की जा रही है. अर्थात अब देशी व्यापारी को स्पर्धा के नाम पर विदेशी व्यापारी से टक्कर र्लेनी होगी.
    ६) इसमें पूंजी के बड़े खिलाड़ी निर्णायक भूमिका तय करेंगे. ,वे लाभ के अनुसार विदेशी वस्तुएं भी बाजार में फेकेंगे.
    ७)वगैर संरक्षण के और मारक पूंजी स्पर्धा में बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को निगलेंगी.
    ७)इन बड़ी कंपनियों का एकमात्र उद्देश्य देश, काल ,समाज से परे पूंजी कमाना ही एकमात्र लक्ष्य .
    ८आज देशी व्यापारी पर प्रश्न उठा है , धीरे धीरे हर देशी यथा वस्तु,,सेवा,शिक्षा, संस्कार, धर्म,राजनीति बाजार में तय होगी.जिससे सबसे ज्यादा मुनाफा मिलेगा वही श्रेष्ठ

  2. श्री क्षेत्रपाल शर्मा का आलेख “देसी मंडी में विदेशी खपत, जेब पर करारी चपत” विषय पर देश में घमासान मचा हुआ है .मैं अर्थशास्त्र का सामान्य ज्ञान रखता हूँ,अर्थशास्त्र का विद्वान तो मैं कतई नहीं हूँ , जो बात मेरी समझ में आती है वह इस प्रकार है-
    १) विदेशी पूंजी हमारे द्वारा तय प्राथमिकता के अनुसार आना चाहिए .
    २)प्राथमिकता में क्षेत्रवार वस्तुओं का चयन किया जाए .
    ३) अतिआवश्यक वस्तुएं ही ऐसी आमद में शामिल हों ,न कि ऐसी वस्तुओं को जो यहाँ बहुतायत से पैदा होने वाली वस्तुएं, घरेलू बाजार की शत प्रतिशत सुरक्षा तय होनी चाहिए .
    ४) वर्त्तमान एफ डी आई देश को खुला चरने की छूट की श्रेणी में आती है .
    ५) वर्त्तमान एफ डी आई द्वारा देशी और विदेशी व्यापारी के चयन की स्वतंत्रता तय की जा रही है. अर्थात अब देशी व्यापारी को स्पर्धा के नाम पर विदेशी व्यापारी से टक्कर र्लेनी होगी.
    ६) इसमें पूंजी के बड़े खिलाड़ी निर्णायक भूमिका तय करेंगे. ,वे लाभ के अनुसार विदेशी वस्तुएं भी बाजार में फेकेंगे.
    ७)वगैर संरक्षण के और मारक पूंजी स्पर्धा में बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को निगलेंगी.
    ७)इन बड़ी कंपनियों का एकमात्र उद्देश्य देश, काल ,समाज से परे पूंजी कमाना ही एकमात्र लक्ष्य .
    ८आज देशी व्यापारी पर प्रश्न उठा है , धीरे धीरे हर देशी यथा वस्तु,,सेवा,शिक्षा, संस्कार, धर्म,राजनीति बाजार में तय होगी.जिससे सबसे ज्यादा मुनाफा मिलेगा वही श्रेष्ठ होगी.

  3. हो सकता है कि यह मेरे अल्प बुद्धि के कारण हो पर सच पूछिए तो यह पूरा लेख पढ़ जाने पर भी मुझे पता नहीं लगा कि आप कहना क्या चाहते हैं?आप विदेशी पूंजी निवेश के पक्ष में या उसके विरोध में यह भी पता नहीं चला.मेरे समझ में तो एकदो बातें आती है.पहली तो यह कि विदेशी पूंजी इस देश में आयेगी तो वह व्यापार में लगेगी,गढा खोद कर उसमें तो डाली नहीं जायेगी. व्यापार में लगने से रोजगार केअवसर अवश्य बढ़ेंगे,ऐसा तो अर्थ शास्त्री भी कहते है.दूसरे प्रतिस्प्रधाबढ़ेगी तो उपभोक्ताओं को अच्छा साजो सामान उचित मूल्य पर उपलब्ध होगा.मिलावट और नकली चीजों से भी शायद छुटकारा मिले.हो सकता है कि हमारे यहाँ के लघु उद्योगों को भी कुछ लाभ हो,क्योंकि मेरा विश्वास है कि हमारे यहाँ के लघु उद्योग अगर चाहें तो चीन सहित अन्य देशों से बढ़िया माल उनसे कम दामों पर उपलब्ध करा सकते हैं.ईमानदार व्यापारियों को भी इसमे कोई हानि मुझे तो दिखती नहीं.उनका ओवरहेड कम होने के कारण इन विदेशी व्यापारियों से कम में वे उपभोताओं तक अच्छी सामग्री पहुंचा सकते हैं.हाँ नकली और मिलावटी सामान के बल पर कमाई करने वालों की लुटिया गोल होने की पूरीसंभावना दिखती है.

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