विदेशी कूटनीति और दिल्ली का चुनाव

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डॉ. मधुसूदन

(एक) अत्त्यावश्यक विषय

“आंतर्राष्ट्रीय कूटनीति”  भारत में कैसे  प्रभाव डालती है, यह समझाने के हेतु से यह आलेख लिखा गया है।विषय को धीरे धीरे आत्मसात करें, मात्र ऊपर ऊपर से देखे नहीं, ध्यान दे कर पढें। ये  अनुरोध है; विशेषतः अनभिज्ञ पाठक के लिए।

ऐसे इस नवीन विषय पर लिख रहा हूँ। भारत के हितैषियों को इस विषय का ज्ञान आवश्यक है। इसके सिद्धान्तों को समझने पर, आप को आंतर्राष्ट्रीय कूटनीति कैसे दूसरे देशों पर अपना प्रभाव जमाती है, इसका कुछ अनुमान हो सकेगा। और संभवतः  इन नियमों के प्रकाश में आप अनेक प्रश्नों के उत्तर ढूंढने में सहायता प्राप्त कर सकेंगे।

(दो)आ आ पा की विजय के पीछे की शक्तियाँ:
मूलतः संसार की प्रबल सत्ताएँ भारत के जनतंत्र  को अप्रत्यक्ष रीति से प्रभावित करना चाहती है। इन प्रबल सत्ताओं के साथ समान लक्ष्य के कारण, आतंकवादी, मिशनरी, और कालाधन वाले, भी जाने अनजाने साथ आ जाते  हैं। इन में से प्रत्येक अपनी दुकान बंद होने के डरसे चिंतित है।
आतंकवादियों पर जम्मु कश्मिर में सक्षम कार्यवाही,
स्पष्ट रूपसे घटा हुआ कन्वर्जन,
काले धन पर की जा रही कार्यवाहियाँ,
और भारत की ९ महीनो में ही, अतिशीघ्रता से, उभरती महाशक्ति की छवि
इन के कारण ये सारे घोर चिंता में हैं।

इस लिए,  ये भारत-विरोधी घटक, भारत के जनतंत्र को अस्थिर बनाना चाहते हैं। स्थिर विकासवादी राष्ट्रीय शासन से इन सारों की दुकान बंद हो सकती है। ये भारत को दुर्बल, अस्थिर देखना चाहते है।
दुर्भाग्य है; आ आ पा की विजय इन्हीं शक्तियों की विजय है।

(तीन) आंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, के नियम
आंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, जिन  नियमों के अनुसार चलती है, उन नियमों को खोजनेवाला “हान्स मॉर्गनथाउ” *Politics Among Nations* नामक पाठ्य पुस्तक का लेखक है।
इस के  नियम (नीति-निरपेक्ष)होते हैं। ये नियम तटस्थ (Objective Laws)दृष्टि से ही समझे जा सकते हैं।  इसमें, मानवता विश्वबंधुत्व,  न्याय-प्रियता इत्यादि को महत्व नहीं है। इन नियमों का मूल “राष्ट्रों के हितों में मनुष्य का स्वार्थी स्वभाव” माना जाता है।
लेखक (मैं)भी इस से पूर्णतः सहमत है। आंतर्राष्ट्रीय कूट नीति के  नियम राष्ट्रों के स्वार्थों से ही संचालित होते हैं।

(चार) ये  नियम शक्ति आँकलन पर निर्भर।
पर इस विषय के नियम स्थूल होते हैं। यह भौतिकी या गणित के नियम नहीं है, अभियांत्रिकी के भी नहीं है।
इन नियमों  का सच्चाई से संबध है, पर उस से भी अधिक संबंध विश्व नेताओं के  (Perception) दिखती अनुभूति या आँकलन पर (उनके घटकों के अनुमान) पर होता है। जैसा देश के नेताओं को लगता, या प्रतीत होता है, उस की प्रतीति से ही, उनकी कार्यवाही प्रभावित होती है।

 निम्न प्रश्नों के उत्तर सोचने में भी सहायता होगी।
इस विषय को जानने पर, आप को निम्न प्रश्नों के दिए गए उत्तर समझने में, कुछ सहायता अवश्य होगी।

उदाहरणार्थ:
(१)कुछ आतंकवाद को भी प्रोत्साहित करनेवाले (पाकिस्तान) देशों को सहायता क्यों दी जाती है?
उत्तर: उन देशों से संबंध टिकाकर कुछ काम करवाना होता है। संबंध काट कर ऐसा करवाया नहीं जा सकता।
जब तक कुछ न कुछ करवाना होता है, तो, संबंध बनाए रखे जाते हैं। आर्थिक  सहायता भी प्रदान की जाती है।
(२)अस्थिरता फैलाने में हित
बडे देशों में अस्थिरता फैलाने में,प्रतिस्पर्धी बडे देशों का हित माना जाता है। अस्थिरता शासकों को अस्वस्थ कर देश की प्रगति में बाधा बनती है। ऐसी अस्थिरता में जो सहायक होंगी, उन संस्थाओं को  NGO द्वारा बडी बडी सहायताएँ, मॅगसे अवार्ड इत्यादि दिया जाता है।विशेष हिसाब देखा नहीं जाता। नोबेल प्राइस भी बहुत बार, ऐसे किसी राष्ट्र को दुर्बल बनाने के उद्देश्य से काम करने वालों को दिया जाता है।
इसी दिशा से, सोचने पर आप निम्न प्रश्नों पर भी सोच पाएंगे। (मैं ने दिए नहीं है।)

(पाँच) प्रश्न मालिका
प्रश्न (१) पाकिस्तान को अमरिका क्यों सहायता देता है?
(२) U S S R के १३ टुकडे क्यों प्रोत्साहित किए गए?
(३) अंग्रेज़ भारत का विभाजन क्यों कर गया?
(४) कश्मिर का भी समाधान क्यों कर रूका है?
(५) चीन भारत की सीमापर क्यों हलचल करता रहता है?
(६) चीन तिब्बत को क्यों हडप गया?
(७) भारत में मिशनरी क्यों भेजे जाते हैं?
(८) भारत में कुछ संस्थाओं को N G O की सहायता किस कारण दी जाती है?
(९) मॅगसे अवार्ड के पीछे क्या हेतु हो सकता है?
(१०) नोबेल प्राइस भी कैसे चुना जाता है?
(११)खाडी के देश भारत विरोधी  (गुप्त) सहायता क्यों करते हैं?

(छः)संसार की महाशक्तियाँ बडे देश ही होते हैं।

ऐसे बडे देश हैं रूस, अमरिका, चीन, भारत। ये सारी संभाव्य (अपेक्षित) माहशक्तियाँ हैं।
भोला भारत अपने आप को विश्वबंधुतावादी मानता है; पर दूसरी महाशक्तियाँ ऐसा नहीं मानती। वे इसे भारत का नाटक मानती है।  कारण है, उनकी अपनी संघर्षवादी मानसिकता।
संसार में हमारे सिवा, और कोई विचारधारा समन्वयवादी नहीं है।
न चीन, न रूस, न अमरिका; पर हमारे मस्तिष्क में ये घुसता नहीं है।{ ये अपवादात्मक  आध्यात्मिकताओं वाले व्यक्तियों की बात नहीं है।} हम भोलेपन में, अपनी ही मानसिकता उनपर आरोपित कर देखते हैं।
वे भी उनकी अपनी संघर्षवादी (आरोपित) मानसिकता के दर्पण में, भारत को देखते हैं। इस लिए,संसार के बडे देश भी, दूसरे बडे देशों से, (उपरसे) मित्रता दिखाते हुए भी अंदर से शत्रु होते हैं। इसे विरोधी वकीलों का हस्तमिलन भी माना जा सकता है।
जैसे कोई बडा व्यापारी उसी वस्तु के दूसरे बडे व्यापारी का शत्रु ही होने की भारी संभावना होगी।
वैसे बडे देश आपस में मित्रता का नाटक करते हुए भी, अंदर से अपने राष्ट्र-स्वार्थ की पूर्ति ही चाहेंगे।

(सात) बडे देशों को क्या चाहिए?
अपने उत्पादों के लिए बाजार चाहिए। अपनी पूंजी का लाभदायक निवेश करने का अवसर चाहिए। आज पूंजीवादी देशों में निवेश लाभदायक नहीं रहा है।
पूंजीवादी देशो में, श्रम का  मूल्य भी भारत और चीन की अपेक्षा बहुगुना है। यह सीधा व्यापार है।

(आँठ)बडे देश बँटने में रूचि क्यों होती है?
चीन, अमरिका, फ़्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जापान, इत्यादि देशों की जो कार्यवाही और निर्णय होते हैं; उनके पीछे की मानसिकता भी समझने में सहायता होगी।
जैसे ही देश बट के  छोटे हो जाते हैं, तो दुर्बल हो जाते हैं।
बडे देश क्षेत्र में, जनसंख्या में, कृषि में,  उत्पादों में, खनिजों में, पेट्रोलियम में, कोयला में, बुद्धिधन में, ऊर्जा  स्रोतो में, संगणक ज्ञान में, और संभाव्य विनाशक शक्ति में, (इत्यादि और भी काफी घटकों) की मात्रा के आधार पर बडे माने जाते हैं।

आंतरराष्ट्रीय कूट नीति की ’मॉर्गन थाउ’ लिखित पाठ्य पुस्तक, कहती है, कि, धूर्त साम्राज्यवादी सत्ताएं (१) सैन्य बल से (२) आर्थिक प्रभुत्व जमाकर, (३) और सांस्कृतिक-मानसिक-प्रभाव जमाकर दूसरे देशों पर अपनी सत्ता चलाती है।
१ ला सैन्य-बल, शीघ्र परिणामी होता है, पर सत्ता समाप्त होनेपर उसका निश्चित और शीघ्र अंत भी होता है,
२ रा आर्थिक प्रभुत्व भी धन-हीन स्थिति में क्षीण हो जाता है,
पर ३ रा मानसिक-सांस्कृतिक प्रभाव मनःपटल पर अंकित हो जाने के कारण, शीघ्रता से मिट नहीं पाता; अनेक शताब्दियों तक, और कभी कभी तो सदा के लिए यह प्रभाव अमिट रूपसे बना रहता है।
दूसरे राष्ट्र पर सैन्य शक्ति का उपयोग कर दास बनाना आज के युगमें (U N O के प्रभाव से) सभ्य नहीं समझा जाता।
पर दूसरे देशों पर मानसिक प्रभाव पैदा करना अब भी चलता है, पर, छद्म रीति से चलता है।
यह होता है, परदेशों पर गुप्त रूपसे प्रभाव फैलाकर।

(नौ) मॉर्गन थाउ कहता है।

मॉर्गन थाउ आगे कहता है, कि, ऐसे नियमों को,  हमारी रूचि-अरूचि (पसंद-नापसंद )से लेना देना नहीं होता। ऐसे वास्तववादी सिद्धान्त तटस्थता से अवलोकित किए जा सकते हैं। इन सिद्धान्तों को आदर्शवादी, आध्यात्मिकता की दृष्टिसे मॉर्गनथाऊ देखता नहीं है। वह चेतावनी भी देता है, कि, ऐसी आदर्श -आध्यात्मिकता से लिये हुये निर्णय आपको कूटनैतिक विफलता दे सकते हैं। ऐसी विफलताएँ भी आप भारत का ६७ वर्षों का इतिहास अवलोकन करनेपर गिना पाएँगे। 

सूचना: मैं इस विषय का विशेषज्ञ नहीं हूँ। पर सामान्य बोध (Common sense) के आधार पर इसे समझा जा सकता है। आज का आलेख पढनेपर आप को International Politics की प्राथमिक समझ हो सकेगी। मैं ने विषय का कुछ अध्ययन किया हुआ है।

19 COMMENTS

  1. डा़ मधुसूदन कितनी भी जानकारियाँ दे बहुत ो विद्वान है पर सालों से विदेश मे हैं कब से भारत नहीं आये हैं मुझे नहीं पता पर उनका किताबी ज्ञान वास्तविकता से बहुत दूर है।सिंह साहब कई टिप्पणियां लिख चुके हैं उनकी बातो को मै नहीं दोहराउंगी।

    • आ. बहन जी,
      नमस्कार।

      (१)
      मेरी वास्तविकता को नकारने के लिए, आपने कोई तथाकथित वास्तविकता भी प्रस्तुत नहीं की?

      (२)
      प्रवक्ता संपादक यदि चाहे, तो, मेरे लेखों को बंद कर दें। आप उनको अपना परामर्श भेज दीजिए।

      प्रश्न मेरे और भी है।

      मधुसूदन

  2. r.r.sihji

    aap ne jo kaha vo sach hai aise to kauravo ke pax me jo the vo sabhi bbhi kisi na kisi ke ristedar hi to the?

    to aap ye kahenge kaurav sahi the?

    rekhasinhji ne jo kaha usme galat kya hai in logo ka itihas dekho fir likho/

    • नरेंद्र सिंह जी ,जब आप मुझे सम्बोधित करके कोई टिप्पणी करते है,तो . या तो उसे देवनागरी लिपि में लिखिए या फिर अंग्रेजी में .इस तरह रोमन लिपि में लिखी हिंदी को एक तो पढ़ने में कठिनाई होती है और दूसरे कभी कभी अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है.आपने पहले तो शालीनता पूर्वक ही कुछ कहने का प्रयत्न किया ,पर अंत में धैर्य खो बैठे और तुम तड़ाक पर उत्तर आये,क्योंकि शायद आपको लगा कि जिसे आप जैसे लोग देशद्रोही समझते हैं,उससे अच्छा व्यवहार क्यों किया जाए?
      आपने कौरवों और पांडवों के बीच तुलना करके इस प्रसंग को रोचक बना दिया.
      अरविन्द केजरीवाल ने प्रचार के बीच दो बातें कही थी.
      प्रथम तो यह कि उधर बड़ी सेना है,जिसमे बड़े बड़े महारथी हैं,पर मेरी तरफ भगवान हैं,अतः जीत मेरी ही होगी.
      दूसरी बात जो उन्होंने कही थी,वह यह था की जीत सच्चाई की होती है,अतः कितना भी झूठा प्रचार किया जाए,पर अंत में सच्चाई जीतेगी ही. क्या वे गलत साबित हुए?. अब मानेंगे न कि अंत में कौरवों की हार हुई. राम चरित मानस में भी लंका युद्ध के समय एक प्रसंग आया है,रावण रथी,विरथ रघुबीरा. क्या इस चुनाव में भी यही कुछ नहीं था अपार धन,बल युक्त और हर तरह के खेल खेलने वालीं पार्टी के विरुद्ध एक पांच फ़ीट चार इंच का आम आदमी अपने साथियों और वालिंटियर के साथ चुनाव में आ डटा था. खैर जो हुआ वह तो अब इतिहास हो गया.अब तो हाल ये है कि रस्सी जल गयी ,पर बल (ऐठन) नहीं गया.

      • r.r. sinhji

        aapne apani kala ka rayta aakhir fela hi diya–are r sinhji tanik to sochiye ki jo insan satta ke liye kongres ke talve chat sakta hai vo kya pandav ho sakta hai vo duryodhan hi ho sakta hai or delhi ki jit aap ki jit nahi hai vo jit kauravo ki hai jinhone kongres se bhikh me mile vote se jit handsel ki hai or kongres ki mansikta aksar bharat ke khilaf rahi hai is liye aap ye keh sakte hai ki ye bharatiyta ke dusmano ki jit hai—

        agar aap soch sakte ho to socho ki bjp ki vote bank nahi tuti iska karan jante hai abhi bhi bharat me rasravad jinda hai!!

        kongres ki vote bank kauravo ke prati chali jane se aap party jiti hai ?

        aapne kabhi socha hai muft ka lene or khane se pidhiya ki pidhiya khatam ho jati hai—fir ye muft dene ki bat karke jo 65 salo se muft ki meharbani par jite hai unke vote se jit gaye isme badi bat kya hai??

        aap buzurg hai fir bhi kai bar aisa kuchh likhna padta hai kyonki use manme nahi rakh sakta

        mai aapko aahat karna nahi chahta magar aap jaise buzargo ki jimmedari hai hame margdarshan kare aap to khud bhatkate ho or oroko bhatkaneki nirantar kosis karte ho—–

        padhne me dikkat ke liye kshama chahta hun!!!!

      • r.r.sinhji

        aapki dikkat mai samaj tahun sir lekin iske siva likhnaka abhi mere pas koi jariya nahi hai maf karna!!!

        aap jo kehte hai vo sarasar galt hai agar aisa hota to bjp ka vote pratishat kafi niche aa jata sir,

        dusari bat aap ne ye nahi dekha ki kongres ka vote pratishat sab aap me gaya hai ?

        or otrher kabhi vote share aap ki taraf gaya hai?

        sir ye vote share gaya uska karan aap party ki lohpriyta nahi hai lekin muft ka lene ki jo bhavna salo se kongres ne de rakhi hai ab vo aap party de rahi hai iske karan hai ye to aap bhi saaj te honge sir!

        aapko padhne me dikkat hoti hogi iske liye maf karna sir.

    • आर सिंह जी , मै किसी राजनीतिक पार्टी से नही आती हूँ लेकिन मेरे विचार उन लोगो , समूहों के विचारों से ज्यादा मिलते है जो राष्ट्रवादी है । जब मै jnu मे छात्रा थी तब किरण बेदी आईपीएस अफसर बनकर दिल्ली आई थी और दिल्ली की ट्रैफिक पुलिस मे तहलका मचा दिया था । यह तहलका ईमानदारी और कड़ी मेहनत का था ।जन्म तो मेरा अयोध्या क्षेत्र उप्र मे हुआ लेकिन 9 वर्ष की उम्र से कालेज की शिक्षा मध्यप्रदेश मे हिन्दी माध्यम मे सरकारी स्कूल मे हुई । मध्य प्रदेश की संस्कृति गुजरात , राजस्थान , महाराष्ट्र , जैसी है । मेरे संस्कारो की जड़े बहुत गहरी है । मुझे गर्व है अपने देश के संस्कृति पर और उन लोगो पर जो लोगो का अपमान सहकर भी अपने देश के लिए काम करते है । जिस व्यक्ति के पास लेखनी की ताकत है वह तो सबसे बड़ा योद्धा है ।
      यह बात तो सच है की देश की आजादी मे , देश की सुरक्षा मे ( सेना / फौजी भाई बहन ) सब के घर के लोग नही होते । इसलिए सबका अनुभव एवं दर्द भी एक जैसा नही होता है । इस कारण भी सबकी समझ अलग होती है । एक लेखक कलम का सिपाही होता है । आज के युग में हर तरह की जानकारी के लिए शारीरिक रूप से कही होना न होना कोई मायने नही रखता । हर तरह की जानकारी नेट के माध्यम , मित्रो , सगे सम्बधियों , स्काइप , गूगल हैंग आउट , व्हाट्स ऐप , फेस टाइम आदि आदि आदि से लाइव प्राप्त होती है |
      आ आ प पार्टी का दिल्ली को बिजली , पानी , वाई फाई आदि फ्री देने का वादा ????????????????जिस प्रकार sc st आरक्षण ने देश मे जातिगत घृणा को बढ़ाया है उसी प्रकार किसी भी चीज के लिए फ्री देने का वादा भिखारियों को बढ़ावा देना है । बड़े लोग देश को लूटकर विदेश मे धन रखते है और गरीब ?? मिडिल क्लास मे ही कुछ ईमानदार लोग टैक्स देते है तो यह कब तक । इस संसार मे कुछ भी फ्री नही होता है , हम या तो उसकी कीमत अदा कर चुके होते है या भविष्य मे अदा करेंगे ।

      • रेखा जी आप राष्ट्रवादी हैं,तो यह बड़े गर्व की बात है,पर आप ऐसा क्यों सोचती हैं कि जिसका विचार आपके विचारों से मेल नहीं खाता है,वह देशद्रोही है?. आप जे एन .यू की की छात्रा थी,यह अच्छी बात है.शायद एक बार पहले आपने यह भी लिखा था कि आप पृथ्वीराज की वंशज हैं.मेरी छोटी बेटी ने भी जे.एन.यूं से पॉलिटिकल साइंस में एम .ए किया हुआ है.ऐसे आम आदमी पार्टी के नेता प्रोफेसर आनंद कुमार भी जे.एन यू के ही प्रोफेसर हैं.पर ये सब चीजें आपको कोई अधिकार नहीं देती कि आप दूसरों को देशद्रोही कह सकें.देशभक्ति और देश प्रेम का पहले अर्थ समझिए.फिर दूसरों पर कीचड उछालिये. देशभक्ति किसी व्यक्ति या पार्टी की बपौती नहीं है.कोई भी ईमान दार और कर्तव्य निष्ठ आदमी देशभक्त होता है.रही बात सब्सिडी की तो मैं डाक्टर मधुसूदन के लिए टिप्पणी करते हुए उसपर अपना विचार दे चूका हूँ.
        आपसे केवल यही अनुरोध है कि अंहकार से अभिभूत हो कर किसी को गाली मत दीजिये. आआप विदेशी ताकतों के अधीन होकर काम कर रही है या नमो की पार्टी और सरकार,यह धीरे जाहिर होता जायेगा,अतः इसके बारे में अभी धमा चौकड़ी की अधिक आवश्यकता नहीं है.

        • आर सिंह जी , मत मेरा है और उसपर अधिकार भी मेरा है । यह मेरा स्वतंत्र मत है ।

  3. जब किसी का इतना प्रभाव हो कि वह कुछ भी लिख दे,तो उसे ब्रह्म वाक्य समझा जाए,तो उसके लेखन पर टिप्पणी करना एक दुःसाहस ही कहा जा सकता है,पर मेरे जैसों की जिंदगी तो इन्ही दुःसाहसों का दूसरा नाम है.वर्तमान आलेख पर टिप्पणी भी एक ऐसा ही कदम है. मैं बार बार टिप्पणी कर रहा हूँ और चाहता हूँ कि प्रवक्ता के उस वर्ग की भी आवाज तो लोगों के सामने पहुंचे ,जो इस तरह के आलेख और दृष्टिकोण को एक वकवास से ज्यादा नहीं समझते.पर नहीं वैसा नहीं होगा ,क्योंकि डाक्टर साहिब के किसी कथन पर अंगुली नहीं उठाई जा सकती.अगर ऐसा ही है,तो टिप्पणी वाले कॉलम का नाम बदल कर स्तुति गान क्यों नहीं कर दिया जाता? क्या हमलोगों को यह बताया जा रहा है कि चाहे आपको कितनी भी गालियां पड़े.आपको देशद्रोही भी कहा जाए तो आप आवाज नहीं उठा सकते,क्योंकि आगे वाला बहुत महान है.
    अब एक प्रश्न मेरे जेहन में उभरता है कि क्या अब ऐसा समय आ गया है कि हमारे जैसे लोग अपनी आवाज बंद कर लें ,लेखनी को लगाम दे दे और भूल जाएँ कि इसी वेवाक विवेचना पर प्रवक्ता डाट कम ने उन्हें कभी सम्मानित किया था.

    • सम्माननीय सिंह साहब। आप का सम्मान तो प्रवक्ता ने किया ही था। आवाज भी तो आप उठा रहे हैं।और अपना मत भी तो व्यक्त कर ही रहे हैं। पाठक पढते भी हैं।
      अंगुली भी आप उठा ही तो रहे हैं। इस से अधिक आप क्या चाहते हैं? आप अपनी बात रखते रहिए। जो बात रखी जाती है, उसे पढी भी जाती ही होगी।

      इस संदर्भ में दीनदयाल जी असामान्य थे, और बहुत ही आगे थे।
      दीनदयाल जी एक जगह कहते भी है; कि “विरोधी मत को विशेष सहानुभूति से” जानना चाहिए।
      क्यों? तो आगे कहते हैं, कि हो सकता है, कि, विरोधी बात में सच्चाई हो।

      कठिनाई ये है, कि, सच्चाई भी हर कोई अपनी दृष्टि से देखता है। जाग्रत रहनेपर उसमें कुछ सुधार किया जा सकता है। पर प्रत्येक व्यक्ति की प्रतीति (Perception) ही वास्तविकता को अलग कर देती है।
      ३० वर्ष पहले, आपके जो विचार थे, आज भी है क्या? निश्चित ही नहीं। विचार भी बदलते ही रहते हैं।
      सोचिए, जब एक व्यक्ति अलग अलग समय अलग अलग विचार रख सकता है। तो दो अलग व्यक्ति एक ही समय में अलग विचार क्यों नहीं रख सकते? प्रवक्ता को सम्पन्न करने में हर कोई का सहभाग है।
      फिर भी, शायद,प्रत्यक्ष या परोक्ष रीति से कुछ कहा गया हो, तो क्षमा कीजिए।
      क्षमा देने वाला, लेनेवाले से उदार समझा जाता है।

      कृपा की प्रार्थना सहित—मधुसूदन

      • डाक्टर साहिब,मैं इतना बड़ा आदमी नहीं हूँ ,जिससे आपको क्षमा माँगने की आवश्यकता पड़े.मेरे लिए तो यही बड़ा सौभाग्य है कि मेरे बहुत सी टिप्पणियों को अस्वीकार करने के बाद कम से कम एक टिप्पणी को तो प्रकाश में लाया गया. क्या आपने इस विषय एक ही आलेख लिखा है या टिप्पणी की है ?.अगर आप कहें तो आपके हम लोगोंके विरुद्ध उगले गए समस्त उदगार को एक जगह सजा कर आपको पेश कर दूँ .देखिये तो सही,क्या यह आपके व्यक्तित्व के अनुकूल है?
        डाक्टर साहिब ,ऐसे भी आआप के विरुद्ध इतना भ्रम फैलाया गया है कि आपके लिए अमेरिका में बैठ कर निष्पक्ष रूप में सोचना आसान भी नहीं है.
        आपने अपने इसी आलेख में ही नहीं,अन्य जगहों पर भी कुछ आंकड़ों सहित आआप के उद्भव को गलत ढंग से पेश किया है,पर याद रखिये ,जब आपका एसम्पसन ही गलत है,जब आधार हीं गलत है तो उस आधार पर बनी आपकी व्याख्या कैसे ठीक हो सकती है?
        खैर आप बड़े विद्वान हैं,अतः आपको गलत कह कर मैं फिर गुस्ताखी कर रहा हूँ. हो सके तो क्षमा कर दीजियेगा.

        • नमस्कार — मा. सिंह साहब,

          मुझे कम से कम, अपना अलग मत रखनेका अधिकार है।वैसे, आप को भी अलग मत रखने का अधिकार मैं अवश्य मानता हूँ। इस विषय में मुझे भ्रम नहीं है।
          अलग मत रखते हुए हम शुभ चिन्तक रह सकते हैं।विविधता ईश्वर की रचना में है।
          ————————————-
          इस विवाद का यह मेरे लिए अंत ही है।
          आप चाहे तो टिप्पणी दें, मैं पढूंगा। आप आखरी टिप्पणी के लिए स्वतंत्र हैं।
          स्वस्थ रहिए, लिखते रहिए।
          शुभेच्छाएँ।

          मधुसूदन

  4. दिल्ली का चुनाव और विदेशी ताकतों का सहयोग देश की स्थिरता के लिए खतरा है । आप पार्टी देश द्रोहियो की पार्टी है और जनता ??????????????

    • रेखा सिंह जी,आप ने आआप को देश द्रोहियों की पार्टी तो कह दिया,पर आपने कभी सोचा की आपने ऐसा करके दिल्ली के बहुमत को गाली दे दी.ऐसा भी हो सकता है कि इसमें आपका कोई सगा भी हो. न भी होतो क्या आज से ये समझा जाए कि भारत में केवल एक पार्टी रहेगी और जो उसके विपक्ष में बोलेगा ,उसे देशद्रोही करार कर दिया जाएगा.पर क्या यह सब शुभ संकेत है?

      • r.r.sinh

        aap jo kehna chahte ho isase to ye sabit hota hai ki kans or duryodhan ki vichardhara ke aap chust anuyayii hai!!!!

        mahabharat ke yudhdhme bhi har koi ek dusare ka sambandhi tha hi fir bhi yudhdha karna aavasyak tha——us samay aap jaise log the jo isi tarah duryodhan ki taraf dari karte the jis tarah aap kejrival or iskew jariye kongres ki taraf dari karte ho!!

        aalochna vikas ke liye jaruri hai lekin aise alochak jo desh hit me badha dalte ho unko to alochano ka adshikar dena bhi gunah hai!!!

        ab aapko pata chal gaya hoga ki rekhasinhji galat nahi hai or aap sahi nahi hai!!!

        • नरेंद्र सिंह जी,मैंने पहले ही लिखा है कि रोमन लिपि में लिखी हुई हिंदी मेरी दृष्टि में देवनागरी लिपि का अपमान है आपने क्या कहना चाहा है,यह मेरी समझ से बाहर है.आपके लिखने से तो मुझे यही पता चलता है कि आप लकीर के फकीर हैं और दूसरे का तर्क आपके पल्ले नहीं पड़ता.अगर महाभारत की बात कीजियेगा,तो आआप का दिल्ली में वही स्थानहै,जो महाभारत में पांडवों का था,क्योंकि नमो की पार्टी सर्व साधन संपन्न थी,जबकि आआप को पांडवों की तरह सीमित साधनो से लड़ना था. राम चरित मानस में तो जो प्रसंग आया है,उसमे आआप एक दम फिट बैठती है. ऐसे राम के रथ का वर्णन भी राम चरित मानस में है.उस रथ के आगे रावण का पुष्पक विमान भी छोटा सिद्ध होता है.दिल्ली की जनता ने इसको समझा और राम को जीता दिया. बाकी तो आप कुछ भी बकवास करते रहिये. अभी तो किसी ने लिखा है कि पहले हस्तिनापुर यानि दिल्ली में मुंहकी खाई तब मगध में जोर आजमाई के लिए गए,पर वहां भी शिकस्त मिली. अगर इस बहस को आगे बढ़ाना है,तो आप देवनागरी लिपि अपनाइये या अंग्रेजी में टिप्पणी कीजिये.,नहीं तो मेरी तरफ से यह आखरी टिप्पणी है.

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