‘आजादी’ के लिए ‘इंकलाब’

-अंकुर विजयवर्गीय-

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ताहीर-उल कादरी और इमरान खान, दोनों ने यह फैसला किया है कि अपनी मिली-जुली कोशिशों से वे हुकूमत को को झुका देंगे। ऐसे में, यह लाजिमी था कि वजीर-ए-आजम नवीज शरीफ जवाब दें। इस ऐलान के एक दिन बाद ही सही, पर उन्होंने दुरुस्त जवाब दिया। उन्होंने इंकलाब के ख्याल का मजाक उड़ाया और कहा कि यह ख्याल आया भी तो एक कनाडाई शख्स को, जिसे चुनाव में कुछ सौ वोट मिले थे। कादरी और उनके पीछे खड़ी ताकतों की आलोचना में कुछ हद तक दम है। कादरी जमीनी सियासतदान कभी नहीं रहे और अक्सर वे गलत हालात में बदलाव की बात करते हैं, जिसे वह इंकलाब का नाम देते हैं। मगर दूसरी तरफ, नवाज शरीफ अपने ही दावों को बचाने में असहज दिखते हैं। उनका दावा है कि साल भर की हुकूमत में वह ऊर्जा व अर्थव्यवस्था के स्तर पर कामयाब रहे हैं। वजीर-ए-आजम कुछ आंकड़े जुटा भी लेते हैं, जैसे डॉलर के मुकाबले रुपये का कुछ मजबूत होना। मगर इससे भी इनकार नहीं कि मध्यवर्ग व कामकाजी तबकों के हाथों से कुछ मौके निकले हैं।

कादरी और इमरान जिस तरह की क्रांति की बात कर रहे हैं, वह जरूरी नहीं हो सकती है। मगर बदलाव की मांग का मजाक नहीं उड़ाया जाना चाहिए। नवाज शरीफ की तकरीर में इमरान और कादरी के लिए चुनौती थी। हालांकि, वह सुलह की उम्मीद लगाए हुए हैं और विरोध-प्रदर्शन की जरूरत को खारिज करते हैं, मगर उनकी हुकूमत इस लड़ाई में पीछे हटने को राजी नहीं है। दो प्रदर्शनकारी अपनी मांगें पूरी होने तक मुल्क को एक तरह से बंधक बनाए रखने पर आमादा हैं। जाहिर है, मुल्क को गतिरोध का सामना करना पड़ेगा। इमरान खान ने अपनी तकरीर में चुनावी धांधली के मुद्दे उठाए, मगर इस दौरान यह पर्दाफाश हो गया कि उनकी दलीलें बेबुनियाद हैं। जिसे वह सबूत बता रहे हैं, वे वास्तव में कहे-अनकहे किस्से हैं। ऐसी फिल्मी कहानियों को जब वह किसी अदालत में ले जाएंगे, तो वहां उनकी किरकिरी ही होगी। कादरी की सियासी अपील सीमित है। और इमरान अपने दम पर हुकूमत झुकाने की हैसियत नहीं रखते हैं।

इस गहमागहमी और हंगामे के बीच लाहौर हाईकोर्ट में भी सरकार पर सुनवाई हुई और लाहौर हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि चुनाव सही थे और सरकार भी संवैधानिक है। उल्टे लाहौर हाईकोर्ट ने तो कादरी के खिलाफ ही कार्रवाई करने की सिफारिश कर दी कि वे देश में जिस तरह से शांति व्यवस्था का माहौल खराब कर रहे हैं, उसे देखते हुए उनके खिलाफ शांति भंग की कार्रवाई भी कर दी जाए तो बुरा नहीं होगा। लाहौर उच्च न्यायालय ने कहा है कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान और अवामी तहरीक प्रमुख ताहीर-उल-कादरी द्वारा उठाई जा रही मांगें असंवैधानिक हैं। साथ ही, अदालत ने उन्हें चेतावनी दी कि प्रदर्शन मार्च के दौरान संविधान का उल्लंघन किए जाने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। लाहौर उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने खान के ‘आजादी मार्च’ और कादरी के ‘इंकलाब मार्च’ के खिलाफ नौ पृष्ठों का आदेश जारी किया। न्यायमूर्ति खालिद मोहम्मद खान के नेतृत्व वाली पीठ ने एक आदेश जारी कर दोनों पार्टियों के असंवैधानिक प्रदर्शन मार्च करने और इस्लामाबाद में धरना देने पर रोक लगा दी। आदेश में कहा गया कि तहरीक-ए-इंसाफ और अवामी तहरीक को आजादी मार्च तथा इंकलाब मार्च करने एवं इस्लामाबाद में असंवैधानिक तरीके से धरना देने से रोका जाता है। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि इन पार्टियों की मांग असंवैधानिक है।

वैसे, पाकिस्तान में सरकार विरोधी लॉन्ग मार्च और प्रदर्शन सिर्फ़ सड़कों पर नहीं हो रहा है, बल्कि सियासी दल सोशल मीडिया पर भी टकरा रहे हैं। इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए इंसाफ (पीटीआई) ने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ पर इस्तीफ़ा देने का दबाव बनाने के लिए ट्विटर और फ़ेसबुक पर समर्थन जुटाने की मुहिम शुरू की हुई है। पीटीआई के फेसबुक मैनेजर जिब्रान इलियास कहते हैं कि पीटीआई का विरोध मार्च आवाम को सच्ची आज़ादी दिलाने के लिए है। सरकार लोगों का जनादेश चुरा नहीं सकती है। इस आंदोलन की संभावना वैसे राजनीतिक शोरगुल के बाद शांति की ही है, इसलिए बड़ा सवाल उठता है कि अगर ऐसा होता है, तो पाकिस्तान में मचे इस आंतरिक घमासान का महत्व क्या रह जाएगा? पाकिस्तान की सरकार ने इस्लामाबाद पहुंचने वाले सभी रास्ते सील कर दिए हैं। प्रदर्शकारियों को सीमा में घुसने से रोकने के लिए पुलिसकर्मी और अर्धसैनिक बल तैनात किए हैं। मई 2013 के चुनावों में प्रधानमंत्री शरीफ भारी मतों से जीते थे, लेकिन अब वह विपक्षी दलों के दबाव में हैं। उनकी पार्टी के सदस्यों का कहना है कि प्रधानमंत्री इस्तीफा नहीं देंगे, लेकिन कई लोगों का कहना है कि हिंसा होने पर शरीफ का कार्यकाल खतरे में पड़ सकता है। इसलिए अब सबकी नजर शरीफ पर टिकी हुई है।

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अंकुर विजयवर्गीय
टाइम्स ऑफ इंडिया से रिपोर्टर के तौर पर पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत। वहां से दूरदर्शन पहुंचे ओर उसके बाद जी न्यूज और जी नेटवर्क के क्षेत्रीय चैनल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता के तौर पर कार्य। इसी बीच होशंगाबाद के पास बांद्राभान में नर्मदा बचाओ आंदोलन में मेधा पाटकर के साथ कुछ समय तक काम किया। दिल्ली और अखबार का प्रेम एक बार फिर से दिल्ली ले आया। फिर पांच साल हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया। अपने जुदा अंदाज की रिपोर्टिंग के चलते भोपाल और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में खास पहचान। लिखने का शौक पत्रकारिता में ले आया और अब पत्रकारिता में इस लिखने के शौक को जिंदा रखे हुए है। साहित्य से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, लेकिन फिर भी साहित्य और खास तौर पर हिन्दी सहित्य को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की उत्कट इच्छा। पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक “कुछ तो लोग कहेंगे” का संपादन। विभिन्न सामाजिक संगठनों से संबंद्वता। संप्रति – सहायक संपादक (डिजिटल), दिल्ली प्रेस समूह, ई-3, रानी झांसी मार्ग, झंडेवालान एस्टेट, नई दिल्ली-110055

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  1. अंकुर विजयवर्गीय जब भी किसी विषय पर लिखते हैं उसका गहन अध्ययन करते हैं और इसलिए उन्हें पढ़कर कुछ नई जानकारी मिलती है। उन्होंने मुझे इमरान और कादरी के कारण पाकिस्तान में मचे घमासान से अवगत करा दिया।

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