गाँधीगिरी बनाम आतंकवाद

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एल.आर. गाँधी

निरंतर पिटने और कौक्रोच पालने को हमने अपना राष्ट्रीय व्यसन बना लिया है।

कोई एक गाल पर मारे तो अपना दूसरा गाल उसके आगे कर दो! राष्ट्रपिता? की नीति थी, जिसे हमने अपनी नियति मान लिया और उन्हीं की नीतियों पर चलते हुए ‘आस्तीन में सांप पालने’ का व्यसन हमारे सेकुलर शैतानों की राष्ट्रिय पहचान बन गया है। आस्तीन के सांपों ने राष्ट्र के लोक तंत्र के मंदिर ‘संसद पर आक्रमण किया और सुरक्षा प्रह्रिओं ने अपनी जान पर खेल कर ‘अपने आतंकियों’ से संसद और सांसदों को किसी तरह बचा लिया! पोटा अदालत में एक साल की सुनवाई के बाद तीन अभियुक्तों को सजाए मौत और अफसाना को पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई। अक्तूबर २००३ में उच्च न्यायालय ने अफसाना और गिलानी को दोष मुक्त कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने २००५ में मुख्य अभियुक्त अफज़ल गुरु की सजाए मौत को बरकरार रखा और उसके चचेरे भाई शौकत गुरु की सजा घटा कर १० वर्ष कारावास कर दी।

दस वर्ष बीत जाने पर भी बापू की सेकुलर सरकार अफज़ल गुरु को फांसी की सजा पर अमल कर पाने की ‘पसोपेश’ में है और नित नए नए बहाने बना कर ‘काक्रोच’ पाल रही है। पहले अफज़ल की फ़ाइल शीला जी के कपबोर्ड में सालों पलती रही और गृह मंत्री जी ‘याद पत्रों’ की खाना पूर्ति करते रहे। अब फ़ाइल चिदम्बरम जी के कपबोर्ड में पल रही है और गृह मंत्री जी महामहिम प्रतिभा जी को पहले भेजे गए केसों पर फैसले की बाट जोह रहे हैं। क्योंकि सेकुलर सरकार हर काम कायदे से करती है भले ही सालों बीत जिएँ ?

यह तो थी ‘ अफज़ल गुरु’ पर सरकार की कछवा चाल कार्रवाही की कहानी। अब उसके चचेरे भाई शौकत गुरु पर सेकुलर सरकार की सुपर फास्ट कहानी मुलाहिजा फरमाएं.! शौकत की दस साल की सजा में से सभी सरकारी रियायतों के उपहार सवरूप ९ मॉस काट कर उसे रिहा कर दिया गया। शौकत मियां को अच्छे आचरण के चलते प्रति माह २ दिन माफ़ कर दिए गए और ऐसे ही २ दिन प्रति माह अच्छे काम के मिले। १ दिन प्रति माह आपने काम से छुट्टी न करने के। फिर कैदियों को राज्य सरकार ‘ गणतंत्र दिवस ‘ पर १ माह की छूट भी देती है, और शौकत मियां से बढ़ कर इस छूट ‘ का दूसरा कोई और हक़दार तो हो ही नहीं सकता। ३ साल की कैद के बाद वार्षिक छूट सो अलग। जेल नियमावली के अनुसार ‘शौकत मियां’ को सभी रियायतें एक साथ दे कर बिना एक भी दिन जाया किये ‘ आज़ाद’ कर दिया गया। क्योंकि उसके गृह राज्य कश्मीर में बरफ बारी हो रही है इस लिए वह दिल्ली के आजादपुर मंडी इलाके में आपने एक सम्बन्धी के यहाँ टिका हुआ है।

सेकुलर सरकार के इस राष्ट्रिय व्यसन ‘एक गाल पर चांटा खाओ और दूसरी तैयार रखो! से हमारा पडोसी पाकी -शैतान चिर परिचत है। तभी तो उसने मुम्बई पर ‘जेहादी’ हमला कर हमारी आर्थिक राजधानी को हिला कर रख दिया और १६६ बेगुनाह भारतियों और विदेशी मेहमानों को मार डाला। हम फिर आपने राष्ट्रिय व्यसन के अनुसार ‘ कसाब’ रुपी कौक्रोच को पाले हुए हैं चाहे उसके लालन पालन पर ५०% भूखो के देश का ५० करोड़ रुपया खर्च क्यों न हो गया। अरे यह तो जिंदा काक्रोच है – हमने तो कसाब के ९ मृत ‘जेहादियों’ को भी सवा साल तक अस्पताल के ‘शव कक्ष ‘ में संभाले रखा ! यह तो हुए हमारे ‘काक्रोच’ और आस्तीन के सांप जिन्हें हम बड़े चाव से पाल रहे हैं। यहीं पर बस नहीं ‘ पाकी-शैतान ‘ पर हम लम्बे आर्से से दवाब डाल रहे हैं कि वह अपने यहाँ के ‘भारत विरोधी ‘ आतंकियों को हमारे हवाले करे। अमेरिका और अन्य देशो को भी गुहार लगा रहे हैं। ताकि हमारा राष्ट्रिय व्यसन, वही ‘ काक्रोच पालने का ‘ परवान चढ़ सके।

एक ओर तो हम पाकी -शैतान को विश्व के समक्ष आतन्कवाद की जन्म स्थली सिध् करने का कोइ अवसर हाथ् से नहि जाने देते। दूसरी ओर हमारी सैकुलर सरकार ‘ज़ेहाद् ‘ के केन्द्र मदरसो को आर्थिक सहायता दे कर प्रोत्साहित कर रहि है। सरकारी सहायता की होड में सामान्य मुस्लिम संचालित सकूल् भी ‘मदर्से’ का बोर्ड लगा कर सरकारी ग्रान्ट हद्दप् जाते हैं। एसे मदर्से जहा बच्चो को शरियत और ज़ेहाद् का पाठ पिलाया जाता है हमारे यहा पाक से सौ गुण अधिक हैं।

फिर भी हमारे दिग्गी मियां और चिद्दी मियां को सिर्फ और सिर्फ भगवा आतंक से ही खतरा दिख रहा है।

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एल. आर गान्धी
अर्से से पत्रकारिता से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में जुड़ा रहा हूँ … हिंदी व् पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है । सरकारी सेवा से अवकाश के बाद अनेक वेबसाईट्स के लिए विभिन्न विषयों पर ब्लॉग लेखन … मुख्यत व्यंग ,राजनीतिक ,समाजिक , धार्मिक व् पौराणिक . बेबाक ! … जो है सो है … सत्य -तथ्य से इतर कुछ भी नहीं .... अंतर्मन की आवाज़ को निर्भीक अभिव्यक्ति सत्य पर निजी विचारों और पारम्परिक सामाजिक कुंठाओं के लिए कोई स्थान नहीं .... उस सुदूर आकाश में उड़ रहे … बाज़ … की मानिंद जो एक निश्चित ऊंचाई पर बिना पंख हिलाए … उस बुलंदी पर है …स्थितप्रज्ञ … उतिष्ठकौन्तेय

1 COMMENT

  1. आदरणीय गांधी जी आपने एक महत्वपूर्ण समस्या की तरफ ध्यान खींचा है| जब अदालतों ने फैसला दे दिया है तो अब इन कॉकरोच को पालने की जरूरत ही क्या है| हम क्यों इनका खर्चा अपने सर पर ढोएँ? इतने महंगे कॉकरोच तो कहीं नहीं होंगे| हमारे टैक्स का पैसा इन्हें चिकन खिलाने में खर्च हो रहा है| सच बात तो यह है की क्कांग्रेस और कथित धर्मनिरपेक्षता भी अब कॉकरोच का रूप धारण कर चुके हैं| अब आवश्यकता है इन कॉक्रोचों से छुटकारा पाने की|
    लेख के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद|

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