प्रभात कुमार रॉय
गाँधी के आदर्शो से वस्तुतः बहुत ही दूर चला गया हमारा देश, किंतु गाँधी के महान् आदर्शो की आवश्यकता देश आज भी अत्यंत गहनता से महसूस करता है। इसी प्रबल गहन भाव में बहुत बड़ी उम्मीद के सूत्रबीज विद्यमान हैं। हम यदि चाहे तो गाँधी के सहारे भारतीय सभ्यता-संस्कृति के समग्र बोध की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। हम स्मरण करें जब आजाद भारत का संविधान निर्मित हुआ तो उसमें गाँधी के बोध और उनकी जीवन दृष्टि को पूर्णतः नकार दिया गया था। भारत के वर्तमान बुद्धिजीवियों की मुख्यधारा ने महात्मा को अपने चिंतन-मनन के केंद्र में कदापि स्थान नहीं प्रदान किया। आज भी उम्मीद तो बहुत अधिक नहीं है, किंतु बलवती आशा के कुछ सूत्र अवश्य ही इधर उधर भारत में कहीं कहीं बिखरे पड़े हैं। महात्मा गाँधी बीसवीं सदी के दौर के विश्व के महानायकों में शुमार किए जाते हैं, जिनमें ब्लादिमिर लेनिन, सनयात सेन, माओत्सेतुंग, होचीमिन्ह, विंस्टन चर्चिल, एडोल्फ हिटलर, बैनेट मुसोलनी, सुभाषचंद्र बोस, आइजनहावर, मार्टिन लूथर किंग आदि अनेक महानायक शामिल हैं। इन सभी महानायकों ने किसी ना किसी तौर पर बीसवी सदीं के इतिहास को अत्यंत गहराई से प्रभावित किया और इक्कसवीं सदीं को प्रभावित करने का दमखम रखते हैं।
महात्मा गाँधी ने जन्म उन्नीसवीं सदी में लिया था, किंतु उनके व्यक्तित्व का वास्तविक असर बीसवीं सदी में देखने को मिला, जबकि दक्षिणी अफ्रीका में अपने अनोखे अहिंसक आंदोलन का बिगुल बजाने के बाद उन्होने भारत की सरजमीं पर कदम रखा। इसी दौर में महात्मा ने 13 नवंबर से 22 नवंबर 1909 तक मात्र 10 दिनों में पानी के जहाज से लंदन से दक्षिणी अफ्रीका का सफर तय करते हुए अपनी कालजयी कृति हिंद स्वराज की रचना कर डाली। हिंद स्वराज आज भी गाँधी जीवन दर्शन पर उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ कृति समझी जाती है। हिंद स्वराज एक क्लासिक कृति है, जिसमें पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति की कठोरतम आलेचना की गई है। हिंद स्वराज में इंगलिश पार्लियामेंट को वेश्या और बाँझ निरुपित करने वाले महात्मा भारत को इंगलिश पैटर्न के पार्लियामेंटरी सिस्टम से बचा नहीं पाए। पश्चिम की कठोर आलोचना करने के साथ ही गाँधी पश्चिम के महान् बुद्धिजीवियों के प्रति सदैव नतमस्तक रहे। पश्चिम की महान् वैज्ञानिक उपलब्धियों को गाँधी ने कदापि नकारा नहीं।
महात्मा गाँधी ने एक विरल राजनीतिक योद्धा और विचारक के रुप में सत्याग्रह, स्वदेशी, सर्वोदय, अहिंसा और स्वराज जैसी अनुपम रणनीतियों का निष्पादन किया, जिनका प्रबल प्रभाव इक्कसवीं सदी के राजनीतिक संग्रामों पर भी स्पष्ट तौर पर परिलक्षित हो रहा है। अमेरिकन पूँजीवाद विरुद्ध जारी प्रबल वालस्ट्रीट आंदोलन से लेकर यूरोप के मजदूर आंदोलनों तक गाँधी की कारगर रणनीति का जोरदार असर देखा जा सकता है। अमेरिका के अश्वेत लीडर मार्टिनलूथर किंग और दक्षिण अफ्रीका के स्वातंत्रय संग्राम के लीडर नेल्सन मंडेला ने तो गाँधी को अपनी प्रबल प्रेरक शक्ति मानकर और उनका शानदार अनुकरण करके इतिहास ही रच डाला। यह तथ्य दुखद है कि गाँधी का अपना ही देश उनके आदर्शों के बहुत दूर जाकर पश्चिम के रंग-ढंग को तेजी से अपनाता जा रहा है, किंतु आस-उम्मीद अभी बाकी है, क्योंकि पर्यावरण के भीषण विनाश से त्रस्त पश्चिम की अतिभोगवादी संस्कृति पूरब की विरल सादगी की तरफ उम्मीद और उत्सुकता से निहार रही है। भोगवाद के विरुद्ध वैदिक ऋषियों से अनुप्रेरित होकर गाँधी ने विरल सादगी को अपनाकर पश्चिमी भोगवाद के बरखिलाफ शानदार बिगुल बजाया। भक्ति आंदोलन के संतों से प्रेरित होकर महात्मा ने रघुपति राघव राजा राम सबको सम्मति दे भगवान की रामधुन पर भारत के गाँव-गाँव में आजादी का संग्राम खड़ा कर दिखाया।
भारत के समाजवादी आंदोलन पर मार्क्स और गाँधी का प्रभाव समान रुप से स्थापित हुआ। भारतीय समाजवाद के शीर्ष पुरोधा आचार्य नरेंद्रदेव पर मार्क्स के साथ गाँधी अनुपम प्रभाव स्थापित रहा। इसके बाद देश के बड़े प्रभावशाली लीडरों में डा.राममनोहर लोहिया, चौधरी चरणसिंह, एसएम जोशी, इएमएस नंबूदरीपाद, एके गोपालन, पी.सुंदरैया, मधुलिमए, जार्ज फर्नाडीज आदि पर भी गाँधी का प्रभाव गहन तौर पर परिलक्षित होता है। इक्कसवीं सदी में आर्थिक ग्लोबलाइजेशन के विकट दौर में मेधा पाटेकर, ब्रह्मदेव शर्मा, अन्ना हजारे, बनवारीलाल शर्मा, अनुपम मिश्र आदि लीडर आर्थिक स्वराज की गाँधीवादी धारणा से प्रेरणा पाकर जबरदस्त जन- संग्रामों के उन्ननायाक बन गए। यह तथ्य भी तख्ल तौर पर सामने खड़ा है कि गाँधी के नाम की सबसे अधिक मला जपने वाली राष्ट्रीय काँग्रेस वस्तुतः गाँधी के विचारों और आदर्शो से बहुत उलटा चलती चली गई। गाँधी समाधी पर पुष्पाजंली और श्रद्धासुमन अर्पित करने का ढकोसला करते हुए नेहरु काल से ही भारत की हुकूमतों ने गाँधी के सादगी और समानता के जीवंत-ज्वाजल्य विचार को बाकायदा राष्ट्रीय म्युजियम में पंहुचा दिया। आजादी के दौर के विगत 66 वर्षो में काँग्रेस तकरीबन 55 वर्षो तक केंद्र में सत्तानशीन रही, किंतु समानता और सादगी के गाँधी जीवन दर्शन बोध से उसकी दूरियां निरंतर बढ़ती चली गई। अमीर वर्ग और अमीर होता चला गया और गरीब किसान-मजदूर और अधिक गरीब होते गए। 50 करोड़ से अधिक जनगण गुरबत की सरहद रेखा के नीचे सिसकते हुए जिंदगी जी रहे हैं। यकीनन आजादी के दौर में भारत ने काफी कुछ आर्थिक तरक्की अंजाम दी, किंतु उस समस्त आर्थिक तरक्की पर कुछ कुनबों ने कब्जा कर लिया। हिंद की तरक्की के नमूनों के तौर पर एक से बढ़ कर एक मॉडलों की कारें बाजारों में आई, बड़े बड़े मल्टीप्लैक्स और मॉल्स निर्मित हुए, किंतु अफसोस कि गरीब का झोपड़ा वही खड़ा दम तोड़ता रहा। यहां तक तरक्की के नाम पर करोड़ों आदिवासी किसानों के रिहाइशी झोपड़ें तक उजाड़ दिए गए और उनको दरबदर बनाकर नक्सल विद्रोहियों की नशृंस पाँतों मे दाखिल होने के लिए हूकूमतों द्वारा तशकील हालातों ने विवश कर दिया। अतिभोगवाद के पश्चिमी जीवन दर्शन के विरुद्ध प्रबल पांचजन्य फूंकने वाले गाँधी के सरलता और सादगी के विचार को नकारने की पहल गाँधी द्वारा नामित प्रधानमंत्री नेहरु द्वारा ही अंजाम दी गई, जबकि पं. नेहरु द्वारा गाँव-देहात और करोड़ों किसानों की आपराधिक उपेक्षा करके प्रथम पंचवर्षीय योजना की बुनियाद रखी गई। जिस गाँव-देहात और किसान के अपना प्रमुख आधार बनाकर और चरखा और दो बैलों की जोड़ी को काँग्रेस का प्रतीक चिन्ह बनाकर गाँधी की कयादत में आजादी का संपूर्ण संग्राम लड़ा गया। आजादी मिलते ही उसी गाँव-देहात और किसान को देश की तरक्की के उपक्रम में हाशिए पर डाल दिया गया। भारतीय सादगी और सरलता का जीवंत स्वरुप रहा किसान वर्ग आज के दौर में लाखों की तादाद में आत्मघात करने पर विवश हो गया है।
गाँधी के विचारों और आदर्शो की आज भी बेहद दरकार है। शराबखोरी के विरुद्ध जोरदार उदघोष करने वाला गाँधी आज राजसत्ता के अलंबरदारों द्वारा क्योंकर विस्मृत कर दिया गया, जबकि शराबखोरी से कहीं आगे बढ़कर लाखों नौजवान नारोटिक ड्रग्स की चपेट में फँस रहे हैं। आतंकवाद की सदैव जननी रही है, नारोटिक ड्रग्स की लत। आतंकवाद की बारुद पर बैठे राष्ट्र में हुकूमत गाँधी बोध को हाशिए पर डालकर आखिर हर तरह के नशे के विरुद्ध निर्णायक संग्राम चलाए बिना आतंकवाद से देश को किस तरह निजात दिला सकेंगी? गाँधी के ग्राम स्वराज और करोड़ों किसानों को को उपेक्षित करके और उनके मुकाबले मुठ्ठीभर कॉपोरेट घरानों को तरजीह प्रदान करके आखिरकार नक्सलवाद को राष्ट्र किस तरह से पराजित कर सकेगा? राष्ट्र में व्याप्त आतंकवाद और नक्सलवाद से निजात की कुंजी गाँधी जीवन दर्शन में निहित है। अनैतिक गर्त में पड़ी हुकूमतों और राजनीतिक दलों को यह समझना ही होगा कि राक्षसी तौर पर बढ़ती जाती आर्थिक असमानता और किसान-मजदूरों की बरबादी उनको भी कभी चैन से हुकूमत नहीं करने देगी। इसलिए अमेरिका और पश्चिम का भोगवादी अंधानुकरण छोड़ कर पूरब की गाँधावादी सादगी, सरलता और समानता को अपना कर ही भारत अपनी विकट समस्याओं से निपट सकेगा।
महात्मा गांधी ने कहा था,
” तुमने सबसे गरीब और सबसे कमजोर जिस व्यक्ति को देखा है,उसका चेहरा याद करो और अपने आप से पूछो कि जो कदम तुम उठाने जा रहे हो क्या उसका उस आदमी के लिए कोई उपयोग है?क्या उससे उस आदमी को कोई लाभ होगा?क्या इससे उसकी जिन्दगी और किस्मत में कोई बदलाव आयेगा?दूसरे शब्दों में ,क्या इससे करोड़ों भूखे और निर्वस्त्र लोगों के लिए स्वराज (अपनी किस्मत तय करने का अधिकार)आयेगा?
आज़ादी के बाद हमारी योजनाओं का आधार यही होना चाहिए था,पर हमने ऐसा नहींकिया. क्यों नहीं किया, इसका उत्तर आज कौन देगा?