-डॉ. प्रवीण तोगड़िया
हिन्दुओं का कोई भी बड़ा त्यौहार, उत्सव हो, आजकल एक नया फैशन चला है। यह कहने का और करने का फैशन। हमारे मुसलमान और ईसाई भाइयों ने भी दीपावली का त्यौहार (या गणेश, दुर्गा पूजा, नवरात्रि, होली जो कोई उत्सव हो) बड़े धूमधाम से मनाया!
कुछ दिन पहले किसी बकबकी टीवी पर दिखाया गया कि किसी मुसलमान जोड़े ने अपना विवाह हिन्दू पद्धति से किया। गत 6 वर्षों से (यानी कि भारत में जिहादी और माओवादी हमले बढ़ने के समय से!) यह जरा ज्यादा ही दिख रहा है। किसी छोटे गांव के किसी कोने वाली मस्जिद में गणेश उत्सव में गणेश जी बिठाए जाते हैं, टीवी वालों को बुलाकर फोटो-शोटो खींचे जाते हैं, स्थानीय नेतागण सबसे आगे खड़े रहते हैं और बस! उस गणेश प्रतिमा को फोटो-ऑप का साधन मानकर ड्रामेबाजी चलती है!
स्वयं को एकमेव अद्वितीय समझनेवाले कुछ राजनेता भी सम्माननीय साधु-संतों के साथ मुसलमानों को भी बुलाकर अपने जन्मदिन के केक काटते हैं और जूते पहनकर मंच पर दिए प्रज्ज्वलित करते हैं!
यह सब नौटंकी दो कारणों से हो रही है- पहला यह कि विश्वभर में जिहादी आतंकवाद के नाम पर जन जागृति शुरु होने के कारण मुस्लिम समाज को ऐसा लगा है कि अब गड़बड़ हो गया! इसीलिए अपनी प्रतिमा, मिल-जुलकर रहनेवाले, प्यार भरे दिलवाले (इनका सुनियोजित ‘प्यार’ मुंबई के हमले में भी दिखा और केरल के ‘लव जिहाद’ में भी दिख रहा है!) ऐसी दिखाने के वैश्विक निर्णय करने के बाद यह ड्रामेबाजी शुरु हुई है।
दूसरा कारण हमारे देश में यह है कि अति-बुद्धिवादी कहलाने वालों ने यह अपने ही मन में तय कर रखा है कि इस देश का आम हिन्दू जो 85 करोड़ है, वह मूर्ख है और वे अति-बुद्धिवाद के जोश में 10 राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर जो बकते रहते हैं, वही सम्पूर्ण सत्य है!
गत 6 वर्षों में वही 12 चेहरे इन बकबकी टीवी चैनलों पर वही बकबक करते हुए दिखते हैं- उनका एक ही एजेण्डा होता है – हिन्दुओं को, हिन्दू नेताओं को, हिन्दू संगठनों को, हिन्दू साधु-संतों को गालियां देना और सनातनी, जैन, बौद्ध, वनवासी आदि जो प्राचीन परम्पराएँ हैं वे कितनी ‘हम्बग’ हैं, इनके बारे में ‘क्यांव क्यांव’ करते रहना!
इसमें कई ऐसे लोग आपने देखे होंगे जो यह सब धंधा करके आज राज्यसभा का टिकट पाकर जीवन सार्थक कर पाए! यह सब क्या है? योगी कहेंगे, यह कलियुग है, जहां धर्म का अपमान ही होगा और फिर प्रलय होगा! श्री श्री रविशंकर जी जैसे आध्यात्मिक गुरू कहेंगे – मैंने हमलावर को माफ किया और फिर भी हमारे विद्वान गृहमंत्री सब काम छोड़कर बस इसी विषय में प्रेस करेंगे कि ‘रविशंकर’ पर…(श्री श्री नहीं, रविशंकर जी नहीं…..यह आदत केवल हिन्दुओं के बारे में मीडिया की भी है- मुल्ला-मौलवी आता है तो ‘फलाना साहब’, ईसाई फादर आते हैं तो ‘फादर फलाना’; लेकिन हिन्दू शंकराचार्य भी हो तो कहेंगे- ‘स्वरूपानंद’ और कोई थोड़ा नया मीडिया वाला हो तो कहेगा शंकराचार्य’-लेकिन ‘जी’ बिलकुल नहीं! शर्म आती है न हिन्दुओं को सम्मान देने में!) हम यह कलियुग के नाम पर छोड़ दें इतना आसान नहीं! यह एक बहुत बड़ा षड्यन्त्र राजनेताओं से लेकर जिहादियों तक और कुछ 10-12 मीडिया से लेकर एनजीओ तक सुनियोजित रीति से चलाया जा रहा है!
‘गंगा-जमुनी तहजीब’ यह शब्द, उनके पीछे आनेवाली झूठ-मूठ की पूजाएं यह हिन्दू संस्कृति को भ्रष्ट और फिर नष्ट करने का षड्यन्त्र है, जिसमें बहुत बड़े पदों पर बैठे लोग, विश्व की जिहादी और चर्च की शक्तियाँ तन-मन-धन से लगी हैं! कोई भी आक्रामक किसी देश पर चढ़ाई कर वहीं ठहर कर उस देश पर राज करने लगता है तो उसकी संस्कृति (दूसरे देश पर आक्रमण कर उनके मंदिर, मूर्तियां तोड़ना, उनकी बहू-बेटियों पर अत्याचार करना, उन्हें जबरदस्ती धर्मान्तरित करना इसे कोई संस्कृति कहता है तो कोई बर्बरता!)
आक्रमित देश की संस्कृति नहीं हो सकती, कोई भी थोपी गयी विकृति कभी संस्कृति नहीं होती! अमेरिका में ब्रिटिशों ने राज किया, उसके बाद वहां कई देशों से- लेबनान से लेकर इस्राएल और हंगरी से लेकर कोरिया, भारत, पाकिस्तान, केन्या से लोग गए, कुछ लोग आश्रित के नाते, विस्थापित के नाते गए, भारत के लोग सम्मान से गए और वहां की समृद्धि में सहयोग किया!
जिस देश, प्रदेश या समुदाय की अपनी संस्कृति, अपना सनातन धर्म न हो, जिसे करोड़ों युगों की परम्परा न हो, उस देश में बाहर से आनेवाले लोगों की आदतों को ही संस्कृति माना जाना स्वाभाविक है, किन्तु भारत में-जहां करोड़ों युगों की धर्म-परम्परा रही हो- जिनसे भारत सुख-समृद्धि-शान्ति में जीता रहा था- ऐसे भारत की उज्ज्वल संस्कृति को तहस-नहस कर गंदी आदतों को फैलाकर कोई उसे गंगा-जमुनी तहजीब कह रहे हैं और आगे जाकर इस विकृत मनोवृत्ति और आचारों को ही भारत की आज की संस्कृति माना जाता है या माना जाए, ऐसा दबाव समाज पर, राजनीति पर, न्याय संस्था पर, शिक्षा पद्धति पर डाला जाता है तो इस षड्यन्त्र के विरुद्ध जी-जान से खड़े रहने की हिम्मत हिन्दू समाज जल्द दिखाए तो ही आगे कुछ भविष्य हम अपनी आगे आनेवाली पीढ़ियों को दे पायेंगे, वरना कभी ड्रामेबाजी से, कभी नए विकृत कानूनों से, कभी ‘मीडिया ट्रायल’ से तो कभी जातियों में जान-बूझकर झगड़ा करवाके ये ‘विकृतिवादी’ हमारी गंगा माँ का नाम भी कभी गंगा था ही नहीं और यमुना-जमुना ऐसे कोई नदी ही नहीं थी, यह सिद्ध कर उनका इस्लामिक या ‘चर्चिक’ स्वरूपान्तर न कर दे! सम्हलों! हिन्दुओं, लोकतांत्रिक पद्धति से इन सब षड्यन्त्रों का विरोध एक होकर करो, वरना बहुत देर हो जायेगी!
तोगड़िया जी आपकी बातों पर हिन्दुओं को गौर करना चाहिए. इन सब के पीछे सिर्फ सत्ता की बू आती है. अयोद्ध्या में राम मंदिर जैसे मुद्दों को जिसमे कुछ भी पेचीदगी नहीं है आसानी से सुलझाया जा सकता है, लेकिन वोट बैंक ऐसा होने नहीं देता. जातिवाद को भी ये राजनेता मिटने नहीं देते. इनका निहित स्वार्थ सत्ता के लिए है. ऐसी स्वार्थी ताकतों को जनता को नकार देना चाहिए. बरेली के दंगे इसकी ताज़ा मिसाल है. जहाँ वोट के लालच में सत्ता ने दंगों को होने दिया और कोई ईमानदार कोशिश नहीं किया. वैसे तो राममंदिर से हमारा कोई भला नहीं होने वाला. लेकिन ये सिर्फ एक प्रतिक है, विदेशी दासता का. मंदिर वापस बनाकर एक गुलामी से छुटकारा मिलेगा.
Deepa sharma ji,
very good
realy bahut achha
sahi kaha aapne, ab me kya kahu
aapne to kamal hi kar diya
yes, aisa hi h
chalo me apni coments nahi kar raha
same u
एक फिल्म आँखें मैं एक जोकर था जो बैंक अकाउंटेंट की हर बात को सही ठहराता था मतलब मोनिका डार्लिंग जो बोल रही है वही सच बाकी सब झूट…ये अह्तेशाम इसी फिराक मैं है क्यों???????
मोनिका जो बोल रही हैं वो सच है ही
या यु कहिये जो सच वही दीपा जी ने कहा
क्यू मयंक जी सच तो कड़वा ही होता है
सच का सामना तो करना ही पड़ेगा
सच से अगर सामना हो गया तो ‘शाम’ होते होते आप सब ‘त्याग’ देंगे |
देखा
खिसियानी बिल्ली खम्बा ऐसे ही नोचती है
ganga jamuni tehzib un logo ki dain hai jin logo ne ise banaya hai un logo ki nahi jo apni gandi zehar bhari baton se is tehzib ko ganda karte hain,,,,,,,
togadiya ji jab hum up wale maharashrtra me pitkar aate hain tab aapko nahi dikhta ki wahan hindu bhi pit rahen hain……..
tab aapko desh tut raha hai nazar nahi aata hai……… raj thakre to ek hindu hi hai na wo jinko marta hai kam se kam wo us marne me to ekta ka bhav rakhta hai wo aapse behtar hai………. qki wo ye nahi dekhta hai ki hindu hai ya muslim hai…… aap to utna bhi nahi kar sakte ho………..
sharm aati hai ki aaj hum 85% logon ko mutthi bhar logon se khatra batakar aap desh ko tudwa rahe hain
दीपा जी सच और हक बात कहने के लिए बधाई
नहले पे देहला
करते हैं तहज़ीब की बात
आजकल कोई पूछ नहीं है न इनकी इसलिए बोखला रहे हैं
वाह वाह , वाह वाह
jab yamuna jakar ganga me milati he tab age bhi us nadi ko ganga-jamuna nahi ganga hi kaha jata he…………………….ye hindu rastra he koe dharm shala nahi ki chale aye he es hindu sanskriti ki jagah ganga-jamuna kahane…………………..ye ganga jamuna sanskriti ab kaha gayi jab vah kashmir me 4.5 hindu mar kar bhaga diye??ya pakistan me hindu ka sfaya ho gaya??sahi bat he aj hindu 47 se kahi jyada sangatit evam takt var he,es liye ese bakvas bate fela kar samny hinduo ko murkh banaya jaraha he,
ज़रा सोचो तो सही की केवल तोगडिया जी ही मीडिया के निशाने पर क्यों ? लाखों आतंकवादी, हज़ारों पादरियों के योंनअत्याचार. पर ये सबकुछ मीडिया को नज़र ही नहीं आता.ऐसा क्यों? क्या केवल इसलिए नहीं कि वे झूठ के पहाड़ के पीछे की सच्चाइयों को देखने की कुवत रखते हैं, सच को कहने का अदम्य साहस उनके पास है. बड़ी से बड़ी चुनोतियों से टकराने की हिम्मत है उनके पास. कोई लालच या प्रलोभन उन्हें हिला- डिगा नहीं सके. ऐसे खतरनाक (देश के दुश्मनों केलिए ) इंसान को मीडिया की तोप से उड़ाना,निशाना बनाना, उनकी छवि धूमिल करना कितना ज़रूर होता है, इसे समझदार लोग समझ सकते हैं.
पर कब तक, आखिर जीत तो सच कि सुनिश्चित है. बस चंद मास में वह घटने वाला है जो सेंकडों साल में नहीं घटा. भारत और भारतीयता कि जीत, निश्चित जीत जिसमे प्राणी मात्र का कल्याण होगा, केवल नारों मे नहीं , व्यवहार में
वंदेमातरम !.
श्री राम तिवारी जी किस कल्पनालोक में रह रहे हैं ? भारतियों को बवकूफ बनाने के लिए जिन अव्यवहारिक और झूठे सिधान्तों तथा नारों की रचना कीगई है उनमें से एक यह गंगा- जमुनी संस्कृति का शरारतपूर्ण षड़यंत्र भी है. मेरे भोले भाई ज़रा सोचकर बताओ की संसार में कहीं और भी यह गंगा-जमुनी संस्कृति जैसी बेतुकी अवधारणा है?
न है न होनी संभव है. देशों की परम्पराओं, भाषा, संस्कृतियों का निर्माण अनेक सम्प्रदायों, समूहों से मिलकर हुआ होसकता है पर उसका नाम उस देश की मूल संस्कृति के नाम पर ही रहता है, बदल नहीं जाता. अगर ऐसा नहीं तो कोई एक भी उदहारण देकर बताओ.
हमारे दुश्मन हमें बेवकूफ बनायेगे, बनाते आये हैं. हमारा काम है कि उनके कहे के पार, उसके पीछे के सच को देखलें और उससे बचें,उसकी काट करें. वरना हम हमारी अपनी नासमझिओं से ही समाप्त होते जायेंगे.
देश और समाज केवल भावना के बल पर सुरक्षित, समुन्नत नहीं होसकते, ज़मीनी सच्चाइयों को भी देखना समझना ज़रूरी होता है.
आपकी भाषा से समझा जासकता है कि आप काफी भावनाशील और सज्जन हैं. कृपया मेरी किसी बात को अन्यथा न लें .
शुभाकांक्षी, आपका अपना, राजेश कपूर !
हिंदू यदि सुसंगठित,सुसज्ज, और अतीव शक्तिशाली, होकर ही मित्रताका हाथ बढाएगा, तो ही मुस्लिम और इसाई, उसे स्वीकार कर, मित्र होनेकी, संभावना देखता हूं।दुर्बल रहकर, ही यदि “गंगा-जमनी” जाप करते बैठोगे, तो जैसे कश्मीरसे भगाए गए हो, वैसे ही गंगा के और जमुना के (और भी नदियोंके) किनारोंसे, भगाए जाओगे,फिर जाकर कन्याकुमारी के, समुंदरमें कूद जाना,और डूबते डूबते जपते रहना “गंगा-जमनी, गंगा जमनी”।
—ज़रा इसी “गंगा जमनी” को, पाकीस्तान में, या चलो अपने कश्मीरमें, सफल करके दिखाओ, तो मान सकता हूं। तोगडिया जी, सही कहते हैं।सच्चायी कहनेको भी, साहस चाहिए। देश, काल, परिस्थिति अनुरूप निर्णयही “विवेक” कहा गया है।बिना विवेक, रट्टा मारनेवाले मूरखही है। हमारे पूरखे हमारी तरह मूरख नहीं थे। धन्यवाद।
गंगा जमुनी का तात्पर्य है की जहाँ गंगा जमुना दोनों मिलकर एक नवीनतम पवित्रता का निर्माण करें हजारों वर्ष से प्रयाग राज का महात्म्य इसी कारन से वन्दनीय कहा गया है /इसी तरह से दुनिया के जितने भी धरम मज़हब हैं वे भी प्रारंभ में तो गंगा जमुना के मूल की तरह पवित्र हैं किन्तु समय के साथ साथ उन सभी में वैसी ही मलिनता प्रविष्ट हो चुकी है जैसे की गंगा इलाहाबाद या पटना में हो चुकी है.यदि सभी धार्मिक विचारधाराओं में से उस मलिनता को दूर करने तथा साथ साथ रहने बालों में आपसी सामंजस्य सौहाद्र की कामना हो तो उस पवित्रतम प्रकिर्या का नाम गंगा जमुनी तहजीव है .अपने आप को श्रेष्ठ तथा अन्यों को गरियाने में आनंदित होने की भावना भयावह एवं सर्वस्व हरण कर लेने बलि होती है.गंगा जमुनी तहजीव का अर्थ शहीद भगतसिंह अस्फाकुलाखान चंद्रशेहकर आज़ाद तात्या टोपे बरकतुल्लाह पंडित मदनमोहन मालवीय स्वामी श्र्धध्नंद तथा मौलाना आजाद जैसे नररत्न ही समझ सकते थे .हिदुत्व कोई छुई मुई नहीं है जो किसी तरह के एरे गेरे आतंकबाद नक्सलबाद या इतर हिदू धार्मिक उन्मादों की तर्जनी देख मुरझा जाये .आज सबसे बड़ी जरुरत है असली नकलीसाधुओं में फर्क करने की .जो शीत उष्ण सर्दी गर्मी शत्रु मित्र मान अपमान में सम भाव बाला है ;जो गो धन गज धन बाज धन …में नहीं समानता बंधुत्व तथा सर्वहारा के हितों में इश्वर को देखता है वो ही असल हिन्दू है जिस किसी बाबा महंत को सम्मान की अभिलाषा है उसे अव्वल तो साधू सन्यासी कहा ही नहीं जा सकता दुसरे उसके वैयक्तिक मान अपमान से राष्ट्र की सम्ब्ध्धता से जोड़ा जाना नितांत मूर्खतापूर्ण है.आज कल बाबागिरी एक धंदा वन चूका है अधिकांश चोर लुटेरे बलात्कारी हत्यारे वेश बदलकर बाबा बैरागियों में शुमार हो जाते हैं कुछ तो महिलाओं में ही लोक प्रिय क्यों होते हैं यह रिसर्च का बिषय है.येंसा नहीं की यह हिन्दू समाज में ही होता है .असल बात यह है की यह सभी धार्मिक समाजों में कमोवेश यही चेतना का आम संकट है .अतः सभी धर्मों के सच्चे शांतिप्रिय देशभक्त स्वधीन्तासेनानियों ने इस पवित्र मन्त्र का अविष्कार किया था जिसे पढ़कर आज़ादी मिली और हम गर्व से कह सकतें हैं की भारत एक महानतम लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है.तथा गंगा जमुनी तहजीव में इसका दुनिया में कोई सानी नहीं .अपनी रेखा बड़ी करने के लिए देश के अमर शहीदों के उसूलों को खंडित करने की कोशिश निहायत ही दुर्भाग्यपूर्ण है.
श्रीराम तिवारी
ये गंगाजमुनी संस्कृति केवल भारत में ही क्यों, दूसरे देशों में क्यों नहीं ? हर देश में दूसरे देशों के सम्प्रदायों का आगमन हुआ है. फिर केवल भारत की ही संस्कृति को गंगा-जमुनी कहने का क्या मतलब? यानी भारत की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने वालों की एक और शरारत है यह प्रयास. समझदार लोग, अपनी बुधि का इस्तेमाल करनेवाले इसे समझ रहे हैं. पर क्या करें , देश की सत्ता पर विदेशियों के इशारों पर, विदेश्यों के हित में शासन करने वाली सरकार का कब्जा है. इन मुठी भर लोगों के दम पर विदेशी ताकतें देशभक्तों को कुचल रही हैं, देश को लूट रही हैं. किन्तु देख सकें तो देखलें, समझलें कि ——————
भारतीयता का, देशभक्ति का विशाल ज्वार उठ रहा है जिसमें सारी विरोधी ताकतें बह जयेंगी, मिट जायेंगी. मुश्किल से दो साल लगनेवाले हैं इस परिवर्तन में.
भारत के शासकों द्वारा देश को ठगने और बर्बाद करने के जो प्रयास अनेक दहकों से चल रहे हैं उन्हें देखकर किसी भी देशभक्त को क्रोध आना चाहिए. अतः डा. तोगडिया जी का रोष सकारण है, सही है. मैकाले की संतानों का खून भारत की दुर्दशा पर क्यों खौलने लगा ?
Good Morning !!!