गणि राजेन्द्र विजय : आदिवासी प्रकाश स्तंभ

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19 मई 2022, को जन्मदिवस पर विशेषः

ललित गर्ग

भारतीय संत परम्परा में गणि राजेन्द्र विजयजी का महत्ववपूर्ण स्थान है। आदिवासियों के मसीहा एवं जैन संत के रूप में उनके तपोमय जीवन, दिव्यवाणी और चमत्कारपूर्ण आध्यात्मिक आभामंडल से हजारों-लाखों व्यक्तियों के जीवन की दिशा बदली है। उनके जादुई स्पर्श से गुजरात के आदिवासी अंचलों में खासकर छोटा उदयपुर, कंवाट, बलद, रंगपुर, बोडेली आदि क्षेत्रों में नई चेतना का संचार हुआ है।
एक संतपुरुष के रूप में उनका नेतृत्व समूचे राष्ट्र और मानवता के लिए बहुत उपयोगी है। इस माह में 19 मई 2022 को उनका 47वां जन्मदिवस भी है, इसे गुजरात के साथ देश के अन्य क्षेत्रों में ‘सामाजिक सद्भावना दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। 19 मई, 1974 को एक आदिवासी परिवार में जन्म लेने वाले गणि राजेन्द्र विजयजी, मात्र ग्यारह वर्ष की अवस्था में जैन मुनि बन गये। गणि राजेन्द्र विजयजी त्याग, साधना, सादगी, प्रबुद्धता एवं करुणा से ओतप्रोत आदिवासी जाति की अस्मिता की सुरक्षा के लिए तथा मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने के लिए सतत प्रयासरत हैं। बीस से अधिक पुस्तकें लिखने वाले इस संतपुरुष ने स्वस्थ एवं अहिंसक समाज निर्माण के लिये जिस तरह के प्रयत्न किये हैं, उल्लेखनीय हैं। अपनी धुन में आदिवासी समाज की शक्ल बदलने के लिये प्रयासरत हंै और इन प्रयासों के सुपरिणाम देखना हो तो कंवाट, बलद, रंगपुर, बोडेली आदि-आदि आदिवासी क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
सुखी परिवार अभियान के प्रणेता गणि राजेन्द्र विजय पिछले 30 वर्ष में करीब-करीब पूरे देश की पैदल यात्रा कर चुके हैं। वे आदिवासी जनजीवन के उत्थान और उन्नयन के लिये लम्बे समय से प्रयासरत है और विशेषतः आदिवासी जनजीवन में शिक्षा की योजनाओं को लेकर जागरूक है, इसके लिये सर्वसुविधयुक्त करीब 12 करोड़ की लागत से जहां एकलव्य आवासीय माडल विद्यालय का निर्माण उनके प्रयत्नों से हुआ है, वहीं कन्या शिक्षा के लिये वे ब्राह्मी सुन्दरी कन्या छात्रावास का कुशलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं। इसी आदिवासी अंचल में जहां जीवदया की दृष्टि से गौशाला का संचालित है तो चिकित्सा और सेवा के लिये चलयमान चिकित्सालय भी अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दे रहा है। अपने इन्हीं व्यापक उपक्रमों की सफलता के लिये वे कठोर साधना करते हैं और अपने शरीर को तपाते हैं। एक-एक दिन में वे 50-50 किलोमीटर की पदयात्राएं कर लेते हैं। इन यात्राओं का उद्देश्य है शिक्षा एवं पढ़ने की रूचि जागृत करने के साथ-साथ आदिवासी जनजीवन के मन में अहिंसा, नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था जगाना है।
भारत को आज सांस्कृतिक क्रांति का इंतजार है। यह कार्य सरकार तंत्र पर नहीं छोड़ा जा सकता है। सही शिक्षा और सही संस्कारों के निर्माण के द्वारा ही परिवार, समाज और राष्ट्र को वास्तविक अर्थों में स्वतंत्र बनाया जा सकता है। इसी दृष्टि से हम सबको गणि राजेन्द्र विजय के मिशन से जुडना चाहिए एवं एक स्वस्थ समाज निर्माण का वाहक बनना चाहिए। इंसान की पहचान उसके संस्कारों से बनती है। संस्कार उसके समूचे जीवन को व्याख्यायित करते हैं। संस्कार हमारी जीवनी शक्ति है, यह एक निरंतर जलने वाली ऐसी दीपशिखा है जो जीवन के अंधेरे मोड़ों पर भी प्रकाश की किरणें बिछा देती है। उच्च संस्कार ही मानव को महामानव बनाते हैं। सद्संस्कार उत्कृष्ट अमूल्य सम्पदा है जिसके आगे संसार की धन दौलत का कुछ भी मौल नहीं है। सद्संस्कार मनुष्य की अमूल्य धरोहर है, मनुष्य के पास यही एक ऐसा धन है जो व्यक्ति को इज्जत से जीना सिखाता है।
गणि राजेन्द्र विजयजी के आध्यात्मिक आभामंडल एवं कठोर तपचर्या का ही परिणाम है आदिवासी समाज का सशक्त होना। सर्वाधिक प्रसन्नता की बात है कि अहिंसक समाज निर्माण की आधारभूमि गणि राजेन्द्र विजयजी ने अपने आध्यात्मिक तेज से तैयार की है। सचमुच आदिवासी लोगों को प्यार, करूणा, स्नेह एवं संबल की जरूरत है जो गणिजी जैसे संत एवं सुखी परिवार अभियान जैसे मानव कल्याणकारी उपक्रम से ही संभव है। गणि राजेन्द्र विजयजी की विशेषता तो यही है कि उन्होंने आदिवासी उत्थान को अपने जीवन का संकल्प और तड़प बना लिया है।
गणि राजेन्द्र विजयजी बच्चों को कच्चे घड़े के समान मानते हैं। उनका कहना है उन्हें आप जैसे आकार में ढालेंगे वे उसी आकार में ढल जाएंगे। मां के उच्च संस्कार बच्चों के संस्कार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि सबसे पहले परिवार संस्कारवान बने माता-पिता संस्कारवान बने, तभी बच्चे संस्कारवान चरित्रवान बनकर घर की, परिवार की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकेंगे। अगर बच्चे सत्पथ से भटक जाएंगे तो उनका जीवन अंधकार के उस गहन गर्त में चला जाएगा जहां से पुनः निकलना बहुत मुश्किल हो जाएगा। बच्चों को संस्कारी बनाने की दृष्टि से गणि राजेन्द्र विजय विशेष प्रयास कर रहे हैं।
भारतीय समाज में जिन आदर्शों की कल्पना की गई है, वे भारतीयों को आज भी उतनी ही श्रद्धा से स्वीकार हैं। मूल्य निष्ठा में जनता का विश्वास अभी तक समाप्त नहीं हुआ। व्यक्ति अगर अकेला भी हो पर नैतिकता का पक्षधर हो और उसका विरोध कोई ताकतवर कुटिलता और षड्यंत्र से कर रहा हो तो जनता अकेले आदमी को पसन्द करेगी। इन्हीं मूल्यों की प्रतिष्ठापना, गणि राजेन्द्र विजय की यात्रा का उद्देश्य है।
गणिजी के यात्राओं के दौरान हजारों लोगों से सम्पर्क करते हैं, उन्हें ग्रामीण भाषा में समझाते हैं, अपने होने का भान कराते हैं। उनका कहना है कि आदिवासी समाज को उचित दर्जा मिले। वह स्वयं समर्थ एवं समृद्ध है, अतः शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिये स्वयं आगे आएं। एक तरह से एक संतपुरुष के प्रयत्नों से एक सम्पूर्ण पिछडा एवं उपेक्षित आदिवासी समाज स्वयं को आदर्श रूप में निर्मित करने के लिये तत्पर हो रहा है, यह एक अनुकरणीय एवं सराहनीय प्रयास है। लेकिन इन आदिवासी लोगों को राजनीतिक संरक्षक भी मिले, इसके लिये वे राजधानी दिल्ली में कई बार चातुर्मास किया और सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से सम्पर्क स्थापित कर आदिवासी जीवन के दर्द से उन्हें अवगत कराया।
आज राज्यों एवं देश के शासन-प्रशासन के क्षेत्र में कई साधु-संत ऐसे हैं जो प्रत्यक्ष रूप से जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं उनके कार्य से जनता भी भलीभांति परिचित एवं संतुष्ट हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथजी ऐसे ही विरल व्यक्ति हैं, जो संत समाज से हैं। गणि राजेन्द्र विजयजी का आदिवासी समाज के उत्थान में महत्ती भूमिका रही है। अतः आदिवासियों के विकास के साथ-साथ राज्य एवं देश के विकास में शासन-प्रशासन के क्षेत्र में प्रत्यक्ष रूप से इनकी भागीदारी होनी चाहिए, जिससे अभी जो भी विकास का कार्य हो रहा है उसकी गति और तेज हो सकें। आओ हम सब एक उन्नत एवं आदर्श समाज की नींव रखें जो सबके लिये प्रेरक बने।

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