क्या चिंतन के बाद कम होगी कांग्रेस की चिंता?

सुरेश हिन्दुस्थानी
वर्तमान में कांग्रेस पार्टी ने गंभीर चिंतन कर लिया है, लेकिन इस चिंतन में नया कुछ भी नहीं निकला। कांग्रेस के चिंतन शिविर की मुख्य अवधारणा चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सुझाई गई बातों पर पर ही केंद्रित होती दिखाई दी। चिंतन के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान इसी पर है कि अब क्या कांग्रेस की चिंता कम होगी। क्योंकि आज की कांग्रेस की स्थिति को देखकर यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस को जिस चिंतन की आज से आठ साल पूर्व आवश्यकता थी, वह अब हुआ है। यानी कांग्रेस ने अपनी पार्टी को दुर्गति से बचाने के लिए बहुत देर कर दी। कांग्रेस को इस प्रकार के चिंतन की आवश्यकता बहुत पहले से रही है, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व ने मात्र इसी बात पर चिंतन किया कि पूरी कांग्रेस पार्टी की कमान गांधी परिवार के पास कैसे रहे? गत दो लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस के भीतर नेतृत्व बदलाव को लेकर आवाज उठी भी थी और गैर कांग्रेस दलों ने परिवारवाद के नाम पर कांग्रेस को इस प्रकार से घेरा कि कांग्रेस का दायरा सिमट गया। इतना होने के बाद भी कांग्रेस एक परिवार के एकाधिकार से बाहर नहीं आ सकी है। कांग्रेस के चिंतन शिविर में भी पूरी कवायद गांधी परिवार के आसपास ही रही।
कांग्रेस के चिंतन शिविर में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कांग्रेस नेताओं को जनता के बीच जाना होगा। यानी राहुल गांधी ये तो मानने को तैयार हो गए हैं कि कांग्रेस के नेताओं की जनता से दूरी बढ़ी है। इस चिंतन को एकतरफा निरूपित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि कांग्रेस का राजनीतिक अस्तित्व कमजोर होने का कारण कांग्रेस नेताओं की बजाय जनता की दूरी भी हो सकती है। कांग्रेस के चिंतन का आधार यह होना चाहिए था कि जनता कांग्रेस से दूर क्यों होती जा रही है। अगर इस पर चिंतन किया जाता तो वे तमाम बातें भी सामने आ जाती जो कांग्रेस के कमजोर होने का मुख्य कारण है। इसमें कांग्रेस नेताओं की कार्यशैली भी जिम्मेदार है। जिसके कारण भारत की जनता कांग्रेस से दूर होती चली गई। कांग्रेस की कार्यशैली की बात करें तो तमाम प्रकार की बातें दिखाई देती हैं, जिसमें एक प्रमुख बात यह भी है कि जिस प्रकार से राहुल गांधी अपने को हिन्दू होने के लिए प्रमाण प्रस्तुत करते हैं, वह नितांत झूंठ है। क्योंकि यह सभी जानते हैं कि राहुल फिरोज खान का नाती है। और उसी खानदान का अंश है। दूसरी बड़ी बात यह भी है कि अगर राहुल गांधी हिन्दू मानते हैं तो उस समय उनका खून खौल जाना चाहिए, जब देश में रामनवमी और हनुमान जन्मोत्सव पर पत्थर बरसाए जा रहे थे, लेकिन ऐसा लगता है कि राहुल का हिंदुत्व प्रेम केवल चुनावों के समय ही जाग्रत होता है। इस प्रकार की मानसिकता को देश की जनता भलीभांति समझती है।
हालांकि जब से कांग्रेस अधोगति के मार्ग पर बढ़ी है, तब से ही कांग्रेस के नेताओं द्वारा कांग्रेस की दशा सुधारने को लेकर बयान दिए हैं, लेकिन उनकी आवाज पर कांग्रेस नेतृत्व ने कोई चिंतन नहीं किया। अगर उस समय ही कांग्रेस विचार करने के लिए तैयार हो जाती, तो संभवत: आज इस प्रकार का चिंतन करने की आवश्यकता नहीं होती। कांग्रेस के बड़े नेता आज या तो गांधी परिवार के सहारे राजनीति कर रहे हैं या फिर किनारे पर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। एक बार जयराम रमेश ने खुले अंदाज में कहा था कि कांग्रेस में अब बुजुर्ग नेताओं के दिन बीत चुके हैं। इसका तात्पर्य यह भी है कि राजनीतिक अस्तित्व रखने वाले कांग्रेस के नेता केवल अपनी दम पर ही कांग्रेस में टिके हुए हैं। हम यह भी जानते हैं कि जनाधार वाले कांग्रेस आज या तो कांग्रेस से दूर जा चुके हैं या फिर जाने का प्रयास कर रहे हैं। ये स्थिति क्यों बन रही है, कांग्रेस को इस पर भी चिंतन करना चाहिए था, लेकिन आज की कांग्रेस इस पर क्यों चिंतन करना नहीं चाहती, यह भी बड़ा सवाल है।
कांग्रेस के चिंतन शिविर को लेकर यह भी सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस को इस समय चिंतन करने की आवश्यकता क्यों हो रही है? इसके पीछे यही कहा जा रहा है कि कांग्रेस को सत्ता चाहिए। मात्र सत्ता के लिए ही यह सब कवायद की जा रही है। इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व परिवर्तन भी कर सकती है, लेकिन ऐसा भी लगता है कि वह मात्र जनता को भ्रमित करने के लिए ही होगा। उनका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना ही है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों की तैयारी करने के लिए यह चिंतन किया गया है। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि कांग्रेस के चिंतन शिविर में क्या उन बातों पर भी चर्चा हुई होगी, जो नेतृत्व को लेकर उठाए जा रहे थे। सुना यह भी जा रहा है कि इस शिविर में मात्र उन्हीं लोगों को शामिल करने का अवसर दिया गया, जो सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कृपा पर राजनीति की मुख्य धारा में बने हुए हैं। कांग्रेस अगर वर्तमान में प्रासंगिक नेताओं पर ध्यान दे तो उसे चिंतन करने की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन कांग्रेस ऐसा करेगी, इसकी गुंजाइश कम ही है।
अभी हाल ही में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा जिस प्रकार से कांग्रेस को आइना दिखाया, वह एक कांगे्रस के लिए बड़ा झटका जैसा ही था। राजनीतिक गुणा भाग करने वाले चिंतक इसका एक अर्थ यह भी निकालते हैं कि प्रशांत किशोर ने गंभीर चिंतन करने के बाद ही कांग्रेस में शामिल होने से इसलिए ही इनकार किया है, क्योंकि अंदरूनी तौर पर कांग्रेस के पास वह राजनीतिक प्रभाव नहीं बचा है, जो उसे उत्थान के मार्ग पर ले जाने में समर्थ हो सके। कांग्रेस के कमजोर होते जाने का एक बड़ा कारण यह भी माना जा सकता है कि कांग्रेस के नेता बिना सोचे कोई भी बयान दे देते हैं। कांग्रेस जिस प्रकार से देश की सरकार को बदनाम करने में अपनी शक्ति लगा रही है, अगर वही शक्ति अपनी पार्टी की दशा सुधारने में लगाए तो बहुत संभव है कि कांग्रेस की स्थिति सुधर जाए, लेकिन ऐसा इसलिए भी नहीं लग रहा है, क्योंकि कांग्रेस को आज भी यही लगता है कि मात्र वे ही देश को चलाने के लिए पैदा हुए हैं। कांग्रेस को इस प्रकार की मानसिकता से बाहर निकलना होगा। इसके अलावा आज कांग्रेस की विसंगति यह भी है कि वह सरकार के कामकाज में कमियां देखने में ही अपना सारा समय लगा रही है। जो समय के हिसाब से अनुकूल नहीं कहा जा सकता। आज का समय यही कहता है कि जो सच है, उसे सच मान लेना चाहिए। झूठ के सहारे लम्बे समय तक राजनीति नहीं की जा सकती। कांग्रेस को सच को स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए, फिर चाहे वह सच सरकार का हो या फिर गैर कांग्रेसी दलों का। इसी प्रकार झूठ या देश विरोधी बातें कोई भी करता हो, उसका विरोध करने का सामर्थ्य भी पैदा करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने उन लोगों का भी साथ दिया, जो देश को तोड़ने की बात करते हैं। कांग्रेस के चिंतन शिविर में इस बात का भी चिंतन होना चाहिए कि उसके नेताओं को सरकार की सभी बातों का विरोध करना चाहिए या कुछ बातों का समर्थन भी करना चाहिए। अगर कांग्रेस के चिंतन शिविर में यह चिंतन का विषय नहीं है तो कैसा चिंतन। दूसरी बड़ी बात यह है कि कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की बात भी लम्बे समय से उठ रही है, लेकिन चिंतन शिविर में नेतृत्व परिवर्तन पर कितनी बात हुई, इसकी परिणति आने वाला समय ही बता सकता है। चिंतन शिविर के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव दिखेगा, ऐसा कहा नहीं जा सकता, क्योंकि अभी तक यही माना जाता है कि सोनिया गांधी पुत्र मोह के चलते राहुल के सिंहासन को डिगाना नहीं चाहतीं। इसके पीछे यह भी कारण हो सकता है कि राहुल गांधी के पास इतनी योग्यता नहीं है कि वह अपनी दम पर कांग्रेस की कमान संभाल सकें। अब देखना यह है कि चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस कौन से रास्ते पर जाती है?

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