लिंग आधारित बजट महिला सशक्तिकरण

लिंग आधारित बजट महिला सशक्तिकरण का साधन के रूप में

डॉ. रमेश प्रसाद द्विवेदी

प्रस्तावना:

किसी भी समाज के निर्माण एवं विकास में महिला और पुरूष दोंनों की परस्पर सहभागिता व साझेदारी अत्यंत आवश्यक है। महिला व पुरूष को समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए के समान माना गया है। अतः समाज के विकास एवं निर्माण के लिए महिला एवं पुरूष की सहभागिता अनिवार्य होती है। विकास के साथ ही साथ नैसर्गिक सिद्यांत की पालना एवं पर्यावरण संतुलन के लिए अति आवश्यक है। महिलाओं के अधिकार की कमी मानव सभ्यता के साथ होती गई और समय के साथ ही साथ महिलाओं का आर्थिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ापन रहा है। बजट शासन के महत्वपूर्ण नीति संबंधी उपकरण होते है, जो उसकी राजनीतिक प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करते है। अनुभवसिद्ध परिणामों से पता चलता है कि लिंग आधारित बजट समाज के विभिन्न वर्गों में बढ़ती चेतना की देन है। भारतीय समाज विविध जातियों, धर्मों एवं क्षेत्रों में बंटा हुआ है। इन सबके बीच समानता की अपेक्षा और उसे पूरा करने की चेतना का विस्फोट हुआ है। लैंगिक समानता की लड़ाई तो पूरी दुनिया में लड़ी जा रही है। जिस समय बजट प्रस्तुत हो रहा होता है ऐसे वर्ग व समूह का ध्यान इस पहलू पर जाता है कि बजट में विशेषतः उनके लिए किस तरह की व्यवस्था की गई है। सर्व विदित है कि दुनिया के पटल पर लगभग दो-तीन दशकों में लैंगिक यानी जेण्डर बजट की अवधारण उभरकर आई है। इसके माध्यम से राष्ट्र-राज्य का प्रयास होता है कि किसी भी सरकारी योजना के लाभ को महिलाओं तक इस तरह पहंुचाया जाय ताकि लैंगिक तौर पर पुरूषों और महिलाओं के बीच जो विकास की खाईं बनी हुई है उसे पाटा जा सके। महिलाओं को बेहतर जीवनस्तर उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किया जाता है ताकि सामाजिक तौर पर पुरूषों की तुलना में पीछे न छूटें। यह संकल्पनात्मक रूप से महिला सशक्तिकरण का ही विस्तार रूप है, जिसमें महिलाओं के विकास को स्वतंत्र रूप से न देखकर पुरूषों के बराबर पहुंचाने की कोशिष की जाती है।

 

जेण्डर बजटिंग व समानता के लिए प्रयास:

विश्वस्तर पर महिलाओं की स्थिति सुधारने और जेण्डर समानता को सुनिश्चित करने के लिए अनेक पहल किये गये। महिलाओं के प्रति विभेदों को समाप्त करने के लिए 18 दिसम्बर 1979 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अपनाया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1946 में गठित महिलाओं की स्थिति पर आयोग के तीस वर्ष से अधिक अवधि के अथक प्रयासों का प्रतिफल है। इस आयोग का उद्देश्य यह था कि विश्व की आधी आबादी, यानी महिलाओं को, उनके बुनियादी मानवाधिकार, गरिमा एवं मान, पुरूषों के समान ही बराबरी से दिलाया जा सके। प्रयोगिकतौर पर सर्वप्रथम इसकी शुरूआत अस्ट्रेलिया में मानी जाती है, जहां पर 1980 के दशक में पहली बार इसका प्रयोग किया गया। ब्रिटेन में 1989 में महिलाओं के हित में बजट को लेकर एक स्वतंत्र समूह का गठन किया गया जिसमें मजदूर संगठनों व नगर समाज के प्रतिनिधि एवं बौद्धिक वर्ग के सदस्य होते थे और उसका ब्रिटिश सरकार के साथ 1997 में बनी लेबर दल ने सरकार के साथ निरन्तर संपर्क रहता था। वर्तमान में दुनिया में करीब 70 देश ऐसे है जहां पर जेण्डर बजट के प्रयोग हो रहे है। भारत में पहले वंचित वर्गों की तरह महिलाओं के कल्याण की दृष्टि से ही बजट का प्राव्धान होते थे। 1990 में नई आर्थिक नीति की पृष्ठभूमि और भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में अपने हितों के अनुकूल बजट देखने की दृष्टि लगभग एक साथ विकसित हुई और कल्याण का स्थान सशक्तिकरण ने ले लिया। 7वीं पंचवार्षिक योजना में केवल एक विभाग महिला व बाल विकास विभाग के तहत इसको लेकर प्रयास शुरू हुए।1990 में संसद के द्वारा पारित एक कानून के माध्यम से राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया है। 9वीं पंचवार्षिाक योजना में इस पर विशेष जोर देते हुए 30 प्रतिषत राशि या बजट के लाभ को महिलाओं को देने की योजना पर काम किया गया। 10 वीं योजना में बजट दस्तावेजों में महिलाओं के विकास के लिए वित्तीय प्रावधान करके जेण्डर बजट को बढ़ावा दिया गया है। इस तरह भारत औपचारिक तौर पर 1997-98 के बजट में इसको प्रस्तुत किया गया। 2001 में महिला सशक्तिकरण वर्ष की घोषणा की गई।

जेण्डर बजट में परिलक्षित महिलाओं के लिए आबंटित

वर्ष    मंत्रालयों की संख्या (मांगों की संख्या) कुल जेण्डर बजट (करोड़ रूपये में)

2005-2006            9 (10)     1437868 (2.79ः)

2006-2007            18 (24)  28736.53 (5.09ः)

2007-2008            27 (33)  31177.96 (4.5ः)

2008-2009            27 (33)  27661.67 (3.68ः)

2009-2010            28 (33)  56857.61 (5.57ः)

2010-2011            28 (33)  67749.80 (6.11ः)

स्रोत: महिला व बाल कल्याण विभाग, नई दिल्ली, वार्षिक रिपोर्ट 2010-2011

 

भारत में लिंग आधारित बजट के लिए प्रयास:

जेण्डर प्रतिसंवेदी बजट अब तक विश्व के 62 देशों में लागू किया जा चुका है, जिसमें इसकी सर्वप्रथम पहल आस्ट्रेलिया द्वारा की गई और एशिया के 12 देशों द्वारा अपनाया गया जो बांगलादेश, भारत, श्रीलंका, थाईलैड, मलेशिया, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि है, लेकिन भारत में जेण्डर प्रतिसंवेदी बजट के पूर्ण प्रयास 2004 में महिला व बाल विकास मंत्रालय में देखा गया है। भारत में 2000-01 के बजट में जेण्डर प्रतिसंवेदी बजट को प्राथमिकता दी गई है, जो महिला सशक्तिकरण में समुदाय के विकास में जेण्डर प्रतिसंवेदी बजट महिला एवं पुरूष से अलग नहीं माना जाता है फिर भी भारत सरकार पर जेण्डर वर्गीकरण का प्रभाव पड़ रहा है। भारत सरकार के प्रलेख 2000-01 में मुख्य शर्तें इस प्रकार थींः-

ऽ     महिलाओं के लिए बजट का आबंटन।

ऽ     वार्षिक बजट में यह प्रावधान किया गया कि महिलाओं के लिए सहायक के रूप में शामिल किया जाय।

मंत्रालय द्वारा सामान्य सेवाओं के खर्चे उपलब्ध कराये गये जो महिला व पुरूष के लिए हो जो कि महिलाओं के लिए विशेष रूप से अलग नहीं दर्षाएं जाएं।

 

सीडाॅ क्या है?

सीडाॅ संधि महिला सशक्तिकरण ओर जेण्डर समानता की सूत्रधार के रूप में अंतर्राष्ट्रीय कानून के क्षेत्र में आपनी साख बना चुकी है। इस संधि की प्रस्तवना में स्वीकार किया गया है कि ‘‘आज ळाह दुनिया में महिलाओं के विरूद्ध व्यापक भेदभाव जारी है।’’ इस प्रकार का सामाजिक लिंग आधारित भेदभाव समानता एवं मानवीय गरिमा के मनवाधिकारों का खुला उलंघन है। महिला समानता के सिद्धांत की पुरजोर पैरवी करते हुए यह संधि सदस्य राष्ट्रों का आह्वान करती है। कि वे अपने देश की नीतियों, कानूनों और हर संभव उपायों के माध्यम से ऐसे सतत प्रयास करें जिससे महिलाओं का समग्र विकास एवं उत्थान सुनिश्चिित किया जा सके और महिलाएं भी अपने मानवाधिकारों व स्वतंत्रताओं को अमल में लाकर पुरूषों के समक्ष ही उनका आनंद उठा सकें।

 

भारत में जेण्डर भेदभाव का बढ़ाता सामाजीकरण:

गौरतलब बात यह कि यदि हम भारत में लिंग आधारित सामाजिक भेदभाव के बारे में विचार करते है तो यह घर से ही प्रारंभ हो जाते हैं। लड़के-लड़कियों के जन्म, खान-पान, पालन-पोषण, उठने-बैठने, बाहर आने जाने, कार्यप्रणाली, स्वास्थ्य आदि के बारे में किया जाने वाला भेदभाव उनके भावी जीवन के प्रमुख अवसरों में प्रतिकूल असर डालता है। यह स्त्री-पुरूष के बीच गहरी असमानता को जन्म देता है तकि महिलाओं को हीन भावना और कुंठाओं से ग्रस्त करता है। यदि समाज में व्याप्त विविध क्षेत्रों से जुड़ी भूमिकाओं और उनसे जुड़े उद्बोधनों पर विचार करें तो वहां पर पुरूषों का ही बोलबाला है। जैसे- सरपंच, सभापति, संसद, साहूकार, डाक्टर आदि शब्दों से स्त्रीलिंग पूर्णतः गायब है। ऐसा नही है कि महिलाएं उपरोक्त भूमिकाओं का निर्वहन करती है और न ही कर रही है। लेकिन सर्वविदित है कि समाज में जब भी उन्हें इन भूमिकाओं को निभाने का मौका मिला है, तो महिलाओं ने भी अपनी भूमिका बखूबी निभाया है और निभने का प्रयास भी कर रही है। आवश्यकता इस बात की है कि महिलाओं को समाज में बराबरी और विकास के समान अवसर दिये जाय। सामाजीकरण के कारण ही पुरूषों की तुलना में महिलाएं आज भी बहुत से क्षेत्रों में वंचित है और हर तरह के भेदभाव को ही अपनी नियति मानकर सहती है। किन्तु इस तरह की जेण्डर असमानता हमारे परिवार समुदाय समाज और देश की प्रगति के लिए ठीक नहीं है। एक नागरिक होने के नाते हम सबको एक सकारात्मक सोच के साथ मिलजुल कर जेण्डर असमानता की सामाजिक तस्वीर को बदलने का प्रयास करना चाहिए।

 

भारतीय समाज में जेण्डर आधारित भेदभाव:

नारी एक वह पहलू हैं जिसके बिना किसी समाज की रचना संभव नही हैं। समाज में नारी एक उत्पादक की भूमिका निभाती हैं। नारी के बिना एक नये जीव की कल्पना भी नही कर सकते अर्थात नारी एक सर्जन हैं, रचनाकार हैं। यह कुल जनसंख्या का लगभग आधा भाग होती हैं फिर भी इस पित्रसत्तात्मक समाज में उसे हीन दृष्टि से देखा जाता हैं। भारतीय समाज में जीवन यापन करने वाले महिला एवं पुरूष में रीति-रिवाजों, धार्मिक, सामाजिक, शिक्षा, स्वास्थ, अधिकारों एवं अन्य अनेक क्षेत्रों में अंतर है। यह अंतर कभी जानबूझकर किया जाता है तो कभी अनजाने में। पुत्र जन्म पर हर्ष तथा पुत्री जन्म पर संवेदना व्यक्त की जाती हैं। भारतीय समाज में आज भी पुत्रों को पुत्रियों से अधिक महत्व दिया जाता हैं। कुछ क्षेत्रों में जहां यह बदलाव सम्मानजनक एवं सकारात्मक हैं, वहां वही अधिकांष जगहों पर ये बदलाव महिलाओं के प्रतिकूल साबित हो रहे हैं। समाज व राज्य की विभिन्न गतिविधियों में पर्याप्त सहभागिता के बावजूद इनके साथ अभद्र व्यवहार, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल, सड़कों, सार्वजनिक यातायात एवं अन्य स्थलों पर होने वाली हिंसा में वृद्धि हुई हैं, इसमें शारीरिक, मानसिक एवं यौन शोषण भी शामिल हैं। दैनिक समाचार पत्रों में दिन-ब-दिन की घटनाएं छपी होती है जो महिलाओं से संबंधित होती है जैसे- बलात्कार, दहेज के लिए बहू को जलाना, प्रताडि़त करना तथा बालिका का भ्रुणहत्या, अपहरण, अगवा करना आदि।

 

जेण्डर बजट निर्धारित करने की संरचना:

केन्द्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर बजट के दौरान महिलाओं के लिए आवंटित किये जाने वाले संसाधनों की मात्रा तय करना एवं उसी प्रकार व्यय करना जेन्डर बजट की आवश्यक शर्त है। इसके लिए निम्न मुद्दों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है:-

  1. बजट बनाने की विधियों में सुधार लाना एवं उनका मानकीकरण करके एक यंत्र का विकास करना।
  2. बजट की दिशा का विष्लेषण करना।
  3. किसी विशेष परिवर्तन का विष्लेषण करना ताकि परिर्वतन की दिशा और प्राथमिकताओं के आधार पर वित्तीय संसाधनों में परिवर्तन को जाना जा सके।
  4. संसाधनों का आवंटन और उनके वास्तविक व्यय का विष्लेषण करना एवं तय किये गये उद्देश्ष्यों को प्राप्ति की जानकारी रखना।

 

जेण्डर का उद्देश्य:

एकीकरणकारी उद्देश्य यह है कि देश के बजट और जेण्डर असमानता में उसके वर्तमान प्रतिमान के बीच संबंधों को अधिक पारदर्षी बनाना, अबतक एक दूसरे से अलग रखे गये दो ज्ञान समूहों को एक साथ लाना तथा एक सार्वजनिक धन और सार्वजनिक सेवाओं को समझना तथा दूसरे ओर महिलाओं और पुरूषों तथा लड़के-लड़कियों के अलग-अलग एवं असमान जीवन अनुभवों के बारे में जागरूकता लाना।

 

जेण्डर और लिंग

ऽ     ‘जेण्डर’ शब्द के अर्थ में महिलाओं एवं पुरूषों, बालकों एवं बालिकाओं की सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्तर पर निर्धारित भूमिकाएं, दायित्व, अधिकार, संबंध एवं अपेक्षाएं शामिल है, जो समय एवं स्थान के अनुसार परिवर्तनशील है।

ऽ     ‘लिंग’ शब्द मानव जाति के नर एवं मादा के जैविक भेद का सूचक है। किसी भी व्यक्ति के पूरे जीवनकाल में लिंग समय और स्थान के आधर पर परिवर्तनशील नहीं होता है।

 

बजट क्या है ?

बजट एक ऐसा दस्तावेज है, जिसके माध्यम से किसी विशेष प्रयोजन के लिए वित्तीय प्रावधान किया जाता है। सामान्यतया साकार के द्वारा बनाये गये बजट सरकार की नीतियों का एक सूचकांक होने के साथ-साथ किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के एक महत्वपूर्ण यंत्र के रूप में स्वीकार किये जाते है।

 

जेण्डर बजटिंग क्या है ?

वार्षिक बजट में महिलाओं और बालिकाओं के विकास के लिए आबंटित बजट के प्रावधान और खर्च पर समीक्षा करना जेण्डर बजटिंग कहलाता है, इसमें महिलाओं के लिए अलग से बजट का निर्माण नहीं किया जाता लेकिन आम बजट में महिलाओं और बालिकाओं पर हुऐ व्यय का अडिट की समीक्षा की जाती है। किन्तु जेण्डर प्रतिसंवेदी बजट, जेण्डर संवेदी बजट और महिलाओं का बजट इन शब्दों का उपयोग प्रायः एक दूसरे के लिए किया जाता है। जेण्डर बजट का मतलब यह नही है कि महिलाओं के लिए अलग से बजट पेष किया जाय, वल्कि मुख्य बजट में ही कुछ ऐसी व्यवस्था की जाय ताकि सामाजिक-लैंगिक दरार को भरने के लिए मदद मिल सके। सरकारी पैसों को किस मद में कितना खर्च किया जाय और कहां से पैसा जमा किया जाय बजट में मुख्यतः यही काम होते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे किसी परिवार में मासिक एवं वार्षिक आय-व्यय का लेखा जोखा रखा जाता है। इस आय एवं व्यय को यदि सरकार इस प्रकार व्यवस्थित करती है, ताकि उसके लाभ से सामाजिक विकास में पीछे छूटती आधी जनसंख्या को मदद पहुंच सके, तो उसे संवेदनशील बजट कहते है, इसमें वंचित, कमजोर, और बेसहारा महिलाओं पर ज्यादा जोर होता है।

 

जेण्डर बजट की आवश्यकता व महत्व:

जेण्डर आधारित बजट एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा साकार के बजट बनाने की प्रक्रिया में जेण्डर समानता को बढ़ावा देने वाले विष्लेषणों के आधार पर सार्वजनिक संसाधनों का निर्धारण किया जाता है। जेण्डर आधारित बजट सरकारी कर्मचारियों को इस बात का विष्लेषण करने में भी मदद करता है कि साकार के द्वारा किये गये वायदों और उनको पूरा करने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों के अंतर को सरकार किस प्रकार से पूरा करने का निर्णय लेती है। जेण्डर आधारित बजट महिलाओं और पुरूषों के लिए अलग बजट बनाने की बात नहीं करता है, वल्कि यह सरकार में मुख्यधारा के बजट आधार पर महिलाओं ओर पुरूषों पर पड़ने वालो प्रभावों को अलग-अलग दिखाने का एक प्रयास है।

 

उत्पादन और जेण्डर विभेद:

आर्थिक व्यवस्था के संदंर्भ में देखें तो भारत में जेण्डर आधारित बजट भेदभाव अधिक स्पष्ट होते है क्योंकि पुरूषों को मुख्य उत्पादनकर्ता के रूप में देखा जाता है और उसे अधिक परिश्रमिक वाले काम मिलते है। वहीं पर महिला को आधीनस्थ कार्यकर्ता के रूप में कम आय वाले अवसर ही प्राप्त होते है। अधिकांष परिवारों में पुरूषों को कमाऊ सदस्य के रूप में देखा जाता है, जबकि महिला को केवल घर संभालनेवाली गृह लक्ष्मी के रूप में देखा जाता है। सर्व विदित है कि भारत में पुरूषों को निर्णयकर्ता एवं संरक्षक माना जाता है और वहीं महिला को मूल्य आधारित संस्कारों को आगे बढ़ानेवाला माना जाता है। वैसे ही राजकीय कार्यों में महिलाओं की भूमिका बहुत ही सीमित दिखई देती है।

 

जेण्डर संवेदनशील बजट क्या है ?

  1. बजट बनाने की संकल्पना, आयोजना, स्वीकृति, क्रियान्वयन, उनकी देखरेख, विष्लेषण और आंकेक्षण को जेण्डर के नजरिये के आधार पर करना।
  2. बालकों एवं पुरूषों की तुलना में महिलाओं और बालिकाओं पर सरकार द्वारा किये जाने वाले व्यय का विष्लेषण करना।
  3. नीतियों का निमार्ण, उनमें परिवर्तन और उनके प्रथमिकीकरण के लिए सरकार को सुझाव देना।
  4. अर्थात यह महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार द्वारा तय की गई नीतियों की दिशा को मापने का एक यंत्र है।

 

जेण्डर संवेदनशील बजट की आवश्यकता:

यदि भारत में महिलाओं की स्थिति के संदर्भ में देखा जाय तो देश की आबादी का कुल 48 प्रतिषत हिस्सा होने के बाद भी देश के कुल संसाधनों पर उनकी हिस्सेदारी बहुत ही कम है। देश के कुल सार्वजनिक व्यय का एक बड़ा हिस्सा जेण्डर न्यूट्रल क्षेत्र जैसे- बिजली, रक्षा, यातायात आदि पर खर्च होता जाता है, जिससे महिलाओं को कोई विशेष लाभ नहीं मिलता है। केन्द्रीय बजट में भी सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं के लिए खर्च की जाने वाली कुल राशि का करीब 5 प्रतिषत ही रहती है।

 

संवेदनशील बजट क्या नहीं है?

             जेण्डर प्रतिसंवेदी बजट पुरूषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग बजट नहीं होते।

             जेण्डर प्रतिसंवेदी बजट को दो हिस्सों बांटना-यानी 50 प्रतिषत पुरूष एवं 50 प्रतिषत महिलाओं के लिए नहीं है।

             जेण्डर प्रतिसंवेदी बजट का अर्थ हमेशा महिलाओं के लिए आबंटनों में वृद्धि करना नहीं होता-इसका संबंध प्राथमिकीकरण करने से भी है।

             जेण्डर प्रतिसंवेदी बजटिंग केवल सरकारी बजटों के लिए नहीं की जाती। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों, नागरिक समाज के संगठनों, गैर सरकारी संस्थाओं आदि बजटों को भी जेण्डर प्रतिसंवेदी बनाया जा सकता है।

 

महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की रणनीति:

  1. जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की प्रगति, विकास और सशक्तिकरण को पूरा करने के उद्देश्य से महिला सशक्तिकरण राष्ट्रीय नीति तैयार कर ली गई है।
  2. ऐसी महिलाओं और संस्थानों, जिन्होंने सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य किया है, के योगदान और उपलब्धियों को सम्मान तथा पहचान दिलाने के लिए शक्ति पुरस्कारों की स्थापना की गई है।
  3. महिलाओं के प्रति हिंसा के लिए जिला स्तरीय समितियों के संचालन के लिए मार्गदर्शी सिद्धांत और मुसीबत में पड़ी महिलाओं के लिए हैल्प लाइन जारी की गई है।
  4. कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने से सम्बंधित उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों पर निगरानी रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर की समिति गठित की गई है।
  5. महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्ट आन लाइन करने के लिए महिलाओं के सूचनार्थ एवं उन्हें सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रीय महिला संसाधन कोर्ड की स्थापना की गई है।
  6. महिलाओं के लिए आंवटित धन राशि के उपयोग का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न मंत्रालयों द्वारा खर्च की गई धनराशि का लिंग बजट विष्लेषण किया गया है।

 

परिणामतः ज्ञात हो कि जेण्डर बजटिंग की बातें हो वर्षों से चल रही है लेकिन देश में पर्णरूपेण अपनाया नहीं जा सका है। जेण्डर बजटिंग के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार से अपेक्षा की जाती है कि बजट महिलाओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो। महिला सशक्तिकरण की योजनाओं एवं नीतियों पर जो पैसा खर्च करती है उसका निश्चित हिस्सा पूरी तरह हत तक पहुंच सके। सरकार ने कुछ योजनाओं में जेण्डर बजटिंग आरंभ भी कर दिया है। लेकिन यह देखना आवश्यक है कि प्रत्येक महिला को लाभ मिला है या नहीं। कमजोर व गरीब तबके की महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार को कल्याणकारी योजनाओं में जेण्डर बजटिंग पर विशेष ध्यान रखना होगा।

1 COMMENT

  1. thereismore gender is to be look after,it is KINNER GENDER.You will find these KINNARS in trains/buses/festivals. THEY become aggresive if you do not give them the money.Day by day there number is increasing .THESE pepole kidnap the childerns and make them KINNARS. this evil is fastly increasing in our society.When we make the welfare plans for depressed ,these pepole should also be kept in mind,

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