गजल

गज़ल:बाप ही जब बेटियों को इस तरह खाने लगें…..

इक़बाल हिंदुस्तानी

बच्चा बच्चा हाथ में थामेगा ख़ंजर देखना,

और आगे चलके इस दुनिया के मंज़र देखना।

 

जुल्म सहना छोड़कर जब उठ खड़े हो जाओगे,

ज़िंदगी की भीख मांगेगा सितमगर देखना।

 

फ़ितरतन तो आग उगलेगा शिकायत क्या करें,

रख के पानी में हज़ारों साल पत्थर देखना।

 

आपका कुनबा ज़माने में अमर हो जायेगा,

आप कुनबे का हर एक रिश्ता बराबर देखना।

 

पढ़ने को तारीख़ में सब कुछ लिखा मिल जायेगा,

सीखने के वास्ते बस हाल ए सिकंदर देखना।

 

बाप ही जब बेटियों को इस तरह खाने लगें,

आसमां बरसायेगा हम सब पे पत्थर देखना।

 

हम वक़ारे तश्नगी महफूज़ रक्खेंगे अगर,

खुद हमारे पास आयेगा समंदर देखना।

 

जुल्म के आगे झुकाये जाओगे सर कब तलक,

गर बग़ावत ना करोगे नेज़ों पर सर देखना।।

 

 

नोट-मंज़रः दृश्य, फ़ितरतनः आदतन, कुनबाः परिवार, तारीख़ः इतिहास

वक़ारे तश्नगीः प्यास की गरिमा, महफ़ूज़ः सुरक्षित, बग़ावतः विद्रोह