गज़ल:बाप ही जब बेटियों को इस तरह खाने लगें…..

इक़बाल हिंदुस्तानी

बच्चा बच्चा हाथ में थामेगा ख़ंजर देखना,

और आगे चलके इस दुनिया के मंज़र देखना।

 

जुल्म सहना छोड़कर जब उठ खड़े हो जाओगे,

ज़िंदगी की भीख मांगेगा सितमगर देखना।

 

फ़ितरतन तो आग उगलेगा शिकायत क्या करें,

रख के पानी में हज़ारों साल पत्थर देखना।

 

आपका कुनबा ज़माने में अमर हो जायेगा,

आप कुनबे का हर एक रिश्ता बराबर देखना।

 

पढ़ने को तारीख़ में सब कुछ लिखा मिल जायेगा,

सीखने के वास्ते बस हाल ए सिकंदर देखना।

 

बाप ही जब बेटियों को इस तरह खाने लगें,

आसमां बरसायेगा हम सब पे पत्थर देखना।

 

हम वक़ारे तश्नगी महफूज़ रक्खेंगे अगर,

खुद हमारे पास आयेगा समंदर देखना।

 

जुल्म के आगे झुकाये जाओगे सर कब तलक,

गर बग़ावत ना करोगे नेज़ों पर सर देखना।।

 

 

नोट-मंज़रः दृश्य, फ़ितरतनः आदतन, कुनबाः परिवार, तारीख़ः इतिहास

वक़ारे तश्नगीः प्यास की गरिमा, महफ़ूज़ः सुरक्षित, बग़ावतः विद्रोह

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

1 COMMENT

  1. वाह भाई वाह
    क्या खूब लिखा है

    और आनंद आ गया जो आपने नीचे हिन्दी के अर्थ दे दिए हैं वरना हमेशा की तरह फोन करना पड़ता।
    नेजो नायने सूली होना चाहिए शायद या तलवार भी हो सकता है। पर समझ में आ रहा है।
    सादर, बधाई ,आप ऐसे ही लिखते रहें बड़े भाई ।

    डॉ रावत
    9641049944

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