मौसम विभाग के मंच से घोषित होती है उपभोक्ताओं को ठगने की योजना
“वायदा व्यापार आयोग मूक बनकर देखता है”
भारत जैसे कृषि प्रधान और विशाल देश में जहां विश्व का हर पांचवां व्यक्ति निवास कर रहा हो उसे लेकर प्रत्येक गतिविधि महत्वपूर्ण और संवेदन शील हो जाती है. मानसून आधारित कृषि इस विश्व के दूसरे सबसे बड़ी जनसँख्या वाले देश भारत का मुख्य व्यवसाय व आजीविका का सबसे बड़ा साधन है. जहां भारत के कृषि उत्पादन और कृषि को लगने वाले संसाधनों के बड़े, तगड़े व्यापार और उससे होने वाले हजारों करोड़ के लाभ के प्रति कई अन्तराष्ट्रीय व्यापार समूह लालायित रहते है वहीँ हमारे नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने अधिकाधिक अवसरों पर इस प्रकार का आचरण प्रस्तुत किया है कि भारतीय कृषि का स्तर वैश्विक होने के स्थान पर अधकचरा होकर रह गया है. हमारी परम्परागत समृद्ध कृषि नष्ट हो रही है और आधुनिक कृषि न तो हम कर नहीं पा रहे है और न ही करनी चाहिए. व्यापक व विविध कृषि के स्थान पर एकनिष्ठ कृषि हमें विनाश की ओर ले जा रही है. भारतीय कृषि के सबसे बड़े आधार मानसून को लेकर जिस प्रकार की थोथी और आधारहीन बयानबाजी राजनीतिज्ञों द्वारा की जाती है और जिस प्रकार के दुराशय भरे व्यक्तव्य और विज्ञप्तियां शासन, उसके प्रतिनिधि, नेता, अधिकारी और वैज्ञानिक जारी करते है उनके पीछे अधिकाँश अवसरों पर बदनियती, दुरभिसंधि और स्वयं के व साथी समूह -गिरोह- के लाभ कमाने के कुत्सित दुराशय अधिक होते है.
मानसून को लेकर की जा रही भविष्यवाणियों -फैलाई जा रही अफवाहों- की चर्चा करें तो हमें पता चलेगा कि केवल एक बयान जारी करके और उस बयान को संचार माध्यमों के पंखो पर बैठाकर किस प्रकार करोड़ो निरीह भारतीयों की जेबें खाली कर दी जाती है. संचार माध्यमों से देशव्यापी अफवाहें फैलाकर कई हजार छोटे छोटे व्यापारियों और निवेशकों का धन वायदा व्यापार में लगवाकर ऊपर बैठे गिद्ध सुदृश खिलाड़ी मालामाल हो जाते है. भारतीय संविधान में अफवाहों को फैलाने पर दाण्डिक कार्यवाही करने का प्रावधान है और संविधान इस प्रकार की आशा प्रत्येक नागरिक से करता है कि वह अफवाहें न फैलाए!! वहाँ अफवाहें फैलाकर –मीडिया अभियान चलाकर- इस प्रकार हजारों हजार करोड़ के लाभ कमाने को लेकर शासन और वायदा व्यापार आयोग क्यों कुछ नहीं करता है!!! अभी हाल के घटना क्रम में देश के कृषि मंत्री और बड़े सट्टेबाज व्यापारी शरद पवांर ने देश में सूखे की संभावनाओं को जिस प्रकार अनावश्यक ढंग से चर्चा में लाया वह शोध और चिंता का विषय है. कृषि मन्त्री होने के नाते वे सूखे को लेकर अध्ययन करते करवाते यह ठीक था किन्तु सावन के जाने से पहले और भादों मास के पूरे पूरे बाकी रहते इन चर्चाओं को सार्वजनिक रूप से करने के पीछें मंतव्य क्या था? भादों प्रारंभ होने से पहले देश में सूखे की चर्चा गर्म करने के बाद भारतीय बाजारों में दलहनों और तिलहनों के भावों में जिस प्रकार की धधकती वृद्धि हुई उसके विषय में शरद पवांर जैसा चतुर, अनुभवी, बड़ा व्यवसायी जानता नहीं था इस बात पर देश का बच्चा भी विश्वास नहीं करेगा. शरद पवांर के व्यक्तव्य के बाद बाजार ने कीमतों को उतना ऊपर ही ले गया जिसकी कि कृषि मंत्री को आशा थी!! मौसम के बारे में भविष्यवाणियां करने के लिए देश में भारतीय मौसम विभाग आई एम डी काम करता है जिसका काम मौसम संबंधी पूर्वानुमान तथा जानकारी देना और ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों, धूल भरी आंधी, भारी बारिश और बर्फबारी, गर्म और ठंडी हवाओं आदि को लेकर चेतावनी जारी करना है. इसके अतिरिक्त कृषि, जल संसाधन प्रबंधन, उद्योग जगत, तेल उत्खनन और राष्ट्र निर्माण की अन्य गतिविधियों के लिए मौसम संबंधी जानकारी उपलब्ध कराता है. भारतीय मौसम विभाग के इन कार्यों हेतु इस विभाग में एक महानिदेशक, पांच अतिरिक्त महानिदेशकों और 20 उप महानिदेशकों और उनके सहायकों उपसहायकों सहित हजारों व्यक्तियों का स्टाफ काम करता है. स्वत्रन्त्रता प्राप्ति के बाद से लेकर अब तक संभवतः सर्वाधिक विफल रहे किन्तु मानसून की दृष्टि से सर्वाधिक महत्व के इस विभाग के पास एक सुपर कंप्यूटर और असंख्य अत्याधुनिक उपकरण और संसाधन है. वर्ष 2010-11 के दौरान मौसम विभाग पर होने वाले खर्च का अनुमान तकरीबन 300 करोड़ रुपये का था.
इतने बड़े लवाजमें और खर्च के साथ चलने वाले इस विभाग आईएमडी ने कभी भी मानसून या मौसम के विषय में जानकारी देकर भारतीय अर्थव्यवस्था और इसकी रीढ़; कृषकों का लाभ तो नहीं ही कराया किन्तु समय समय पर इन बड़ी मकड़ियों के जाल को बुनने में सहायक अवश्य सिद्ध होता रहा है. कृषि के लिए सूचनाएं उपलब्ध कराने का इसका रिकॉर्ड बेहद खराब है. इसका नवीनतम उदाहरण वर्ष 2009 में हुआ सुखा था. उस समय सही जानकारी दे पाने में असफल रहा यह विभाग शासन और समाज को अगस्त तक भी व्यवस्थित जानकारी नहीं दे पाया था. इस वर्ष आईएमडी ने सामान्य की तुलना में कभी 96% कभी 90% कभी 85% वर्षा होने के विभिन्न आसार बताएं है. भारतीय मौसम विभाग एक व्यवसायी की भांति आचरण करता प्रतीत भले ही न हो रहा हो किन्तु व्यवसाइयों के संकेत पर कार्य करता हुआ निस्संदेह प्रकट होता है. भारतीय मौसम विभाग पर भारतीय कृषकों और स्थानीय कृषि पंडितों का विश्वास न जमने के कई अनुभव संपन्न कारण है. भारतीय कृषक अपनी परम्पराओं से भी वर्षा के सम्बन्ध में सटीक आकलन करने में सफल रहता है. जयपुर के राजा सवाई माधो सिंह जैसे मौसम और खगोल विज्ञानी हामारी इस भारत भूमि पर हुए है जिन्होंने जंतर मंतर जैसी विश्वविख्यात वैधशाला की स्थापना की थी. मौसम की संभावनाओं के इस देशज और ग्रामीण आकलनों के पीछे अनुभव का विशाल धरातल रहता है. भारतीय ग्रामों में वृद्ध व कृषि पंडित पपीहे के बोलने, चीटियों के अंडे उठाने, टिटहरी के अण्डों की संख्या, ऊँट के घुटनों की सूजन, वर्षा के कीट मटीलडी के उड़ने से, मकड़ियों के टमाटर के बगीचें में जाल बुनने से, इन्द्रधनुषों में रंगों की संख्या से, मिटटी के ढेलों में नमी आने के संकेत से और भी न जाने कितने रीतियों से वर्षा और अन्य मौसम के सटीक और सफल आकलन का कार्य करते रहे है. कहना न होगा कि यदि हमारे कृषक केवल वैज्ञानिक आकलनों पर ही निर्भर रहते तो संभवतः उनके पल्ले सिवा पछ्तानें के कुछ नहीं बचता.
निश्चित ही देश को मौसम सम्बंधित विशेषतः मानसून सम्बंधित सटीक और सच्चे पूर्वानुमान की सख्त आवश्यकता है और इससे देश में सम्पन्नता और समृद्धि के नए अध्याय को लिखा जा सकता है. अभी हाल ही में बरसात का सही अनुमान लगाने के लिए भारत सरकार तथा कोरिया की कंपनी जिनजांग में समझौता हुआ है. सरकार ने इस कंपनी को पूरे देश की विभिन्न तहसीलों में स्वचलित वर्षा मापक यंत्र लगाने का काम ठेके पर दिया है इन यंत्रों का संपर्क पूना में स्थापित मौसम विभाग के हैडक्वार्टर से होगा. यह स्वचलित वर्षा मापक यंत्र 5 मी.x 7 मी. का होगा जिस पर एक टावर होगा. वर्षा की बूंद टॉवर पर गिरेगी जिससे उपग्रह को सन्देश मिलेगा व उस स्थान की वर्षा का डाटा पूना में अपडेट होगा. जिनयांग कंपनी के मैनेजर के अनुसार भारत सरकार ने उनकी कंपनी के साथ 55,26,400 $ में पूरे भारत की 1350 तहसीलों में स्वचलित वर्षा मापक स्टेशन स्थापित करने का करार किया है. इनमें से 400 तहसीलों पर सेंसर भी लगाए जाएंगे, सेंसर की मदद से तापमान तथा नमी का पता चलेगा. यहाँ यह उल्लेख आवश्यक है कि मौसम विभाग को अत्याधुनिक यंत्रों कि तो आवश्यकता है किन्तु उससे अधिक पवित्र और शुचिता पूर्ण आचरण की आवाश्यकता है, और यह भी आवश्यक है कि मौसम विभाग का काम अनाधिकृत रूप से राजनीतिज्ञ, मीडिया और व्यवसायी न करें.
स्पष्टतः प्रकृति अनिश्चयी और रहस्यमयी स्वभाव की होती है व इसके विषय सौ प्रतिशत सटीक संभावना प्रकट करना कष्ट साध्य व असंभव दोनों है किन्तु यहाँ यह मानने के भी स्पष्ट अवसर रहे है कि भारतीय मौसम विभाग के कन्धों पर रखकर न जाने कितनी ही अफवाह रुपी तोपें और बंदूकें मुनाफाखोरों के द्वारा भारतीय बाजार और उपभोक्ताओं पर चलाई जाती है.
दिल्ली सरकार को किसानों और खेती की चिंता नहीं ही है, यह कहना भी ठीक नहीं है किन्तु प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना कि उत्तर-पश्चिम में 33 फीसदी, मध्य भारत में 26 फीसदी, दक्षिण में 26 फीसदी (आंध्र में ठीक बरसात है), और पूर्वोत्तर में दस फीसदी कम बरसात हुई है, इस चिंता को समय पूर्व जन सामान्य के सामने रखकर इन दोहनकारी शक्तियों के अधीन रहने का संकेत नहीं तो और क्या है? प्रधानमन्त्री कार्यालय और कृषि मंत्रालय इन तथ्यों को संचार साधनों को बताने के स्थान पर इन पर अध्ययन मनन करता रहता और समय आने पर देश की जनता को इसके विषय में बताता तो क्या बिगड जाता?? अल-लीनो को दूसरा कौन सा अल नीनो काटता है या पश्चिमी विक्षोभ आकर मानसून को बिगाड़ रहा है इन बातों से कृषकों या छोटे व्यवसाइयों को कोई मतलब नहीं है किन्तु बड़े मुनाफाखोर व्यवसाइयों और वायदा व्यापार में लगे समूहों और अन्तराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए इन बातों और घोषणाओं के अपने लाभकारी मायने है. इन व्यक्तव्यों को जारी करते समय शासन को सबसे बड़ी चिंता कीमतों की होनी चाहिए. सरकारी गोदामों में साढ़े तीन करोड़ टन अनाज होने के बावजूद अगर इस साल की फसल कमजोर होती तो तबाही मच सकती है. सरकार के बयान आने के बाद दलहन की कमी और महंगाई की शुरुआत हो चुकी है. खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने भी व्यक्तव्य जारी कर डाला कि दलहन के बुवाई क्षेत्रफल 20% कम हो गया है. उन्होंने यह भी बताया कि दुर्भाग्य से सबसे कम बरसात उत्तर और मध्य भारत के उन्हीं इलाकों में हुई है, जहां दलहन उगाया जाता है और अमेरिका में सूखे के हालात है. यहाँ यह सुखद और प्रसन्नतादायक उल्लेख शासकीय स्तर नहीं किया गया कि हिमालय और उसके आसपास के इलाकों में पर्याप्त पानी पडऩे से देश के अधिकांश जलाशय ठीक स्थिति में हैं, जिससे पीने के पानी और बिजली उत्पादन में कठिनाई न होने की स्थिति बनती जा रही है. दिल्ली सरकार और उसके मुखिया जागृत रहे यह देश के सामान्य जन की सामान्य आशा है किन्तु इस जागृति का लाभ देश के सट्टेबाज, शेयर व्यापारी, जमाखोर और मुनाफाखोर उठायें यह आशा किसी को भी नहीं है.