गज़ल ; हर अदा में कमाल था – सत्येंद्र गुप्ता

हर अदा में कमाल था कोई

हर अदा में कमाल था कोई

आप अपनी मिसाल था कोई।

उसके आशिक थे मिस्ले-परवाना

हुस्न से मालामाल था कोई।

उससे छुटकारा मिल गया हमको

एक जाने बवाल था कोई।

वो मिला है न मिल सकेगा कभी

एक दिल में ख्याल था कोई।

बेचकर खून रोटियाँ लाया

भूख से यूँ निढाल था कोई।

भीगी आँखों से देखना उसका

आंसुओं में सवाल था कोई।

 

 

 

 

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