कन्या को देवी, महिला को लक्ष्मी की तरह पूजते, फिर क्यों महिला अपराध में असफल ?

पारसमणि अग्रवाल कोंच 

आज महिला दिवस है. हमेशा की तरह बड़ी बड़ी बातें की जाएगी और खुद को महिलाओं का रक्षक बताने की होड़ सी लग जाएगी । नवरात्रि में कन्याओं को देवी के रूप में पूजते है, विवाह के बाद उन्हें घर की लक्ष्मी का दर्जा दे दिया जाता है और उन्ही के साथ बढ़ती आपराधिक घटनाएं दिल को झकझोर कर रख जाती है। हमारे बुजुर्गों की इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि यदि बेटा वारिस होता तो बेटियां भी “पारस” होती है। समय के बदलते चक्र के साथ इंसान भेड़िये बन जाते है. सम्भवतः यदि भेड़ियों के विवेक होता तो महिला अपराधी मनुष्य रूपी भेड़ियों को देख शर्मसार हो रहा होता । भले ही हमारे जिम्मेदार लम्बे चौड़े भाषण देकर महिला सुरक्षा को लेकर दावे कर अपनी पीठ अपने हाथ ही थपथपा लेते हो, भले ही समय के पहिए के साथ कागजों के बीच वास्तविक आंकड़े दफन कर दिए जाते हो या फिर मामले को जिम्मेदारों तक पहुंचने से पहले ही इज्जत और समाज की दुहाई देकर वही रफा दफा कर दिया गया हो पर असली सच किसी से छुपा नहीं ? इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि प्रयासों के नाम पर करोड़ों अरबों रूपये के बजट से महिला सुरक्षा के दावे  के साथ तमाम योजनाओं को सृजन कर उनको धरातल पर लागू करने के प्रयास किया गया लेकिन अपराध की दुनिया से आती दिल दहला देने वाली खबरें यह सवाल दिलों दिमाग में पैदा कर जाती है कि करोड़ों अरबों का बजट से महिला सुरक्षा के लिए उठाये गए कदम कहीं न कही खोखले है फिर कंही न कंही कोई चूक हो रही है । बहुत सी जगह तो महिलाओं को अपना वोट बैंक के लिए प्रलोभन स्वरूप महज कुछ रूपये महीने देकर उन्हें लॉलीपॉप पकड़ा दिया जा रहा है और खुद महिला हितैषी होने का चोला ओढ़कर खुद को माताओं/बहिनों का मसीहा बनाने का भरसक प्रयास किया जाता है।  हमारे जिम्मेदारों द्वारा महिला सुरक्षा के नाम पर उठाये गए कदम कितने प्रभावी और कारगर साबित हो रहे और उनकी योजनाएं सुरक्षा पर कितनी खरी उत्तर रही है, इस बात का अंदाजा हाल ही में राजनैतिक सुर्खियों में भी अपनी जगह बनाने वाली आपराधिक घटना से लगाया जा सकता है जिसमें केंद्रीय मंत्री की बेटी से धार्मिक स्थल के बाहर छेड़छाड़ की घटना से या फिर पुणे जिले के एक बसस्टेंड पर खड़ी कबाड़ बस में युवती के साथ दुष्कर्म की घटना हो या फिर एक पिता द्वारा अपनी ही बेटी के साथ हैवानियत की खबर या फिर प्रेमी द्वारा प्रेमिका को मौत के घाट उतारने की खबर…… ऐसी प्रतिदिन दर्जनों खबर हम सबको बहुत ही आराम से सुनने को मिल जायेगी।

महिला सुरक्षा हेतु तमाम दावे और योजनाओं को भी सुना जाना जा सकता है जिन्हे सुनकर दिल में सुखद अनुभूति होती है और यह लगता है कि शायद अब वास्तविक रूप में महिला अपराध में कमी होगी पर परिणाम और ही निकलते है ।  यंहा पुलिस प्रशासन पर अंगुली उठाना भी उचित नहीं होगा क्योंकि उनके तरफ से कोई कसर न छोड़ने का प्रयास किया जाता है।  इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पाँचो अंगुलिया एक सी नहीं होती। सुबह सुबह चाय की चुस्की के साथ पढ़ते अखबार को जब गौर से देखा जाये तो सबसे ज्यादा महिला अपराध की घटनाओं से सना हुआ मिलेगा।  इस महिला दिवस महिलाओं को योजनाओ के नाम पर लॉलीपॉप पकड़ाने या महिला सुरक्षा की बड़ी बड़ी ढींगे हांकने की वजह महिला सुरक्षा हेतु कारगर कदम उठाना होगा और सिर्फ शासन- प्रशासन के दम पर सम्भव नहीं है बल्कि इस दिशा में हम सभी को भी जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है क्योकि कहा भी गया है कि एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण पत्थर और चट्टानों से नहीं बल्कि उस राष्ट्र के नागरिकों द्वारा होते है। इसलिए हम सब को न सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति बल्कि अपने कर्तव्यों के प्रति भी जागरूक होने की आवश्यकता है तभी हकीकत में महिला अपराध के आकड़ो को कम किया जा सकता है।

पारसमणि अग्रवाल कोंच 

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