मोदी जी को निष्कंटक शासन करनें दें !!

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सन्दर्भ:साक्षीजी महाराज/चार बच्चें      

इस देश में आठ सौ वर्षों बाद आये हिंदुत्व ध्वजा धारी के शासन को यदि निष्कंटक चलनें देना हो तो हिन्दुत्ववादी पूज्य संतो, जन प्रतिनिधियों और नेताओं को भी अपनें विषयों, मुद्दों, कथनों को तनिक राजनैतिक, कूटनीतिक, राजनयिक और चाणक्य शैली में ही रखना होगा! इस घनघोर राजनैतिक-कूटनैतिक हो गए विश्व में उन्हें भोले भाले, साधू- संताई भरें प्रवचनों के स्थान पर सदा ही वैश्विक सन्दर्भों के अनुरूप रहे भारतीय चिंतन के छोटे छोटे प्रबोधन करनें होंगे. पूज्य संत जनप्रतिनिधि हिंदुत्व के विषयों को स्वर दें, धारदार दें, पुरजोर दें किन्तु तनिक अपनी शैली को लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप ढालें और मोदी जी को बड़ी संख्या में मतदान करनें वाले बेहद संघर्षरत और जद्दोजहद भरे शहरी मतदाताओं की मानसिकता से भी तारतम्य बैठाते चलें तो बड़ी कृपा होगी!! यही वह मार्ग होगा जिससे सवा सौ करोड़ हिन्दुस्थानियों की आशा के केंद्र बनें मोदी इस देश को विकास पथ पर अग्रसर भी करा पायेंगे और हिंदुत्व के मुद्दों को भी शनैः शनैः विजयपथ पर अग्रसर करा पायेंगे. अनावश्यक और थोथे तात्कालिक भाषणों से वे नरेंद्र मोदी की राह को तो कंटकाकीर्ण कर ही रहें है साथ साथ अनजानें में और बेखुदी में हिंदुत्व वादी मुद्दों और विषयों के भी प्राण क्षीण कर रहें हैं!! आज जिस परिस्थिति में देश का नागरिक खड़ा है और जिन कष्टप्रद परिस्थितियों और संघर्ष से गुजर कर अपनें दो बच्चों का लालन-पालन-शिक्षण कर पा रहा है उसकी कल्पना सभी को है. इस देश के चिंतन-मनन संस्थान अब यदि राष्ट्रवाद की आवश्यकताओं के चलतें यदि इस देश के परिवारों से अधिक बच्चें चाहतें हैं तो ये लक्ष्य सामान्य मंचों से तात्कालिक अवसरों पर तात्कालिक भाषणों को पिलानें से नहीं ही मिलनें वाला! अपितु परिस्थितिवश इससे इस विषय का उपहास ही उड़ने वाला है और विवाद भी होनें वाला है!! गंभीर विषयों पर, राष्ट्र की सोच और मानसिकता बदलनें वाले दीर्घकालीन विषयों पर, चिरंतन चिंतन-मनन-प्रबोधन हो. देहाती और नगरीय समाज में आई दूरियों और सोच के अंतर के अनुरूप ही उनकें सामनें छोटे छोटे प्रबोधन रखें जायेंगे तो ही इस प्रकार के विषय समाज में गर्भस्थ हो पायेंगे और एक बलिष्ठ-दीक्षित हिन्दु समाज का भ्रूण जम पायेंगा, अन्यथा तो तात्कालिक और अल्पसोच के भाषण होंगे, विवाद होंगे, वितंडे होंगे फिर क्षमा होंगी, खेद होंगे और हिन्दू समाज तेज दर तेज गति से गर्त में जाता ही रहेगा. नेता-सांसद-विधायक हो गए पूज्य संतो को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनकी भाषण क्षमता विकसीत भले ही हो गई हो किन्तु प्रबोधन की और समाज को दीक्षित करनें की उनकी क्षमता राजनीति में जानें के बाद सीमित, सापेक्षिक और सान्दर्भिक हो जाती है.

           देखा यह जा रहा है कि पिछले महीनों में हिंदुत्व के मुद्दों पर जनप्रतिनिधि जब जब मुखर हुयें हैं तब तब उनकें द्वारा व्यक्त विषयों की हितचिंता कम छीछालेदारी अधिक हुई है! हिंदुत्व के संवेदनशील मुद्दों पर बोलते समय जनप्रतिनिधि क़ानून या जनप्रतिनिधि की लोकलाज दोनों से ही ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं कि वक्ता को अपनें प्रखर हिंदुत्व कथन के सटीक और सत्य होते हुए भी उस पर क्षमा मांगनी पड़ती है. देखा गया है कि पिछले दिनों अनावश्यक ही लोकलाज, लोकलिहाज और लोकतंत्र के दबाव में एक एक करके कई बार कई सटीक और संवेदन शील हिन्दू विषयों पर क्षमा मांगनें की स्थिति निर्मित हुई है.  

           नरेंद्र मोदी शासन में क्या आये प्रसारण माध्यमों ने हिंदुत्व के मुद्दों पर भाषण करनें वाले प्रखर हिंदुत्व के वक्ताओं, संत नेताओं और जन प्रतिनिधियों के पीछे जैसे एक संवाददाता टोली पृथक या एक्सक्लूसिव रूप से लगा दी है. सत्तारूढ़ भाजपा का कोई एक व्यक्ति किसी साधारण से कार्यक्रम में भी जाए और कुछ बोले नहीं कि उसका वितंडाकरण और प्रपंची करण हुआ नहीं!! हिन्दुत्ववादी जनप्रतिनिधियों और नेताओं को समझना होंगा कि टीआरपी की भूखी प्रसारण माध्यमों की बड़ी सेना उसकी एक एक चूक, भूल और विवादित शब्द की प्रतीक्षा कर रही है. ऐसा नहीं है कि हिंदुत्व के मुद्दों पर इस देश में इस प्रकार के व्यक्तव्य, कटाक्ष या बयानबाजी प्रथम बार हो रही है, ऐसा सदा होता रहा है; किन्तु अब चूँकि भाजपा और नरेन्द्र मोदी केंद्र में सरकार चला रहें हैं तो स्वभावतः ही इन मुद्दों, बोलों, कटाक्षों और उक्तियों पर चर्चा देश भर में गर्मा-गर्मी के स्तर तक होगी ही.

         हिन्दू संत के रूप में सुस्थापित और उन्नाव से भाजपा सांसद साक्षी जी महाराज नें जब पिछले माह महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोड़से को देशभक्त बतानें का वितंडा खड़ा किया था तब का उनका अनुभव उनकें साथ है! संसद में उनकें उस कथन से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को जो रक्षात्मक मुद्रा अपनानी पड़ी और निर्जीव पड़ी कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को जो आक्रामक होनें की आक्सीजन मिली वह भी उनकी स्मृति में होंगी ही!! फिर क्यों बारम्बार, अनुभव से नहीं सीखनें को सिद्ध करनें वाले उद्धरण आ रहें हैं?! इस देश के मुझ जैसे कई हिंदुत्व वादी मुद्दों के प्रखर पक्षधर लोगों का अनुभव यह भी रहा है कि नेता प्रकार के लोग हिंदुत्व के मुद्दों पर जब-जब असावधानी भी बोलें हैं तब-तब इन मुद्दों की तीक्ष्णता प्रखरता और प्रचंडता का ह्रास ही हुआ है! नेता तो तात्कालिक बोलतें हैं और क्षमा मांग लेतें हैं किन्तु उस हिंदुत्व वादी मुद्दें या विषय का दीर्घकालीन नुक्सान, ह्रास और धार मट्ठी कर जाते हैं जो मुद्दा शनैः शनैः समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाता जा रहा था. स्थापित होनें की दिशा में बढ़ रहे जितनें भी हिन्दुत्ववादी विषय आज समाज और देश में अपनी धुरी पर घूम रहें हैं या समाज में मंथन-चिंतन किये जा रहें हैं वे विषय इस स्तर तक यूं ही नहीं पहुंचें हैं; उन विषयों को समाज की सज्जन शक्ति की चेतना और संज्ञा-प्रज्ञा नें बड़े ही श्रम से इस मंथन पीठ तक पहुंचाया होता है. एक बड़ी संख्या की राष्ट्रवादी और हिन्दू हितचिन्तकों की सेना जो इन हिंदुत्व वादी विषयों को चिंतन-मंथन की प्रज्ञा पीठ पर ला खड़ा कर रही है तो सम्पूर्ण शेष राष्ट्र का भी कर्तव्य बनता है कि वह इन विषयों का सान्दर्भिक और पारिस्थितिक मूल्यांकन करें और इनकी जमावट को आरूढ़ होनें की दिशा प्रदान करें. अभी की स्थिति में यहाँ तो ठीक इसके विपरीत हो रहा है; जमे जमाये, स्वीकृत या सर्व स्वीकृति की ओर शनैः शनैः बढ़ रहे विषयों पर कोई भाजपाई जन प्रतिनिधि प्रखर हिन्दुत्वादी सिद्ध होनें की आकांक्षा से, अनावश्यक विलाप करके पहले तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को रक्षात्मक स्थिति में ला खड़ा करता है और फिर अपनी लोकतांत्रिक आस्थाओं का बखान करते हुए क्षमा मांग लेता है!! इसके बाद हाथ आती है दो परिस्थितियाँ एक- दिल्ली की आक्रामक स्थिति में रह सकनें और चलनें वाली मोदी सरकार की अनावश्यक बेचारगी!. और दो – हिंदुत्व वादी विषय पर चिंतन- मंथन और योजनाबद्ध प्रबोधन के स्थान पर तात्कालिक भाषण बोलनें से नुचा-फटा-पिटा हिन्दुत्ववादी विषय!!

         पिछले छः महीनों की केंद्र सरकार के रहते कितनें ही अनुभव ऐसे आयें हैं जो स्पष्ट स्मरण में हैं किन्तु जिनका उल्लेख यहाँ आवश्यक होते हुए भी नहीं कर रहा हूँ. किन्तु यह सच है कि योजना और चिंतन-मंथन के बिना तात्कालिक भाषणों का शिकार हो गए ये अक्षत गौरवशाली हिंदुत्ववादी विषय और मुद्दें बेवजह खेद-शर्मिंदगी-क्षमा जैसे शब्दों के आसपास गणेश परिक्रमा करते दिखाई दिए हैं.

                 परिस्थिति जन्य है कि हमारें संत जन प्रतिनिधि और अन्य सामान्य जन प्रतिनिधि दोनों ही हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्रवाद के विषयों पर बोलें अवश्य किन्तु जब भी बोलें तो ऐसा बोलें कि एक तो विषय प्रतिष्ठारूढ़ हो, विवादग्रस्त न हो – और दुसरे नरेन्द्र मोदी की आठ सौ वर्षों बाद आई सरकार का मार्ग कंटकाकीर्ण न हो.

3 COMMENTS

  1. आपसे पूर्ण रूप से सहमत हूँ. दुर्भाग्यवश कुछ ऐसा ही श्री अटल जी के समय हुआ था और उसीकी पुनरावृत्ति सिद्ध करती है कि विरोधियों की अपेक्षा पार्टी के सदस्यों और समर्थकों का उतावलापन और
    अपनी भाषा पर नियंत्रण का न होना कितना हानिकारक हो सकता है.

    मोदीजी मन प्राण से देश के सर्वांगीण विकास के ऐतिहासिक लक्ष्य को पूरा करने में जुटे हैं. उन्हें ऐसा करने से इस प्रकार रोकना देशहित में नहीं है. संतजन उन्हें अपना राजधर्म निभाने दें, उनका साथ दें और और कहीं भी अपने अनावश्यक असमय दिये जा रहे मत वक्तव्यों को नियंत्रण में रखें.

  2. आपसे पूर्ण रूप से सहमत हूँ. दुर्भाग्यवश कुछ ऐसा ही श्री अटल जी के समय हुआ था और उसीकी पुनरावृत्ति सिद्ध करती है कि विरोधियों की अपेक्षा पार्टी के सदस्यों और समर्थकों का उतावलापन और
    अपनी भाषा पर नियंत्रण का न होना कितना हानिकारक हो सकता है.

    मोदीजी मन प्राण से देश के सर्वांगीण विकास के ऐतिहासिक लक्ष्य को पूरा करने में जुटे हैं. उन्हें ऐसा करने से इस प्रकार रोकना देशहित में नहीं है. संतजन उन्हें अपना राजधर्म निभाने दें, उनका साथ दें और और कहीं भी अपने अनावश्यक असमय दिये जा रहे अपने मत वक्तव्यों को नियंत्रण में रखें.

  3. अब यदि मोदी सरकार अच्छा काम भी करे और फिर भी पांच साल बाद कांग्रेस जीत कर आ जाय तो इसका श्रेय साधवीजी ,साक्षी महाराज, पारस जैन और अन्यान्य ऐसे प्रवचन देने वाले सांसदों और मंत्रियों को देना पड़ेगा,ये महान हैं,इन्हे न तो विकास से मतलब है,न सरकार सफलता पूर्वक चले इस से कोई सम्बन्ध है. जो मन मैं आये वह अपने मुखारविंद से कह देना ,विरोध हो जाये तो क्षमा मांग लेना इनकी आदत है. विरोध न हो या ठंडा पड़ जाय तो फिर से वही घिस पीटकर ,नए रूप मैं कोई कथन.

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